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ख़ुशी के घर में पहला दिन
थिम्फू डायरी : पल्लवी त्रिवेदी
11 जून 2019
थिम्फू
सुबह करीब 7 बजे आँख खुली । थोड़ी देर बिस्तर पर ही पड़े रहे । हल्की खुमारी
बाकी थी । अगर घर होता और छुट्टी का दिन होता तो ऐसी खुमारी में
अलसाते-अलसाते मैं पूरा दिन निकाल देती । छुट्टी के दिन नाश्ता करने के बाद
एक झपकी लेने का अद्भुत आनन्द होता है । मगर यहाँ सम्भव नहीं कि अनमोल सात
दिनों में से एक दिन सोते हुए गुज़ार दिया जाए । बस इतना ही सम्भव था कि
उठने के बाद दस पन्द्रह मिनिट बिस्तर पर पड़े रहो । गड्डू ने चाय-कॉफ़ी ऑर्डर
कर दी थी और कुश और देवेन को भी हमारे कमरे में ही बुला लिया था ।यह तय
किया कि नहा धोकर इस होटल को अलविदा कहा जाए और नाश्ता भी कहीं बाहर ही
किया जाए । 9 बजे हमने उस हँसते हुए स्टाफ को हँसते हुए ही गुड बाय कहा ।
यहाँ यह अच्छा है कि भूटानी मुद्रा और भारतीय मुद्रा की दर भी समान है और
वे लोग दोनों मुद्राएँ इस्तेमाल करते हैं । लेकिन भारतीय बैंक के ए.टी.एम
कार्ड यहाँ स्वीकार नहीं कर रहे थे । जयगांव से कैश न निकाल पाने के कारण
हमारे पास कैश उतना नहीं था कि सात दिन तक चल सकता।
देखा जाएगा ... कुछ न कुछ तो रास्ता निकल ही आएगा ।
होटल से बाहर निकलकर दिन के उजाले में थिम्फू को देखा तो अवाक रह गए इसकी
सुन्दरता से । चारों ओर से ऊंचे –ऊंचे पहाड़ों के बीच घाटी में बसा थिम्फू
एक हरे किनारे वाले कटोरे की तरह है । बाहर निकलकर हम अपने अपने मोबाइलों
पर होटल सर्च करने में लग गए । जो होटल ठीक दिखाई देता उसी ओर गाड़ी घुमा
लेते । सात या आठ होटल्स घूमने में हमने आधे से ज्यादा थिम्फू शहर घूम डाला
। कुछ पैदल तो कुछ गाड़ी से । ग्यारह बज गए थे और इतने होटल देखने के बाद भी
हमें कोई पसंद नहीं आया था । नाश्ता नहीं किया था सो भूख भी तगड़ी लग आई थी
। अभी होटल ढूंढना है, नाश्ता करना है और फिर थिम्फू के इमिग्रेशन ऑफिस
जाकर पुनाखा का परमिट बनवाना है । बहुत काम है और उसके बाद बुद्धा पॉइंट
जाना है ।
सबसे ज्यादा हैरत तो हमें इस बात की हो रही थी कि इतनी देर से गाड़ी को
होटलों की खोज में घुमाते घुमाते देवेन के चेहरे पर एक भी शिकन नहीं आई थी
और न ही उसने एक भी बार नाश्ते की डिमांड की । देवेन और इतनी देर भूखा रह
ले ... असम्भव । उसे एकदम वक्त पर नाश्ता ,खाना चाहिए ही चाहिए । फिर चाहे
जितनी गाड़ी चलवा लो, पैदल चलवा लो । कोई दिक्कत नहीं । पर आज तो कमाल ही हो
गया था ।
ग्यारह बजे एक सेंटर पॉइंट पर बढ़िया कैफे दिखाई दिया और होटल तलाश बंद कर
हम सबसे पहले उस कैफे में ब्रेकफास्ट करने घुस गए । नाश्ता करते हुए देवेन
ने राज़ खोला कि वह सुबह जल्दी उठ गया था तो होटल के रेस्टॉरेंट में पोहे का
नाश्ता कर चुका था ।
कमीना है तू ... तब से क्यों नहीं बता रहा था ? हम तेरी चिंता में घुले जा
रहे थे कि अपना बौना दादा भूखा है ।
देवेन कुछ न कहकर सिर्फ मुस्कुरा दिया । यही उसकी अदा है ।
नाश्ता करके बाहर निकले और सबसे पहले इमिग्रेशन ऑफिस की तरफ भागे । अगर लंच
टाइम हो गया तो दोपहर तक इंतज़ार करना पड़ेगा ।इमिग्रेशन ऑफिस एक छोटा सा
ऑफिस था जो सड़क के किनारे अन्य सरकारी ऑफिसों के साथ बना हुआ था । वहां
जाकर आगे पुनाखा और फोब्जीका वैली के लिए परमिट के लिए एप्लाई किया ।
मुश्किल से दस मिनिट में सारी औपचारिकताएं हो गयीं । यहाँ भी काउन्टर पर
