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भारतीय मध्यम वर्ग

भारत में आर्थिक आधार पर उच्च वर्ग और निम्न वर्ग को तो आसानी दो अलग श्रेणियों में रखा जा सकता है किन्तु मध्यम वर्ग में अपने आप में इतने स्तर हैं कि उसे एक श्रेणी में रख कर नहीं देखा जा सकता। भारत की आधी से अधिक जनता इसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है। वित्तीय आधार पर इसे जैसे चाहे बांट लो निम्न मध्यवर्ग‚ मध्य मध्यम वर्ग‚ उच्च मध्यम वर्ग‚ पर इनके उपर नीचे‚ दायें बायें बीच में कई और श्रेणियां निकल आती हैं। तभी तो ना‚ भारतीय मध्यम वर्ग को विश्व का सबसे बड़ा मध्यम वर्ग माना जाता रहा है।

यह वह वर्ग है जिसे समाज‚ परिवेश की चिन्ता सबसे अधिक सताती है। भौतिकवाद की दौड़ में यह वर्ग लंगड़ा कर दौड़ने को भी तैयार है। इस वर्ग में क्लर्कों‚ अन्य सरकारी कर्मचारी‚ अध्यापकों‚ छोटे मोटे व्यापारी से लेकर सरकारी अफसरान‚ मध्यम दर्जे के व्यापारी आदि सभी आ जाते हैं। जहां रोटी की मूलभूत आवश्यकता आसानी से पूरी हो जाती हो आप मध्यम वर्ग में आ जाते हैं। निम्न मध्यमवर्ग‚ जिसमें प्रवेश पाकर फिर कपड़े और समाज में रहने लायक कपड़ों और रहने को एक छत की दरकार होती है। वह भी मुहैय्या है तो अब आप मध्यवित्तीय मध्यमवर्ग में शामिल हैं। यहां से शुरु होती है फिर दौड़ भौतिकता वाद की। और इस भौतिकतावाद के आकर्षण का कहीं कोई अन्त नहीं होता। कितने कितने आकर्षण‚ सस्ते घरेलू सामान‚ टीवी‚ फ्रिज‚ कूलर। किसी समय में सम्पन्न घरों के ये चिन्ह आज लगभग हर भारतीय मध्यमवर्ग में आपको सहज ही दिख जाएंगे। घर के खर्चों में कटौती करके‚ किश्तों पर खरीद कर कैसे भी न कैसे जुटा ही लिया जाता है ये सामान। क्योंकि अपने अपने वर्ग का भी तो स्तर होता है और उस स्तर के अनुरूप होते हैं 'स्टेटस सिम्बल'। जिस तरह उच्च मध्यमवर्ग में किश्तों पर खरीदी गई 'सॅन्ट्रो' का चलन है।

एक समय था जब मध्यम वर्ग बहुत छोटा वर्ग हुआ करता था‚ अंग्रेजी हूकूमत के समय वह वर्ग जो बाबूओं और अन्य छोटे सरकारी पदों पर काम किया करता था। अंग्रेज ही थे जो स्वतन्त्र न्याय प्रणाली‚ रेल्वे‚ आधुनिक शिक्षा‚ स्वतन्त्र पत्रकारिता और केनाल्स और यह नवनिर्मित मध्यम वर्ग भारत को प्रदान करके गये। अंग्रेजों के भारत से जाने के बाद यह वर्ग बढ़ा और फिर शिक्षा और जागरुकता ने इस वर्ग को और बढ़ाया‚ आज यह समय है कि यह वर्ग विश्व का सबसे बड़ा मध्यम वर्ग है। इस मध्यमवर्ग ने आज की स्थिति में पहुंचने के लिये बहुत मेहनत की है‚ आरंभ में इस वर्ग को उच्च वर्ग द्वारा हीन दृष्टि से देखा जाता था‚ क्योंकि इस वर्ग में पढ़े लिखे बुद्धिजीवी तो होते थे पर उनके पास पैसे की कमी हुआ करती थी। पर इस वर्ग ने लम्बे संघर्ष और आत्मसमान के साथ देश ही नहीं विश्व में अपनी जगह बनाई है।

अब भारतीय मध्यमवर्ग की वित्तीय अवस्था को चाहे जो कहा जाए‚ इन्होंने अपने स्तर को सुधार की ओर ही अग्रसर किया है चाहे बचत कटौतियां करके‚ जीने के मूलभूत साधनों से उपर उठ कर भौतिक संसाधनों की ओर नज़र दौड़ाना और उन्हें पाना शुरु कर दिया है।

