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हिन्दीनेस्ट डॉट कॉम बनाम स्त्रीवादिता

मुझे बहुत सारी प्रतिक्रियाएं रोज़ मिलती हैं‚ हिन्दीनेस्ट डॉट कॉम की उत्कृष्टता के लिये‚ अच्छा साहित्य पाठकों को सहज उपलब्ध करवाने के लिये। इन्टरनेट पर हिन्दी में अच्छा साहित्य पढ़कर पाठक अपना आश्चर्य व सुखद अहसास छुपा नहीं पाते। दिन प्रति दिन इसकी लोकप्रियता तथा लेखकीय सहयोग में वृद्धि हो रही है। कई नए नियमित पाठक तथा लेखक हमसे आ जुड़े हैं। यह बहुत संतोषजनक है तथा हमारी मेहनत का सर्वोच्च ईनाम है।
किन्तु इन प्रतिक्रियाओं के साथ कुछ प्रतिक्रियाएं ऐसी भी मुझे समय समय पर मिली हैं जिनमें हिन्दीनेस्ट के ज़्यादातर लेखों‚ कहानियों‚ कविताओं को स्त्रीवादी क़रार दिया गया है। पता नहीं यह गलत धारणा क्यों हमारे कुछ पाठकों के मन में घर कर गई है। हमारे लेखों‚ कहानियों‚ कविताओं में विविधता है। शायद उन्होंने बहुत कुछ पढ़ा ही नहीं या महज वही कहानियाँ तथा लेख पढ़े हैं जिनमें स्त्री शोषण की विषमताओं के विषयों को उठाया गया है। विषमताओं को उजागर करना स्त्रीवादी होने का द्योतक नहीं है।
हमारी पत्रिका आरंभ से ही पारिवारिक विषयों को समेट कर चली है। जिसमें स्त्री पुरुष दाम्पत्य तथा प्रेम के दो आधारस्तम्भ हैं‚ जो कि अच्छा परिवार बनाते हैं तथा अच्छे परिवार एक उत्कृष्ट समाज बनाते हैं। स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों का एक दूसरे के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। और रही यौन शोषण‚ विवाहेतर सम्बन्धों‚ उलझे मनोविज्ञान‚ स्त्री पुरुष के बीच उत्कृष्टता की होड़ की बात तो यह सब विषमताएं भी समाज का ही नकारात्मक हिस्सा हैं। और प्रसिद्ध उक्ति के अनुसार – 'साहित्य समाज का आईना है।" तो जहाँ समाज की हर बात साहित्य में प्रतिबिम्बित होती है तो ये नकारात्मक बातें भी इसी समाज की कुछ झलकियां हैं।
स्त्रीवादिता एक नितान्त भिन्न विषय है‚ 'वुमेन लिब' के नारे अब अपना रंग खो चुके हैं। नारी की महत्ता अक्षुण्ण है‚ यह समाज हमेशा से जानता आया है। माना आज की स्त्री जागरुक है‚ अपने अधिकारों के प्रति सजग और उसकी स्वयं की स्वतन्त्रता के अधिकार और महत्ता मनवाने की बात जायज़ है । किन्तु स्त्री से बेहतर यह कौन जान सकता है कि पुरुष के बिना उसका स्वयं का अस्तित्व भी अधूरा है। समानता की बात के हम अवश्य पक्षधर हैं‚ किन्तु स्त्रीवादी नहींॐॐ
मुझे सबसे ज़्यादा प्रतिक्रियाएं ' पंचकन्या '‚ जया जादवानी की स्त्रीपरक कहानियों पर‚ उर्मिला शिरीष की बलात्कृत लड़की की पीड़ा पर आधारित कहानी 'चीख' तथा मेरे स्वयं के कुछ लेखों तथा 'पल्लव' कहानी पर मिली हैं। यह सभी विषय ज्वलन्त विषय हैं और समाज में व्याप्त हैं…इन्हें अभिव्यक्त करना किसी भी विधा के रूप में पाठकों के समक्ष लाना किसी स्त्रीवादी अवधारणा के तहत नहीं आता है। हमारी पत्रिका में बहुत सी कहानियाँ पुरुष मनोविज्ञान‚ पुरुष की पीड़ा पर भी आधारित हैं। विविध समसामयिक विषयों पर लेख शामिल हैं। कविताओं में समाज का हर वर्ग‚ मानव की हर भावना स्थान पा चुकी है। अभी हाल ही में भगतसिंह का एक लेख " मैं नास्तिक क्यों हूँ " बहुचर्चित हुआ है।
हमारी पत्रिका में बाल साहित्य से लेकर व्यंग्य‚ संस्मरण‚ यात्रा वृत्तान्त‚ दृष्टिकोण आदि कई विधाएं हैं जिनमें कई प्रकार के विषयों को उठाया गया है। महज कुछ लेखों‚ कहानियों के आधार पर पत्रिका को स्त्रीपरक समझा जाना गलत है। मेरा पाठकों से अनुरोध है कि हमारी पत्रिका में समाहित अन्य और भी विधाओं‚ विषयों को पढ़ इसकी सम्पूर्णता का आनन्द लें।

– मनीषा कुलश्रेष्ठ

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