भूटानी महिला अधिकारी ही बैठी हुई थीं । हमसे कहा गया कि अब 4 बजे आकर अपने
परमिट कलेक्ट कर लें ।
चलो ..एक ज़रूरी काम हुआ । अब होटल तलाश किया जाए ।
हम अब एक लास्ट होटल "कीसा विला" देखने चल दिए । अगर यह पसंद आ जाता है तो
ठीक वरना एक होटल को हमने फाइनल कर रखा था ।
लिफाफा देखते ही मजमून भांप लिया था हमने । सुंदर स्वच्छ चौराहों , फूलों
की क्यारियों के बीच खूबसूरत सड़कों और राजा के पैलेस को पार करते हुए जिस
होटल के बाहर जी.पी.एस.हमें ले आया था वह बाहर से ही इतना सुंदर था कि मन
मचल गया इसी होटल में रुकने को । पत्थर के फर्श और पत्थरों की ही दीवारों
के बीच लकड़ी का सुंदर दरवाज़ा जिस पर चटख रंगों में भूटानी पेंटिंग्स बनी
हुई थीं । गेट के अंदर जाते ही बाईं ओर एक बहुत सुंदर लॉन जिसमें गुलाबों
की बड़ी झाड़ियाँ थीं और बहुत बड़े साइज़ के सुर्ख लाल और सफ़ेद गुलाब उनमें लगे
हुए थे । एक हिस्से में लाल हॉलीहॉक अपनी पूरी छटा के साथ खिले हुए थे ।
हॉलीहॉक के नीचे पीले नन्हे कॉसमॉस एक कतार में और लॉन के बीच में एक बड़ा
बॉटल ब्रश का पेड़ । बाउंड्री वाल पर बेलिया गुलाब के गुलाबी रंग के फूलों
ने पूरी दीवार को ढँक रखा था । होटल के भीतर मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर एक
छोटा सा फाउन्टेन और दीवारों पर भूटानी लोक कला चित्र ।
हे भगवान ... यहाँ कमरे मिल जाएँ और कमरे भी अच्छे हों । " सबने मन में दुआ
मांगी ।
और भगवान ने सुन ली । मै नास्तिक दो पल के लिए आस्तिक हुई और फिर नास्तिक
हो गयी । यहाँ का मालिक भी बेहद सौम्य और हंसमुख आदमी था । और फिर से दो
तीन भूटानी बालाएं प्रकट हुईं हमारा सामान ले जाने के लिए । अब तक हम भी
सहज हो गए थे । उनकी हंसी से भी और उनके मजे लेकर काम करने के अंदाज़ से भी
। कमरे बेहतरीन थे । बड़े ,खुले,हवादार और सुरुचिपूर्ण ढंग से सुसज्जित
।बड़ी-बड़ी खिड़कियों से सामने बादलों से ढके पहाड़ , भूटान के राजा का पैलेस
और होटल के सामने वाली फूलों से घिरी स्ट्रीट दिखाई दे रही थी । वक्त देखा
तो करीब 1.30 बजा था । करीब आधा घंटा हम खिड़की के बाहर का नज़ारा देखते हुए
भूटान की सुन्दरता , यहाँ के लोगों का सिविक सेन्स और बेहतरीन यातायात
व्यवस्था के बारे में बातें करते रहे ।
मज़ाक से इतर हम अभी भी जानना चाह रहे थे कि ये लोग इतने खुश क्यों हैं ? और
इनके लिए प्रसन्नता के मायने और मापदंड क्या हैं ? अभी तक भूटानी नागरिकों
से जो थोड़ा बहुत शुरूआती वार्तालाप हुआ था वो केवल फुन्शोलिंग में
इमीग्रेशन ऑफिस और ट्रेवल एजेंट के ऑफिस में हुआ था । आज सुबह से हम थिम्फू
की गलियों, चौराहों और सड़कों के चक्कर काट रहे थे और यहाँ की पार्किंग
व्यवस्था, यातायात व्यवस्था , करीने से सजी दुकानों और किसी भी तरह के
प्रदूषण से मुक्त आबोहवा को देखकर मुग्ध हो गए थे । भारत में ऐसी सड़कों की
कल्पना भी असम्भव जहाँ कोई गाड़ी नो-पार्किंग ज़ोन में ना खडी हो , हमारे
बाज़ारों में ऐसी कोई दुकान नहीं जिसके आगे अतिक्रमण कर दुकान को विस्तार न
दिया गया हो , ऐसा कोई चौराहा नहीं जहाँ लाल बत्ती के हरा होने के तीन
सेकण्ड पहले ही चालक अपनी गाड़ी न बढ़ा देते हों । सब भाग रहे हैं हमारे यहाँ
, सबको जल्दी है । किस बात की है? ये पता नहीं । यहाँ किसी को कोई जल्दी
नहीं हैं । सब तसल्ली से अपना काम कर रहे हैं । कोई आपाधापी नहीं , कोई
हडबड़ाहट नहीं । क्या यही एक छोटी सी बात अंदरूनी शान्ति और सुकून के लिए
ज़रूरी नहीं ?
