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घंटा

घंटो ओर मंदिरों का बड़ा गहरा संबंध है आपस में!  बिना घंटो के कोई मंदिर पूरा नहीं होता ! घंटे पहचान है मंदिर की!  और मंदिर के बिना घंटे किस काम के!  देवता का प्रभुत्व घंटो की संख्या परनिर्भर करता है ! जितने ज़्यादा घंटे उतना बड़ा देवता ! घंटे पहले कभी ऊँघते देवता को जगाने केकाम आते थे पर अब वो केवल उसके मनोरंजन के प्रयोजन से अपनी जगह पर लटके होते है !

मंदिर बनाने वाले पूरी कोशिश करते हैं उसे जितना बड़ा कर सकते हैं कर लें ! जितनी भव्य प्रतिमाउसमे स्थापित कर सके उसमे ,कर ली जाये ! सुंदर ,सुडौल ,सजी धजी आकर्षक प्रतिमा ! आमतौर पर देवप्रतिमा गर्भग्रह में स्थापित होती है ! लोगों की पहुँच और उनके स्पर्श से दूर ! लोगोंकी पहुँच प्रतिमा के सामने टंगे घंटे तक ही होती है ! आईये देवता को साष्टांग प्रणाम कीजिये ! प्रसाद चढाईये और धन्य हो जाइये ! आपकी पहुँच केवल घंटे तक ही संभव है ,उसके आगे जानादुस्साहस है ! देवता अप्रसन्न हो सकते है उससे और बहुत मुमकिन है देवता के पहले पुजारी हीआपको खदेड़ दें आपको !

एक बार प्राण प्रतिष्ठा भर हो जाये ! देवता आपकी पहुँच से दूर हो जाते है फ़िर ! आप दूर सेउसके दर्शन लाभ कर सके तो अहोभाग्य आपके ! और फिर देवता बार बार विश्राम करने चलाजाता है ! पट बार बार बंद हो जाते हैं मंदिर के ! आप बस मुँह बाये प्रतीक्षा करते हैं !

आप दूर से ही याचना करते हैं देवता से ! देवता को देखकर यह तय कर पाना हमेशा मुश्किलहोता है कि उसने हमे देखा भी या नहीं ! हमारी बात सुनी भी है या नहीं ! बदले में वो कुछ कहता भीनही ! हां उसके चेहरे पर वो लोकलुभावन मुस्कुराहट हमेशा मौजूद होती है ! आप को बस तसल्लीकरनी होती है ! इस संतोष और उम्मीद के साथ लौटना होता है मंदिर से कि हम अपनी बात कहआये हैं और हो सकता है कि हमारी भी सुनवाई हो जाये !

ऐसे में आप केवल घंटे बजा सकते हैं ! घंटा कभी किसी को ऐसा करने से रोकता नही !

जो भी जबर हो उसे बजा सकता है ! घंटा आमतौर पर बस ऐसी लटका होता है जहां पहुँचना हरकिसी के लिये आसान होता है ! वो मानकर चलता है कि बजना ही नियति है उसकी ! ऐसे मेंजिसकी मर्ज़ी हो उसे बजा जाता है ! वो बुरा नहीं मानता ! उसकी औक़ात ही नहीं होती कि वो बुरामाने ! घंटा हमेशा गरीब होता है और केवल इसलिये होता है कि अमीर देवता के लिये बज  सके !

वैसे घंटा ना हो तो देवता भी अनमना हो सकता है !

घंटे ईश्वर से कुछ अपेक्षा नहीं करते ! वे अपे़क्षा नहीं करते इसलिये वे  घंटे है! अपेक्षित होनाअसंतुष्ट होने का पहला चरण है ! असतुष्ट होते ही घंटा ,घंटे होने की पात्रता खो देता है ! घंटाप्रश्न नहीं करता ,अपनी तरफ़ से वो कोई आवाज़ करे ऐसी बहकी बात उसके दिमाग़ में कभीआती ही नही ! आमतौर पर दिमाग़ होता ही नहीं उसमे ! होता है तो वो उसका इस्तेमाल करने सेबचता है! वो जानता है कि बस लटके रहने के लिये ही बना है वो इसलिये बस लटका रहता है!

घंटो से यही अपेक्षा होती है कि वो तभी बजे जब उन्हें बजाया जाये! अपने आप बजने लगे वो तोदेवता की नींद में विघ्न उपस्थित हो सकता है ! वैसे भी घंटे कभी ऐसी गलती करते देखे नही गये हैं! इसीलिये देवता को घंटे सदैव प्रिय होते हैं और प्राय: घंटे ही प्रिय होते हैं !

घंटा होने की तुलना केवल घंटे से की जा सकती है ! घंटा होना कैसा होताहै ये घंटा होकर ही जाना जा सकता है ! घंटा होना खोखला हो जाना है ! आमतौर पर एकरसता और सन्नाटा ही लिखा होता है उसकी क़िस्मत में ! एक बार लटक भर जाये वो कहीं तो फिर सालो सदियों तक बिना किसीबदलाव की उम्मीद के वही बने रहना होता है उसे ! कुल मिलाकर घंटा होनाएक त्रासदी है जिसे केवल घंटा ही महसूस कर सकता है !

एक घंटे में बदल जाना ही नागरिक जीवन की सार्थकता है ! इसीलियेआईये कोशिश करें कि हम सभी घंटे में बदल जायें ! जहां टांग दिये जायेंटंगे रहें ! अपनी तरफ़ से क़तई शोरगुल ना करें ! कोई भी बजा जाये ! लेशमात्र भी प्रतिरोध ना करें ! यह मान लें कि प्रजातंत्र के इस मंदिर में आपघंटा होने के लिये ही जन्मे हैं ! एक शांत ,सुसभ्य ,अनुशासित घंटे में बदलजाना ही नागरिक जीवन की सार्थकता है ! इसलिये आईये घंटे हो जायें !
 

- मुकेश नेमा
अपर आयुक्त आबकारी मध्यप्रदेश
9425994259

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