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अलविदा 2003 स्वागत 2004
अभी जनवरी 2003 ही की तो बात है भारत
अनिश्चितता‚ साम्प्रदायिकता‚ नरसंहारों‚ आतंक‚ आर्थिक चरमराहट‚ अपराधों‚
घोटालों‚ राजनैतिक रेलमपेल के ढेर पर अन्यमनस्क सा खड़ा था। एक आम भारतीय
अपनी स्थिति को लेकर पहले ही इतना त्रस्त था कि उसने तटस्थता की मुद्रा
अख्.ितयार कर ली थी। जैसा कि हम सुनते आये हैं कि हर रात की सुबह ज़रूर
होती है… या जब सारे रास्ते बन्द हो जाते हैं तो एक पगडण्डी मिल जाती है…
ठीक वैसे ही फलसफे के तहत धीरे – धीरे सब कुछ ठीक हो गया और 2003 के अंत
तक न सिर्फ आर्थिक रूप से सुदृढ़ हुआ भारत‚ आतंक व साम्प्रदायिकता से भी
उबर रहा है‚ और यहां तक कि हमारे पड़ौसी स्वयं हमारे सिखाये पाठ को रट कर
'अमन – अमन' करते हुए आगे आ रहे हैं। |
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