भूटान का कुल क्षेत्रफल ३८३९४ वर्ग किमी है और यहाँ के संविधान के अनुसार
देश के कुल भू-भाग का 60 प्रतिशत जंगल होना ज़रूरी है । जो कि वर्तमान में
७० प्रतिशत से भी ज्यादा है । भूटान की कुल जनसंख्या 7 लाख है यानी भोपाल
की कुल जनसंख्या की भी एक चौथाई । और कुल बीस जिले हैं पूरे भूटान देश में
। भूटान में कम जनसंख्या होना ही एक बहुत बड़ा वरदान है ।कम लोगों का न केवल
प्रबंधन बेहतर तरीके से किया जा सकता है बल्कि नियमों का पालन भी बेहतर ढंग
से सुनिश्चित किया जा सकता है ।अगर यही देश इंसानों से पटा ड़ा होता तो शायद
यह भी अव्यवस्था से जूझ रहा होता । लेकिन क्या सिर्फ अधिक जनसँख्या होने से
हम अपने देश के भ्रष्टाचार, बदहाली, प्रकृति और देश के प्रति गैर
जिम्मेदाराना रवैया ,गंदगी और हर जगह फैली अव्यवस्था को जस्टिफाई कर सकते
हैं ? उन करोड़ों लोगों का क्या जो अमीर हैं ,सफल हैं , शिक्षित हैं लेकिन
फिर भी अपने नागरिक कर्तव्यों से विमुख हैं , भ्रष्टाचारी ,स्वार्थी और
लोलुप हैं । इसका अर्थ है कि एक खुशहाल देश बनाने में कम जनसंख्या मददगार
ज़रूर साबित हो सकती है लेकिन यही सर्वोच्च घटक नहीं है। हम अपने देश की
बदहाली का ठीकरा जनसंख्या के अलावा आसानी से अशिक्षा और बेरोजगारी और गरीबी
पर फोड़ देते हैं लेकिन भूटान भारत से भी ज्यादा गरीब देश है जहाँ संसाधन
बेहद कम हैं और बेरोजगारी यहाँ भी मौजूद है ।
तो फिर वह क्या चीज़ है जो भूटान को खुशहाल देश बनाती है यहाँ की गरीबी,
कठिन जिंदगी और बेरोजगारी के बावजूद ?
हमें इसी प्रश्न का उत्तर तो अपनी जिंदगी में भी चाहिए जिसे हम भूटान में
तलाश करने चले आये हैं ।
इन्हीं प्रश्नों से गुज़रते हुए और संभावित उत्तर खोजते हुए ढाई बज गए । अब
हमें लंच करना है , इमिग्रेशन ऑफिस से परमिट कलेक्ट करना है और फिर बुद्धा
पॉइंट जाना है । हम उठ पड़े और निकल लिए फिर एक बार थिम्फू शहर में ।
सबसे पहले लंच किया और साढ़े तीन बजे तक इमिग्रेशन ऑफिस में पहुँच गए ।
हमारा परमिट बना हुआ रखा था । फ़टाफ़ट उठाया और निकल गए बुद्धा पॉइंट के लिए
। बुद्धा पॉइंट शहर से करीब दस किमी दूर है और गाड़ियां आसानी से ऊपर तक
जाती हैं ।मौसम एकदम आशिकाना बना हुआ था । चारों ओर पर्वतों पर ठहरे बादल
शहर की ओर उमड़े चले आ रहे थे । हलकी बारिश में धुंध की एक महीन चादर ओढ़े
शहर बला का खूबसूरत लग रहा था । किरा और बक्कु पहने भूटानी स्त्री और पुरुष
पैदल-पैदल सड़कों पर चले जा रहे थे । ये लोग पैदल खूब चलते हैं । छोटे
बच्चों को पीठ पर सावधानी से बांधे ये मेहनतकश स्त्रियाँ एकदम मज़े से अपना
सारा काम करना जानती हैं । और भूटान की एक ख़ास बात कि यहाँ हर जगह चौराहों
और रास्तों पर यहाँ के राजा और रानी की तस्वीरों के बड़े-बड़े होर्डिंग्स
लगाए हुए हैं ।
ना ना ... यूं नहीं कि राजा रानी सिंहासन पर बैठे हुए हैं और अपने राजा
होने का एलान कर रहे हों । राजा,रानी यूं जैसे कोई भी आम इंसान होता हो
अपने फुर्सत के पलों में । राजा रानी नदी किनारे हाथों में हाथ डालकर टहलते
हुए , पार्क में किसी सुंदर बेंच पर एक दूसरे के साथ बैठे हुए , अपने बच्चे
को गोद में उठाकर दुलारते हुए । प्यार , परिवार और साथ को परिभाषित करते
हुए । भूटानी मूल्यों को प्रदर्शित करते हुए , अपने खुश होने को जताते हुए
।इतने जवान और खूबसूरत जोड़े को देखकर किसी फ़िल्मी जोड़े का आभास होता है ।
