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आतंकवाद की आग में जलता भारत

भारतीय लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। जनता द्वारा जनता के लिए जनता के इस लोकतंत्र की विशेषता यह है कि यह एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है। प्रत्येक भारतीय को जितनी स्वतंत्रता संविधान के द्वारा प्राप्त है उतनी शायद ही किसी देश के नागरिकों को प्राप्त हो। यहां के नागरिक भी बहुत अलबेले व मस्त स्वभाव के हैं। विभिन्न जाति व सम्प्रदायों के लोगों को आपसी सद्व्यवहार के साथ सौहाद्र्र पूर्ण वातावरण में जीवन यापन करते देख दूसरे देश के लोगों की आंखें चकित रह जाती हैं। दूर देशों से आने वाले पर्यटकों से भारत आने की उत्कट अभिलाषा का कारण पूछने पर वे कहते हैं कि भारत में वे शातिं की खोज में आए हैं। भारत एक गरीब राष्ट्र होते हुए भी शातिं के मामले में इतना धनी है कि भौतिक रूप से समृद्ध विदेशी दूर देश से चलकर यहां आते हैं। पर भारत की यह शांति सभी देशों को नहीं भाती।

बंटवारा मानव के सामाजिक व्यवस्था का अभिन्न अंग रहा है। एक पिता के दो पुत्र बड़े होकर आपस में अपने पैतृक सम्पत्ति का बंटवारा करते हैं। परंतु यह नियम राष्ट्र पर लागू नहीं होता। फिर भी हमारा भारत 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद होते समय उनकी कूटनीति के कारण भारत और पकिस्तान के रूप में दो हिस्सों में बंट गया था। मजहब और धर्म के नाम पर यह बंटवारा मानव महत्वाकांक्षा की पराकाष्ठा थी। भारत तो बंट गया पर भारत की आत्मा आज तक अविभाजित ही रही। मजहब के नाम पर इस बंटवारे ने हिन्दुओं और मुस्लिमों को पूर्ण रूपेण विभाजित नहीं कर पाया। अगर वास्तव में यह विभाजन मजहब में इमान रखने वालों का होता तो शायद आज भारत में एक भी मुसलमान नहीं पाया जाता। वे सारे के सारे पाकिस्तान में चले गए होते और इसी तरह पाकिस्तान में एक भी हिन्दू नहीं होता। भारत में रह रहे मुसलमानों से पूछने पर पता चलता है कि हिन्दुओं के कितना करीब वे अपने को महसूस करते हैं। और हिन्दुओं को भी उनके परिवारिक उमंग व क्लेश दोनों में ही शामिल होते हुए पाया जाता है। रही बात पाकिस्तान की तो पाकिस्तान अपने को मुस्लिम राष्ट्र मानता है।

विभाजन के बाद पाकिस्तान को जो भूभाग मिला वह उससे आज तक संतुष्ट नहीं है। लगता है कि आज भी वह 18वीं शताब्दि के राजतंत्र युग में ही जी रहा है। भारत ही नहीं लगभग अपने सभी पड़ोसी देशों में वह अपने सीमा क्षेत्र बढ़ाने हेतु अनुचित कदम उठा रहा है। अभी अभी 11 सितम्बर के अमेरिकी हृदय विदारक घटना के पश्चात् अफगानिस्तान के तालिबानियों का जो हश्र हुआ है वह सर्वविदित है। ये कट्टरपंथी तालिबानी भी पाकिस्तान के ही घिनौनी मानसिकता के उपज हैं।

भारत में भी पिछले कई वर्षों से पाकिस्तान ने आतंक की मुहिम चला रखी है। शुरू से ही मजहब के नाम पर अपनी सीमा बढ़ाने हेतु उसने कश्मीर के निवासियों की अमन चैन छीन ली है। कट्टरतावाद के पाठ पढ़ाने के मदरसे खोल रखे हैं। इस्लाम के नाम पर वह भारत में जेहाद का अभियान चला रहा है। 13 दिसम्बर 2001 को भारतीय शासन के रीढ़ ह्यसंसद भवनहृ पर फिदायीन हमला उसी के नापाक इरादों का परिणाम है। कश्मीर तो कश्मीर अब दिल्ली तक उसके आतंक की धधकती ज्वाला पहुंच चुकी है।

