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यौन शोषण
पिछले दिनों बोलोजी में विवाहपूर्व
सेक्स तथा यौन शोषण विषयों को लेकर छपे कुछ लेखों की सकारात्मक तथा
नकारात्मक दोनों ही प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं। फिर बोलो जी की कहानियों
में वर्णित विवाहपूर्व तथा विवाहेतर सम्बंधों को लेकर दोहरे मापदण्डों के
आरोप भी एक दो पाठकों से मिले। कृष्ण आदित्य जी ने लिखा कि‚ " बोलो जी की
लेखिकाएं लेखों में कुछ और अभिव्यक्त करती हैं‚ कहानियों में कुछ और ।" एक
सीमा तक आदित्य जी सही कहते हैं किन्तु वे भूल रहे हैं कहानियां और लेख दो
अलग विधाएं हैं‚ दोनों की प्रेरणाएं अलग हैं‚ माध्यम अलग हैं और एक
अप्रत्यक्ष है दूसरा प्रत्यक्ष।
माना किशोर बालक भी महिलाओं द्वारा
शोषित होते हैं‚ पर ऐसे कुछ केसेज़ के बाद भी बालिकाओं और महिलाओं के यौन
शोषण के आंकड़े बहुत अधिक हैं प्रतिशत में। और एक महत्वपूर्ण बात कि शोषित
युवक को तो समाज में फिर भी स्थान मिल जाता होगा‚ लेकिन शोषित बालिका‚ युवती
या स्त्री को समाज हेय दृष्टि से देखता है‚ उसके विवाह में यही शोषण रुकावट
बन जाता है। अब हमारा समाज सदियों ही से ऐसा है‚ और इसे बदला नहीं जा सकता
तो क्या किया जा सकता है? कितने पुरुष होंगे ऐसे जो आज भी किसी बलात्कृत
युवति से विवाह करने को तैयार हो जाएंगे? बहुत दुर्लभ ही ऐसे युवक मिलेंगे। इसी संदर्भ में : |
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