इस बेहद हसीन रॉयल कपल राजा जिग्मे खेसर वान्ग्चुक और रानी जेटसन पेमा
वांगचुक की प्रेम कहानी भी किसी परीकथा की तरह है । जब सत्रह बरस के प्रिंस
जिग्मे पहली बार पेमा से मिले तब पेमा कुल सात बरस की थीं और भूटान के एक
सामान्य परिवार की लड़की थीं । पेमा ने उन्हें एक पिकनिक में देखा और उनसे
कहा कि वे उनसे शादी करेंगी । प्रिंस ने हँसते हुए बालिका पेमा से पूछा कि
क्यों ? तो पेमा ने जवाब दिया कि वे उन्हें अच्छे लगे । तब प्रिंस ने कहा
कि जब वो बड़ी हो जायेगी और अगर दोनों में प्रेम हुआ तो वे उससे विवाह
करेंगे । तब पेमा यह नहीं जानती थीं कि यह नौजवान भूटान का प्रिंस है ।
राजा बनने के बाद जिग्मे दुबारा पेमा से मिले तब तक पेमा एक खूबसूरत ,ज़हीन
और प्रतिभावान युवती बन चुकी थीं । दोनों में प्रेम हुआ और 2011 में इकतीस
वर्ष के राजा जिग्मे ने इक्कीस बरस की पेमा को अपनी रानी बना लिया । दोनों
एक साथ भूटान की जनता को खुशहाल बनाने में लगे हुए हैं और जनता के लिए बेहद
सुलभ हैं । यही कारण है कि भूटान की जनता इन दोनों को बहुत प्रेम करती है ।
एक और खूबसूरत बात इस प्रेमी की यह कि भूटान में राजा एक से अधिक विवाह कर
सकते हैं और खुद जिग्मे के पिता ने चार विवाह किये लेकिन जिग्मे ने वादा
किया है कि पेमा ही उनकी एकमात्र पत्नी होंगी क्योंकि उनके हृदय में पेमा
के स्थान को कोई और कभी नहीं ले सकता ।
है ना खूबसूरत प्रेम कहानी एक राजा और रानी की ।
आगे एक चौराहे पर एक अद्भुत दृश्य दिखाई दिया । कुछ स्कूली बच्चे स्कूल से
घर जा रहे थे और उन सबके हाथ में एक एक पानी से भरा डब्बा था जिससे वे सड़क
के किनारे लगे हुए पौधों को पानी डालते हुए घर लौट रहे थे । यह कोई
छुट्टियों का प्रोजेक्ट वर्क नहीं था , यह उनकी परवरिश का एक हिस्सा था ,
उनकी जीवन शैली था , उनको अपने देश, अपने शहर और प्रकृति के प्रति परवाह
सिखाने का एक तरीका था । इन मूल्यों के साथ बड़े हो रहे हैं भूटानी बच्चे ।
धरती खुश रहेगी तो हम खुश रहेंगे ।यह मन्त्र जप रहे हैं भूटानी इसलिए कुदरत
को खुश रखने का पूरा जतन कर रहे हैं ।
ओह ...यह देश हर पल कुछ नया सिखा रहा है ।कितने समृद्ध हो रहे हैं हम हर
दिन ।
इस दृश्य से प्रफुल्लित इस सुहानी रिमझिम में हम सब चले जा रहे थे बुद्ध की
शरण में । करीब आधा घंटे में हम बुद्धा पॉइंट पर पहुँच गए ।
सीढ़ियाँ पार करते हुए जब हम ऊपर पहुंचे तो वहां का नज़ारा देखकर अभिभूत हो
गए । निर्बाध बहती साफ़,सुवासित हवा ,चारों ओर हरे विशाल हिमालय शैल और उन
पर चहकते ,फुदकते बादल पाखी । इन पर्वतों के बीच विराजमान स्वर्ण और कांस्य
रंगी विशाल बुद्ध । मानो कह रहे हों कि प्रकृति की विशालता का सिर्फ एक ही
चीज़ मुकाबला कर सकती है और वह है ज्ञान और चेतना की विशालता । हमारे समक्ष
ये दोनों थे । प्रकृति के सौन्दर्य के बीच भूमिस्पर्श मुद्रा में ध्यानमग्न
चेतना का पुंज ।
अहा ... ये किस अवसर के साक्षी बन रहे हैं हम । इस दृश्य को नेत्रों में
समेटें या हृदय में । मन समर्पण और कृतज्ञता भाव से झुक गया ।
यह बुद्ध प्रतिमा विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमाओं में से एक है । 2015 में
तैयार हुई इस प्रतिमा को बनाने में सौ मिलियन डॉलर का खर्च आया और इसे
भूटान के चौथे राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक के जन्मदिन पर बनवाया गया । 177
