मुखपृष्ठ  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | डायरी | साक्षात्कार | सृजन स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 Home |  Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!

You can search the entire site of HindiNest.com and also pages from the Web

Google
 

 

संपादकीय
प्रेम का रंग और मार्क शागाल



प्रेम का रंग कौनसा होता है? चित्रकारों से पूछा जाए? शागाल के चित्रों की गुनगुनाहट सुनें तो वे कहेंगे नीला। क्लिम्ट से पूछेंगे तो वे कहेंगे सुनहरा, मोद्ग्लियानी और अमृता शेरगिल के यहाँ यह जोगिया हो सकता है और पिकासो के यहाँ तो यह क्यूब्स में बंट कर जो चाहे हो जाए। क्योंकि मैंने इस अंक के लिए रूसी मगर वैश्विक पेंटर शागाल की पेंटिंग्स चुनी हैं। तो उनकी सुनते हैं -- 'हम कलाकारों के जीवन में एक रंग ज़रूर होता है, जो एक कलाकार के पैलेट के माध्यम से जीवन और कला को मानीख़ेज़ बनाता है, वह है प्यार का रंग।'

मार्क शागाल से हिंदी पाठक का परिचय विश्वप्रसिद्ध भारतीय चित्रकार अखिलेश जी ने कराया था। वह अलग बात है कि हिंदी का लेखक और पाठक अन्य कलाओं में अपनी रुचि कितनी दिखाता है? खैर...मेरा ध्यान तभी शागाल पर गया जब अखिलेश ने मार्क शागाल की आत्मकथा का हिंदी अनुवाद किया था और वह पुस्तक 'आपबीती' शीर्षक से राजकमल से प्रकाशित हुई थी। यह यह किताब एक आम आत्मकथा नहीं है बल्कि एक चमकीले रंगो का कैलाइडोस्कोप है यादों का-- माता - पिता, बचपन, पड़ोस, दोस्त, प्रेमिका, प्रेमी युगल, गाएं, कुत्ते, घर, छत, गलियां जो-जो ऑबजेक्ट – सबजेक्ट उनके चित्रों में मिलते हैं, वे आत्मकथा में भी सजगता से मौजूद मिलते हैं। उनका जीना, रंगना और लिखना एक ही बात कहता है... प्यार, ज़िंदगी और जुनून।
शागाल के चित्रों में प्रेमी जोड़ों की प्रेमरत, नृत्यरत, चुंबनरत उड़ती हुई अलौकिक- सी छवियां और रहस्यात्मक नीलापन बहुधा पाया जाता है।

मार्क शागाल उन चित्रकारों में से हैं जो कि प्रेम से भरे हैं। शागाल के चित्रों में हर चीज प्रेम के साथ शुरू और प्रेम ही के साथ खत्म होती है। यह उनके चित्रों में परिलक्षित होता है, उनके चित्रों के सब्जेक्ट में खुलता है। जैसा कि कहा जाता है कि शागाल के चित्र प्रेम, खुली आंखों के ख़्वाबों का लैंडस्केप हैं। हर चित्र मानो कोई कविता है, प्रेम की. विडम्बना की। उनका प्रेम इकहरा नहीं है। यह प्रेम जीवन के लिए, रंगों के लिए, लोगों के लिए, प्रकृति के लिए, यादों के लिए, सपनों के लिए, कला के लिए है। यही प्रेम आकाश के लिए और रात के लिए भी है तो उनके गांव के लिए. गांव के घरों के लिए, उनके माता-पिता और परिवार के साथ बीती हुई हर जीवंत घट्ना के लिए भी है। यही प्रेम उनके बनाए चित्रों का शिल्प है। वह रंगों से जुनून के तौर पर प्यार करते थे।
उनको अपनी पत्नी बेला और पेरिस के आकाश में उड़ते प्रेमियों को पेंट करना बहुत प्रिय था। उनकी कला में बिना किसी लेबल के अनूठा रोमांटिसिज़्म मिलता है। वे खुद कहा करते थे – “अगर मैं दिल से चित्र बनाता शुरु करता हूं तो वह हमेशा काम करता है अगर मैं दिमाग से काम लूँ तो काम नहीं बनता।“

जिस तरह उनके चित्र फंतासियों में रचे, मन की उड़ानों में सजे, अनुभूतियों से दमकते लगते हैं उन्हें किसी खास आर्ट मूवमेंट में रखना मुश्किल है। वह ना तो क्यूबिस्ट थे और ना ही सर्रियलिस्ट। भले ही उनके चित्रों में उड़ते प्रेमी और घर की छत के ऊपर गाय जैसे सर्रियलिस्ट दृश्यांकन करते रहे थे मगर उन्होंने अपने आप को किसी भी औपचारिक क्लासिफिकेशन और मेनिफेस्टो से दूर रखा था वह हमेशा कलाकारों में एकाकी और सपनों में डूबे हुए माने गए।

