अभी घर से निकलूंगी तो
दस मिनट बाद होउंगी
टेलेफोन बूथ में
दस मिनट बाद सुनूंगी
कायनात के उस ओर से आती आवाज़
रुकी रहेगी सांस दस मिनट
रुकी रहेगी रफ्तार दुनिया की
भीड़ से गुज़रुंगी
कि भीड़ दिखाई नहीं देगी
न सुनाई देगा शोर
दस मिनट सूर्य
खुद को छिपा लेगा
बादलों के पीछे
दस मिनट तक रुकी रहेगी हवा
खाली हो जाएंगे फेफड़े
पृथ्वी भूल जाएगी परिक्रमा अपनी
चिड़िया अपनी उड़ान के बीच ठहर कर
देखेगी मुझे सहमी हुई
जन्म लेती कोंपलें
ठहर जाएंगी जन्म के मध्य
लहर–लहर के मध्य
ठहर जाएगी खामोश
समुद्र गरजना भूल जाएगा
नौकाएं भूल जाएंगी बहना
दस मिनट बाद खामोश हो जाएंगे सारे तार
सिर्फ एक तार बोलेगा
सूर्य को परे ठेलती बारिश
दस मिनट बाद
गीली सड़कों पर दुगुनी तेजी से
फिसलेगा कालचक्र
खाली जगह को भरने के लिये।
कविताएँ
दस मिनट
आज का विचार
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।
आज का शब्द
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।