फीट ऊंची यह प्रतिमा कांसे की बनी हुई है और इस प्रतिमा के भीतर सवा लाख
छोटी बुद्ध प्रतिमाएं हैं जो आकार में 8 से 12 इंच हैं । एक बुद्ध को देखना
सवा लाख बुद्ध एक साथ देखना है ।
बाहर से बुद्ध की प्रतिमा को जी-भर कर देखने के बाद हम इसके अंदर मठ में
पहुंचे । यहाँ भी बुद्ध ही बुद्ध मौजूद थे । यहाँ बुद्ध की हज़ारों छोटी
प्रतिमाएं मौजूद थीं । हर दीवार पर , हर कोने में । कण-कण में बुद्ध । हम
चमत्कृत थे , जिज्ञासा से भरे हुए थे लेकिन भीतर से एकदम शांत । इसी अवस्था
में हम सब थोड़ी देर वहीँ आँखें मूंदे फर्श पर बैठे रहे । आत्मा को कुछ पलों
के लिए बुद्ध की शरण में छोड़ दिया । कुछ अलग-सा महसूस हो रहा था मन के किसी
भीतरी स्तर पर । ठीक ऐसा ही मैंने महसूस किया था जब पोंडिचेरी के ओरोबिन्दो
आश्रम में चन्द मिनिटों के लिए यूं ही एकांत में आँखें बंद करके बैठी थी ।
ध्यान लगाना मुझे नहीं आता ।कोई मन्त्र भी नहीं जानती । लेकिन अपने आप को
उस पल को सौंप देना आता है । कुछ पिघलता है भीतर, कुछ बदलता है । शायद
ब्रम्हांड की ऊर्जा से कुछ कनेक्शन होता है , शायद दुनियादारी में गले-गले
तक डूबी आत्मा का कुछ शुद्धिकरण होता है ।
थोड़ी देर यूं ही बैठे रहने के बाद हम बाहर आये । यहाँ तक आये हैं तो थोड़ा
टूरिस्टी भी कर ली जाए । कुश ने फेसबुक लाइव किया । हमने ढेर सारे फ़ोटोज़
लिए ध्यान मुद्रा में ।मौज मस्ती मोड वापस शुरू हो गया था ।गड्डू ने जोर से
हंसते हुए ध्यान मुद्रा में तस्वीर निकलवाई ।वह सचमुच लॉफिंग बुद्धा लग रही
थी ।
शाम घिरने लगी थी , आसमान पर सलेटी का एक शेड और चढ़ गया था । हम वापस चल
दिए शहर की ओर । पीछे मुड़कर देखा तो तथागत को बादलों ने एक दुशाला ओढ़ा दिया
था ।
वापस शहर के भीतर पहुंचे तो चाय कॉफ़ी की तलब हो आई थी ।हमने एक जगह
पार्किंग में गाड़ी खड़ी की और अब थिम्फू को पैदल ही टटोलने का निश्चय किया ।
बेहद हलकी फुहार थी, जो हवा के साथ इधर उधर उड़ रही थी । इतनी हलकी फुहार
जिसमें बूंदों का एहसास भी पूरा मिले और भीगें भी ना । ऐसे कातिल मौसम में
हम दोस्त एक साथ भूटान की खूबसूरत धरा पर घूम रहे हैं , कितनी सुकून की बात
है । दस दिन बाद सब अपने अपने करेंगी । एक ओपन रेस्तरां में मैगी के
साथ चाय कॉफ़ी पी और फिर चल दिए यहाँ का बाज़ार एक्सप्लोर करने । हमें कुछ
ख़ास शॉपिंग नहीं करनी थी । पिछले कई बरसों से यात्राएं करते करते अब इतना
परिवर्तन तो आया है कि कहीं जाते हैं तो शॉपिंग हमारी लिस्ट में नहीं रहती
। कहीं कुछ इतना ख़ास हो जो हमारे शहरों में बिलकुल ही न मिलता हो तो एक बार
सोच लेते हैं वरना एक ट्रॉली बैग और एक बैकपैक से ज्यादा सामान न ले जाते
और ना लौटाकर लाते । अगर कीरा मिल जाएगा ठीक-ठाक दाम में तो वह ज़रूर
खरीदूंगी और अगर कोई भूटानी लोककला या हस्तकला का कोई नायाब आइटम मिला तो
वह , बाकी कुछ नहीं । एक किताब की दुकान मुझे चाहिए थी जहाँ से भूटान से
सम्बंधित किताबें खरीद सकूँ । थिम्फू का बाज़ार छोटा ही है । घूमते हुए
बार-बार एक ही जगह पर पहुँच जाते हैं । सड़क के बीच डिवाइडर के दोनों तरफ़
हस्तशिल्प की छोटी छोटी दुकानें बेहद तरतीब में सजी हुई थीं । पीक आवर्स के
यातायात के बावजूद खाली सड़कें । हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि भूटान में
कहीं भी ट्रैफिक सिग्नल नहीं हैं ,ट्रैफिक पुलिस का एक जवान ही इसे रेगुलेट