शागाल को पहली नजर का प्रेम 1909 में हुआ था। जब एक अमीर ज्वैलर की बेटी एक पेंटर बनने के ख्वाब देखते गरीब युवक से आकर्षित हो गई। तब शागाल लियोन बैकेस्ट के साथ इंटर्न के तौर पर काम कर रहे थे।
उनकी आत्मकथा हर व्यक्ति को पढ़नी चाहिए। चाहे वह कला से प्रेम में हो न हो ज़िंदगी के प्रेम में ज़रूर पड़ जाएगा। वे इतना चित्रात्मक लिखते हैं कि वह कविता में बदल जाता है - " उसकी खामोशी मेरी थी, उसकी आंखें मेरी थीं। पहली बार मिल कर ही ऎसा लगा था कि जैसे कि वह मेरे बचपन के बारे में हर चीज जानती थी। मेरा वर्तमान, मेरा भविष्य भी। मानो वह मेरे भीतर सब कुछ देख सकती थी। मानो उसने मुझे हर वक्त देखा परखा हो। जबकि मैंने उसे तब पहली बार देखा था मगर ऎसा लगा कि जैसे वह मेरे से से ज़रा सी दूरी पर रहती हो। मैं जान गया था कि यही है यही है मेरी जीवन साथी। उसका पीली झांई वाला रंग और आंखें कितनी बड़ी, गोल और काली थी। वह मेरी आंखें थी, मेरी आत्मा थीं।“
आप शागाल के चित्रों में बेला को बखूबी पहचान लेंगे। वह उन चित्रों से एक खामोश पीली त्वचा वाली गुमसुम-सी लड़की दिखाई देती है। मगर वह जोकि शागाल के प्रति उत्साहित और समर्पित थी। शागाल की नीली आंखों से सम्मोहित थी।
बेला के शब्दों में- “उनकी आंखों में झांकने पर ऐसा लगेता था कि वह ऐसी नीली हैं कि मानो सीधे आसमान से गिरी हों। वे बहुत अजीब आंखें थीं, लंबी बादाम के आकार की और वो अपने आप में ऐसी तैरती हुई मालूम होती थीं जैसे कि कोई छोटी - छोटी दो नावें हों।“
अहा! दो प्रेमी कैसे एक – दूसरे की आंखों का शाब्दिक चित्रण कर रहे हैं। बेला ने अपनी पहली मुलाकात के बारे में भी लिखा था।
“ मैं उनकी आंखे देखकर चकित थी। वह ऐसी थीं जैसा कि आसमान होता है। मैंने अपनी आंखें झुका ली थीं। हममें से कोई भी कुछ नहीं कह रहा था, बस अपने दिलों की धड़कनें महसूस कर रहे थे।“