पाकिस्तान के स्वयंभू शासक ह्यजिन्होंने बाद में जर्बदस्ती वहां के राजा होने का सटीफिकेट प्राप्त कियाहृ जनरल परवेज मुशर्रफ इन आतंकी संगठनों के कितने हिमायती हैं‚ वह इसी बात से पता चलता है कि भारत के एक महानगर ह्यमुम्बईहृ में मार्च 1993 में श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट के अभियुक्त दाउद इब्राहिम को अपने यहां पनाह दे रखी है। जब वे भारत के साथ आपसी भेदभाव मिटाने हेतु भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के आमंत्रण पर आगरा शिखर वार्ता में शामिल होने के लिए भारत आए तो दाउद इब्राहिम की पाकिस्तान में उपस्थिति को नकार गए। उनके जाने के कुछ ही दिनों बाद पाकिस्तान के ही एक पत्रिका न्यूजलाइन ने काराची में रह रहे दाउद इब्राहिम के अलिशान महलनुमा मकान और उसके कृतित्व का ब्योरा "Portrait of a Don The story of Mumbai's underworld don, Dawood Ibrahim, reads like a page from The Godfather." शिर्षक से छापा। इसके लेखक थे श्रीमान गुलाम हसनैन जी।
इस प्रकार अगर भारत की जनता का यह सोच की पाकिस्तान के शासक ही भारत के आतंकवाद के वास्तविक प्रणेता हैं किसी कोने से गलत नहीं लगता है।
श्रीमान्र मुशर्रफ भारत के अंदर चल रहे आतंक का एक तरफ तो मूक समर्थन कर रहे हैं और दूसरी तरफ कश्मीर को समस्या बताकर भारत के साथ शांति से उसका समधान ढूंढ़ने के लिए पूरे विश्व से गुहार लगा रहे हैं। यानी समस्य खुद ही पैदा कर यह प्रचार कर रहे हैं कि कश्मीर एक समस्या है। उनसे क्या सही निर्णय की आशा की जा सकती है। जिनके मंसूबे को समझने के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि –

कुपथ कुपथ रथ दौड़ाता जो
पथ निर्देशक वह है
लाज लजाती जिसकी कृति से
धृति उपदेशक वह है

भारत का संसद भवन भारत की गरीमा है। यह भारतीयों के अमन चैन सुख शान्ति का स्रोत है। 13 दिसम्बर को भारत के दिल कश्मीर को आतंक के सहारे हथियाने का स्वप्न देखने वाले पाकिस्तान के आतंकी संगठनों ने उसके इसी स्रोत को निशाना बनाया है। वह भी तब जबकि भारत के कोने कोने के प्रतिनिधि उसमें विद्यमान थे। सभी मंत्री उपस्थित थे। यह ऐसा संवेदनशील स्थान है जहां अगर आतंकवादी अपने नापाक इरादों में सफल हो जाते तो भारत अनाथ हो जाता। यह भारत के गौरव पर करारा आघात है। घटनास्थल पर उपस्थित लोगों ने उन हमलावरों को पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाते हुए सुना। मुशर्रफ को जब भारतीय विदेश मंत्री श्री जसवंत सिंह का यह वक्तव्य सुनने को मिला कि इस घटना का दोषि पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठन लश्कर–ए–तोएबा है और उस पर भारत कार्रवाई करेगा तो उनके व उनके सरकार के बयान बदल गए। वे उस संगठन के समर्थन में भारत पर जवाबी कार्रवायी की धमकी देने से नहीं चुके। भारत को उनके मंसूबे समझने के लिए अब इससे आगे कोई और बात नहीं हो सकती। अब आतंकवादी भारत की सहिष्णुता की और परीक्षा नहीं ले सकते।

हमारे भारतीय महान हैं और अपने भारत की रक्षा के लिए मर्द क्या, पुरूष क्या और बच्चे क्या। सारे ही मर मिटने को तैयार हैं। इसकी पुष्टि इसी बात से हो जाती है कि आतंकवादियों को देखते ही संसद परिसर के मुख्य द्वार पर तैनात सुश्री कमलेश ने नारी होते हुए भी अपनी जान की बाजी लगा दी। निहत्थे जगदीश यादव ने तत्क्षण वाकी टाकी पर सारे प्रवेशद्वार बंद करने के आदेश देते हुए उन्हें ललकारा और उनकी गोली से शहीद हो गए। यही नहीं वहां मौजूद उपराष्ट्रपति के सुरक्षा कमाण्डो ने खुद मरकर भी उन्हें परलोक पहुंचा दिया। किसी ने भी अपनी जान की परवाह नहीं की। आतंक के ज्वाला की लपटें आज पूरे भारत में फैल चुकी हैं।

आतंकवादियों को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि भारत का हर नागरिक सैनिक है। परंतु दुख की बात यह है कि दुश्मन नपुंसक है। वह छद्म युद्ध से हमारा भारत छीनना चाहता है। काश वो वास्तविक मर्द होता और युद्ध के मैदान में हमसे फैसला करता। पर वह भारत के सहिष्णुता के हद को पार कर चुका है। अब भारत के प्रधानमंत्री ने भी आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने की आवाज बुलंद की है। इसके लिए पाक अधिकृत कश्मीर के आतंकी शिविरों में भी जान पड़े तो भारत परहेज नहीं करेगा। चाहे इस अभियान में पाकिस्तान भी खुलकर रणभूमि में आ जाए।

– सुधांशु सिन्हा "हेमन्त"
 

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