करता है । यहाँ कोई यातायात के नियमों को तोड़ने का न आदी है और न ही नीयत
रखता है । पार्किंग से बाहर एक भी दो-पहिया वाहन तक देखने को नहीं मिलता ।
भूटान से सम्बंधित एक दो वीडियो देखने से हमें यह अंदाजा हो गया था कि कोई
सामान यहाँ से नहीं खरीदना है क्योंकि थिम्फु के भाव ज्यादा हैं । अगर कुछ
खरीदना ही हो तो पारो बेहतर विकल्प है । फिर भी हमने कुछ दुकानें देखीं
जिससे सामान और उनकी दरों का अंदाजा लग जाए । तीन चार दुकानें देखने के बाद
ऐसा कुछ आकर्षक नहीं लगा जिसे खरीदा जाए । भूटान के सोविनियर के रूप में
फ्रिज मेग्नेट ,की-रिंग और बुद्ध प्रतिमाएं थीं । इसके अतिरिक्त बुद्ध के
जीवन पर आधारित पेंटिंग्स, बीड्स और स्टोन की ज्वेलरी और ड्रैगन और लॉफिंग
बुद्धा की चित्रकारी वाली क्रॉकरी, कुशन कवर और अन्य इसी तरह के घरेलू
सज्जा के सामान । ये सब बेहतर दामों पर भोपाल में ही मिल जाता है और
हस्तशिल्प मेलों में नार्थ ईस्ट से आने वाले कलाकार इन्हें हमारे शहर में
समुचित दामों पर बेचते हैं । तो देखा भर, लिया कुछ नहीं । अगर कुछ लेना
होगा तो परसों पारो से लेंगे ।
एक जनरल स्टोर पर टूथपेस्ट और थोड़ा बेकरी का सामान लेने हम पहुंचे तो वहां
तामुल भी बिकने के लिए रखा हुआ था । यहाँ आये हैं तो इसे तो एक बार खाकर
देखना बनता है । दुकानदार महिला से अपनी इच्छा व्यक्त की तो वह हँसते हुए
बोली कि बिलकुल खाना चाहिए । और उसने चार पान बनाकर हमें पेश कर दिए ।
तामुल वाला पान खाते हुए हम आगे तफरी करने चल पड़े । पान ख़तम हो गया पर कोई
नशा जैसा तो हमें महसूस नहीं हुआ । शायद जो दिनभर खाते रहते हैं ,उन्हें यह
नशा देता होगा ।
तीन चार दुकानें देखने के बाद हम आगे बढे तो एक बुक शॉप नज़र आई । सुंदर,
सुव्यवस्थित किताबों की दुकान । वहां भूटान के जन जीवन और संस्कृति पर ढेर
सारी किताबें उपलब्ध थीं । करीब आधा घंटा किताबों के साथ बिताने के बाद
मैंने दो किताबें खरीदीं । पहली linda leaming की ' married to Bhutan ' जो
देवेन ने कुछ पेज पढ़ने के बाद सजेस्ट की और दूसरी britta das की ' butter
tea at sunrise' । पूरे बाज़ार में लगभग दो घंटे फटियाने के बाद हम वापस
अपने होटल की ओर निकले । ( फोकटियों की तरह निरुद्देश्य घूमने को मैं और
गड्डू फटियाना कहते हैं ) । रात हो चुकी थी और राजा के पैलेस की सारी
लाइटें जल उठीं थीं , अँधेरी रात में जगमगाता भव्य श्वेत महल ऐसा लग रहा था
मानो रंग-बिरंगे चिराग कतार में सजा दिए गए हों । यह सचमुच अद्भुत था ।
भूटानी लोगों में सौन्दर्य बोध बेमिसाल है ।
घर,दुकान,सड़क,चौराहे,बागीचे,पार्क,महल सब सुसज्जित,आकर्षक और भूटानी
संस्कृति को सहेजे हुए ।चटख रंगों से यहाँ चित्रकारी की जाती है और
ज्यादातर बुद्ध के जीवन से सम्बंधित कथाएं चित्रों में उकेरी जाती हैं । कल
से आज तक बहुत सारे चित्र देखे जिनमें दो चित्रों पर नज़र ठहरी और साथ ही
उत्सुकता भी जागी इनके बारे में जानने की ।
एक चित्र तो था चार दोस्तों का जिसे यहाँ फोर फ्रेंड्स की कथा के नाम से
जाना जाता है, जिसमें एक पेड़ के नीचे एक हाथी खडा हुआ है , हाथी की पीठ पर
बन्दर सवार है, बन्दर की पीठ पर खरगोश और पेड़ की शाख पर एक बगुला समान
पक्षी । बगुला फल तोड़कर दे रहा है जिसे नीचे हाथी तक पास किया जा रहा है ।
और दूसरा चित्र है पुरुष लिंग का जिसे फैलस कहते हैं ।घरों के बाहर दीवारों
