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अब कोई विकल्प शेष नहीं क्या अब भी तर्क–कुतर्क की आवश्यकता
बाकि है? क्या अब भी किसी विश्लेषण की संभावना शेष है? अब किसी संदेह की भी
गुजांईश नहीं कि यह आतंकवादी हमले पाकिस्तान की शह से हो रहे हैं। अब तो
ठोस कार्यवाहियों को लेकर किसी बहस मुबाहिसे को बन्द करें हम। क्या अब समय
नहीं धैर्य‚ संयम‚ विवेक के सिद्धान्तों का जामा उतार कर इन कार्यवाहियों
के जवाब में आतंकवाद का समूल नाश कर दिया जाए। इस गुरूवार को 'पोटो'
या के प्रति खिलाफत या ' कोफीन स्कैम' के खिलाफ जनप्रतिनिधियों के शोर
सुनाई देने की जगह आतंकवादियों के हमले की गूंज सुनाई दे गई। अब हमारी भारतीय सिद्धान्तवादिता
कायरता का भ्रम देने लगी है। जब ग्यारह सितम्बर के कुछ ही समय बाद अमेरिका
ने अफगानिस्तान में आतंक के खिलाफ लड़ाई छेड़ कर अब तक तो तालिबानों को
नेस्तनाबूद तक कर दिया है। तो भारत अब तक किस क्षण का इंतज़ार कर रहा है?
क्या अब भी किसी और बड़े सफल आतंकवादी हमले का? माना इस हमले से भारत के
प््राधानमंत्री‚ मंत्रियों‚ सांसदों‚ नेताओं में से किसी का भी बाल बांका
नहीं हुआ ( भले ही छह सुरक्षा कर्मी और एकाध अन्य कर्मी मर भी गये तो क्या!!!!)
किन्तु क्या यह भारतीय संसद की अस्मिता का हनन नहीं था जो कि आजा.दी के बाद
पहली बार हुआ है। यहां तक कि पाकिस्तानी आतंकवादियों की पहुँच जम्मू की
विधान सभा‚ दिल्ली के लाल किले के बाद अब संसद तक हो गई है। और हमारी सरकार
के नेता और मंत्री तथा विपक्ष के नेता अब भी जवाबतलब या जवाबदेहियों‚ सरकार
की गलतियों‚ घोटालों की बहस में उलझे हैं। न पक्ष‚ ना विपक्ष‚ विवश‚
क्षुब्ध और आहत जनता को कोई विश्वसनीय नहीं नज़र आता। उलझ कर रह गई है
भारतीय जनता और उसने अपना भविष्य नियति के हाथों सौंप दिया है। |
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