मध्यम वर्ग की वार्षिक आय पर हुए शोधों को देखा जाए तो हमारे इस निम्न मध्यम वर्ग में आम परिवार की वार्षिक आय अस्सी हज़ार से लेकर तीन लाख रूपये तक है‚ और इस वर्ग के परिवारों में आधे परिवारों के पास रेफ्रिजरेटर है और लगभग सभी परिवारों के पास टी वी‚ कैसेट रिकॉर्डर‚ स्कूटर‚ ब्लैण्डर आदि है ही। और भारत आज मिक्सी के लिये सबसे बड़ा उपभोक्ता बाज़ार है‚ और स्कूटर के लिये चीन के बाद दूसरा बड़ा उपभोक्ता बाज़ार।

एक समय था जब आम भारतीय मध्यम वर्ग में आने के बाद जूता पहनता था‚ अब कोई भी निम्न वर्गीय भारतीय भी पी वी सी सैण्डिल पहनता है। आज का मध्यम वर्ग विश्व का सबसे बड़ा हाउस होल्ड चीजों का उपभोक्ता वर्ग है‚ जो कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करता है। यह वह वर्ग है जो अपने स्तर को किसी न किसी कीमत पर ऊपर उठाना चाहता है‚ और पाश्चात्य जीवन शैली से बहुत प्रभावित रहता है.।

आज एक आम मध्यमवर्गीय भारतीय का एक बहुत महत्वपूर्ण लक्ष्य होता है कि चाहे एक कमरे का ही सही अपना घर हो। इसके लिये बैंकों ने और ऋण देने वाली कम्पनियों ने आकर्षक लोन्स की भरमार कर रखी है। और घर का सपना हर भारतीय के लिये बड़ा भावुक सपना होता है। वह किसी न किसी तरह इस सपने को पूरा कर लेना चाहता है। यह मध्यमवर्ग भारत के हर शहर और कस्बों में फैलता जा रहा है‚ यहां तक कि गांवों में भी यह वर्ग फैला है। ये आंकड़े बड़े रोचक लगते हैं जानकर सुनकर। लगता है हम विकास की ओर अग्रसर देश का हिस्सा हैं।

किन्तु सत्य और भी हैं जो थोड़े कटु हो सकते हैं। यह भौतिकता पूर्ण उपभोक्ता वाद यूं बुरा नहीं देखा जाए तो किन्तु जब यह स्तर का और होड़ा होड़ी का सवाल बन जाए तो…यह वाद इसी वर्ग के गले की हड्डी बन जाता है। और फिर सीमित आमदनी में अपने पड़ौसी की तुलना‚ बाज़ारों में अंटी पड़ी आकर्षक चीजें इसी मध्यमवर्ग के आम आदमी को सोचने पर मजबूर करती हैं। और आदर्शों‚ परम्पराओं के साथ इज़्जत से जीने वाला‚ ईश्वर से डरने वाला यही भारतीय महान मध्यमवर्ग अपने जीवन मूल्यों से नीचे उतरने की कश्मकश में फंस जाता है और एक पल आता है कि वह कमज़ोर हो जाता है और फिर भ्रष्टाचार और अनैतिकता का हाथ थामने में उसे देर नहीं लगती।
आज भारत में बाबू वो बेचारे बाबू नहीं रह गये‚ वे आम जनता ही नहीं‚ अफसरानों के लिये भी एक टेढ़ा पैच हैं। फिर क्यों न हों वे भ्रष्ट जब भारत में इनकमटैक्स कमिश्नर बांठिया जैसे पहले दर्जे के अफसर अपनी दो करोड़ की अघोषित आय के साथ पकड़े जा सकते हैं जो कि स्वयं आयकर अधिकारी हैं‚ तो वे तो बाबू ही हैं बेचारे‚ ये पाठ तो उन्हें इन्हीं अफसरों ने पढ़ाया है।


बस यही तो एक बुरा पहलू है उपभोक्तावाद का कि आधुनिक सुख सुविधा वाले साजो सामान वाला घर रखने के लिये केवल सीमित आमदनी से काम कैसे चले? हालांकि यही वर्ग है जो भारत के नैतिक मूल्यों को समर्थन देता है‚ इसकी आधुनिक सोच पर देश विकसित होता है‚ यह वर्ग बुद्धिजीवियों से अंटा पड़ा है। यह वह वर्ग है जो भारत में होने वाली हर घटना में रुचि लेता है‚ राजनीति‚ अपराध‚ समाज‚ आर्थिक व्यवस्था‚ विदेश नीतियों‚ कला‚ फिल्मों आदि में। और वह स्वयं भारत की राजनीति‚ कला‚ समाज और आर्थिक व्यवस्था‚ अपराध‚ साहित्य‚ कला और फिल्मों में प्रमुखतÁ हिस्सा होता है‚ और दर्शाया जाता रहा है। कुल मिला कर भारत का यह वर्ग भारत की आत्मा है‚ भारत की कमज़ोरी है तो ताकत भी। इस बार हमने इस अंक में साहित्यकोष में मध्यमवर्ग की कश्मकश पर आधारित एक मोहन राकेश के प्रसिद्ध नाटक 'आधे अधूरे' को स्थान दिया है.।
 

– मनीषा कुलश्रेष्ठ

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