पर , दुकानों, रेस्तराओं के बाहर अनेक सार्वजनिक स्थानों पर इसके चित्र
बहुतायत में मिलते हैं और सोविनियर के रूप में भी लकड़ी,पत्थर और मेटल का
फैलस अलग अलग रंगों और आकारों में ,अलग अलग डिजाइन में । पहले-पहल अजीब लगा
था देखना फिर आदत में आ गया । हमारे यहाँ शिवलिंग को हम पूजते हैं लेकिन
अगर किसी को पता ना हो कि यह लिंग है तो कोई एकदम अंदाजा नहीं लगा सकता कि
यह पुरुष लिंग है लेकिन भूटानी फैलस एकदम असली लिंग की तरह होता है टेस्टिस
के साथ और कुछ में बाल भी चित्रित किये जाते हैं ।
अभी इनके पीछे की कथा पता नहीं है हमको । जानने की उत्सुकता है ।
कितनी सारी कहानियों से मिलकर बनती है कोई भी संस्कृति । हज़ारों लोक कथाएं
, मान्यताएं किसी भी संस्कृति और धर्म का अटूट हिस्सा हैं । कई बार तो ये
कहानियां जन-जीवन का ऐसा हिस्सा बन जाती हैं कि सत्य और मिथक का फर्क करना
भी कठिन हो जाता है । और सच कहें तो यह किसी की चिंता का विषय भी नहीं होता
कि यह सत्य है या मिथक । वे जो भी हैं उसी रूप में जन मानस के हृदय में जगह
पा जाती हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढती रहती हैं । जो समाज और देश अपनी
संस्कृति को सहेज लेते हैं ,वहां ये कहानियाँ कभी अतीत नहीं बनतीं और जो
समाज इन्हें पीछे छोड़ आगे बढ़ जाता है वहां ये इतिहास की कथाओं के रूप में
दर्ज हो जाती हैं ।सभी धर्मों की तरह बौद्ध धर्म में भी अविश्वसनीय
कहानियाँ हैं । लेकिन भूटानी लोग अपने धर्म के प्रति बेहद समर्पण भाव रखते
हैं और इनके लिए इनके धर्म से जुडी सभी कहानियाँ सत्य हैं । धार्मिक
मान्यताओं को तर्क की कसौटी पर नहीं कसा जा सकता । मान्यता का अर्थ ही हैं
कि उन्हें मान लिया गया है । सारे देश में एक ही धर्म होने के कारण इनकी
कथाएं भी समान हैं , लोक देवता भी ,आडम्बर भी और धार्मिक क्रियाएं भी ।
इन्हीं सब बातों को सोचते गुनते होटल पहुंचे । रात के 9 बजे थे और पहुंचते
ही हम डिनर के लिए रेस्टॉरेंट पहुंचे । तीन खूबसूरत लडकियां वहां मौजूद थीं
। भूटानी लड़कियां सचमुच बेहद खूबसूरत होती हैं । गठा हुआ दुबला-पतला बदन
,चिकनी फ्लॉ-लेस दूध सी त्वचा , काले स्ट्रेट बाल , भौहों और पलकें लगभग
रोम रहित जिन्हें ब्लैक आइब्रो पेन्सिल से घना दिखाया जाता है ,आँखों में
गहरा काजल और पतले होंठों पर डार्क लिपस्टिक । हमेशा परफ्यूम से महकती हुईं
। ये हमेशा सुंदर और प्रेजेंटेबल दिखाई देती हैं ।बस एक समस्या है ....
जैसे ही इन्होने हंसने के लिए मुंह खोला और बदरंगी और टूटी हुई दंत पंक्ति
इनकी ख़ूबसूरती में एक नजर-बट्टू लगा देती है । तामुल ने इनके दांतों का
सत्यानाश किया हुआ है ।बहरहाल ...हमने सबसे पहले ख्वाहिश व्यक्त की कि हम
कुछ भूटानी खाना खाना चाहते हैं । इस पर तीनों एक दूसरे की तरफ देखने लगीं
।
' आपके यहाँ कि कोई ख़ास डिश होगी ना , जो आप लोग रोज़ खाते हो ।' गड्डू ने
समझाते हुए कहा ।
' एमा दात्शी' एक लड़की बोली
'हाँ वही .. कैसे बनाते हैं ? ' हमने पूछा हांलाकि फुन्शोलिंग से थिम्फू के
रास्ते में हम एक रेस्तरां में चाय पीने रुके थे जहाँ हमने इस डिश के बारे
में जानकारी ले ली थी । चीज़ और चिली को मिलाकर यह डिश बनायी जाती है ।सूखा
पनीर हर दुकान पर मिलता है जिसे मेल्ट कर उसकी ग्रेवी में हरी मिर्च डालते
हैं ।
' चीज़ और चिली मिलाकर बनाते हैं ।' उसने बताया ।
कैसा टेस्ट लगता है ?