शागाल सर-ता-पांव बेला के प्रेम में थे और जब तक कि वे पेरिस में रहे हर वक्त बेला के बारे में ही सोचते थे ।
पेरिस में कई साल 1910 और 1914 के साल बिताने के बाद दोनों ने मिलकर बेला के माता-पिता को मनाना शुरु किया। मगर बेला के अभिभावक दोनों के प्यार को तवज्जोह दिए बिना यह चिंता कर रहे थे कि इस पेंटर का न तो कोई आर्थिक स्तर है न कैरियर। जब बेला ने कहा कि केवल शागाल ही उसके लिए सबसे अच्छा पति साबित होगा तब बहुत मुश्किल से वे तैयार हो ही गये। इस तरह शागाल और बेला ने शादी कर ली, 25 जुलाई 1915 को।
शादी के बाद शागाल का बेला के प्रति अथाह प्रेम और बेला के साथ की आनंद की धाराएं कला की दिशा में भी उमड़ पड़ीं। शागाल की पेंटिंग ‘बर्थडे’ में हम यह देख सकते हैं कि बेला और शागाल कैसे 'किस' कर रहे हैं । चित्र में गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध वह प्रसन्नता से हवा में कैसा उड़ रहा है और बेला भी ज़मीन से पैर उठाए उसका साथ देने को तैयार मालूम होती है और उसके हाथ में फूलों का गुलदस्ता है। शागाल उस समय के अपने कमरे को गहन बारीकियों से रचते हैं ऐसा कि वह जगह बिल्कुल भी वास्तविक प्रतीत नहीं होती है। लेकिन लिनन की चादर की कढ़ाई, चाकू और मेज़ पर पड़ा बटुआ और कमरे से बाहर दिखता दृश्य इतनी बारीकी से चित्रित हैं।
शागाल इस चित्र में अपनी नई खुशी को एक कवितात्मक अंदाज में रंगों के माध्यम से हम तक पहुंचाते हैं। चित्र भले ही सर्रियल हो लेकिन उस उनकी खुशी रियल है।
उनकी आत्मकथा पढ़ने के बाद और उनकी चित्रों को लगातार देखने के बाद उस समय को महसूस किया जा सकता है उनका बेला के प्रति अगाध प्रेम और वह बेला के साथ बिताए दिनों की खुशियां। मानो कि वह चकित हो कि उन्हें जीवन में कभी बेला जैसी लड़की का प्यार भी मिल सकता है।
इसी खुशी का परिणाम कि एक साल से भी कम समय में दोनों ने अपनी इकलौती संतान ईडा को जन्म दिया। मूल का सूद पाकर बेला के माता पिता का दिल पिघल गया और वे शागाल को अपना मानने लगे।
शागाल लिखते हैं – “ हर सुबह और शाम वह मेरे स्टूडियो में प्यार से बेक किए हुए केक, तली हुई मछली दूध और रंग - बिरंगे कपड़े और लकड़ी के ईज़ल बनाने के बोर्ड लाया करती थी। मैं बस अपने कमरे की खिड़की खोल दिया करता था और आकाश के नीले विस्तार, प्यार और फूलों में उसके साथ खो जाया करता था। या तो पूरे सफ़ेद या पूरी काले लिबास में वह मेरे चित्रों पर आत्मा बन छाई रही है, मेरे चित्रों की केंद्रीय छवि रही है।“
शागाल की पेंटिंग 'बेला इन वाइट कॉलर' और 'बर्थडे' देखें तो ये पंक्तियां मन छू जाती हैं। 'एक कोमल मना, सपने देखने वाले, कल्पनाओं से भरे पेंटर की प्रेमिका । “लकी बेला।“ कहने का मन कर जाता है। लेकिन इस ‘लक’ को नज़र लग गई। वह कहानी आगे।
शागाल ने बाद में भी जब प्रेमियों को पेंट किया हमेशा एक मिस्टिकल ब्लू रंग में पेंट किया। नीले रंग में सराबोर प्रेमियों के पीछे चांद पीछे लटका होता था। हो सकता है वे इन चित्रों के बहाने अपनी प्रेम कहानी को दोबारा दोहराते रहा करते हों। उन्होंने ‘लवर्स इन ग्रीन’ भी पेंटिंग बनाई लेकिन उसमें भी नीले रंग का मोह नहीं छोड़ सके। सपनीलापन उनके चित्रों का मुख्य स्वर।

अब उनकी प्रेम कहानी पर आगे बढ़े तो सेंट पीटर्सबर्ग में अपनी शादी के शुरुआती साल बिता कर बेहतर भविष्य के लिए उन्होंने फिर से रूस छोड़ दिया था। 1922 में पैरिस में आकर सैटल हो गए थे। थोड़ी दिन बाद बेला और इडा भी उनके पास आ गये थे। यूरोप में माहौल जब बिगड़ा तो तो वह 1941 में न्यूयॉर्क चले आए।

दुर्भाग्यवश जो सपना 1909 में शुरू हुआ था 2 सितंबर 1944 में टूट गया। शागाल और बेला साथ-साथ बूढ़े न हो सके। एक प्रेरणा, एक म्यूज़ जिसने जीवन और कैनवास प्यार से भरा था। शागाल के साथ तीन दशक साथ रह कर चली गयी। हताशा में शागाल ने अपना कैनवास उलटा करके रख दिया और छ: महीने रंगों से हाथ नहीं लगाया। ऐसा उसके पेंटिंग के कैरियर में पहली बार हुआ।
शागाल ने 1952 में वावा ब्रोडस्की यानि वेलेन्टीना से दुबारा शादी तो की मगर उनके चित्रों में बेला का नील हरित आलोक बना रहा। वह मर चुकी थी मगर उसका प्रेम इस समंदर में उनके जहाज़ को ध्रुव तारे की तरह रास्ता दिखाता रहा।
प्रेम का रंग जो भी हो मगर उसकी तात्विकता ऐसी होती है कि लोग चले जाते हैं मगर वह अमर ऊर्जा की तरह प्रेरणा बन साथ चलता रहता है।
इन्हीं शब्दों के साथ यह अंक आपके हाथों सौंपती हूं।

- मनीषा कुलश्रेष्ठ

Top  

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com