उम्म... ठीक है । आप खा के देख लेना ' उसका सुस्त-सा यह वाक्य इतना
कन्विंसिंग नहीं था कि हम यह नयी डिश यहाँ ट्राय करते । पिछले कुछ बरसों
में यह सीख लिया है कि किसी नयी जगह की कोई स्थानीय डिश सिर्फ वहां के
सर्वश्रेष्ठ रेस्टॉरेंट या दुकान में ही ट्राय करो वरना वही हाल होगा कि
कोई बंदा किसी दूसरे देश से चाय के बारे में सुनता हुआ उसे पीने की चाह से
भरा हुआ भारत आये और रेलवे स्टेशन पर ही अपने जीवन की पहली और आखिरी चाय
चखे ।
भूटानी भोजन कहीं और के लिए आरक्षित कर हमने भारतीय भोजन ही ऑर्डर कर दिया
।
;आधा घंटा लगेगा बनने में' वह बोली और हंस दी ।
अब तक हम इनकी बे-मौसम हंसी के आदी हो चुके थे । हम भी हंस दिए ।
इस आधा घंटे में क्या किया जाए । मैं होटल मालिक से बात करने के इरादे से
उसके पास जाकर बैठ गयी । उसके हाथ में भूटानी बियर का एक ग्लास था । उसने
मुझे भी ऑफर किया जिसे मैंने मुस्कुराकर मना किया ।
आपके रिसेप्शन एरिया में ये सुंदर पेंटिग्स किसकी बनायी हुई हैं ? मैंने उन
भूटानी नेचर लेंड-स्केप की बेहद जीवंत और खूबसूरत पेंटिंग्स की तरफ इशारा
करते हुए पूछा ?
ओह ..ये पेंटिंग्स । हमारे यहाँ के बहुत प्रसिद्ध पेंटर सुकबीर बिस्वा की
बनायीं हुई हैं । वो और उनका बेटा सलिल बिस्वा दोनों भूटान के प्रसिद्ध
पेंटर हैं ।
आप लोग अपने राजा को बहुत मानते हो ना ? रिसेप्शन पर लगी राजा रानी की
तस्वीर को देखते हुए मैंने पूछा ।
यहाँ सब लोग उनकी बहुत रेस्पेक्ट करते हैं ।
सिर्फ राजा हैं इसलिए या मन से रेस्पेक्ट करते हैं ?
राजा तो बहुत होते हैं ।लेकिन हमारे राजा जैसे राजा कोई हो नहीं सकते ।
सारी जनता उनसे बहुत प्यार करती है ।
क्यों ..क्या अलग हैं इनमें दूसरे राजाओं से ? मैंने जानना चाहा । ये हम
देख चुके थे पिछले दो दिनों में कि यहाँ के लोगों के मन में राजा के लिए
बहुत आदर है ।
हमारे राजा जिग्मे खेसर वांगचुक एकदम हम आम आदमियों जैसे हैं । राजा और
रानी अपना बहुत सारा वक्त जनता के साथ बिताते हैं । उनकी समस्याएं सुनते
हैं और उन्हें हल करते हैं ।
हम्म..
आपने सुना होगा कोई ऐसा राजा जिसने खुद राजतंत्र को खत्म करवा कर लोकतंत्र
की शुरुआत की हो ? हमारे राजा ने भूटान में चुनाव करवाए । जनता ऐसा नहीं
चाहती थी फिर भी लोकतंत्र लेकर आये ।
मगर क्यों ?
क्योंकि उनको लगता था कि अगर भविष्य में कभी कोई निरंकुश राजा गद्दी पर बैठ
गया तो पूरे भूटान की खुशहाली खतम हो जायेगी । इससे बेहतर है कि जनता के
प्रतिनिधि देश से जुड़े तमाम फैसलें लें ।
वाकई इम्प्रेसिव । मुझे विश्व इतिहास में ऐसी कोई दूसरी नज़ीर नहीं मिलती ।
और जानती हैं आप , राजा के पिता जिग्मे सिंग्ये वांग्चुक जब राजा थे तब
वर्तमान राजा के 28 बरस के होते ही उन्होंने राजा की गद्दी छोड़ दी जबकि वे
खुद तब 60 साल के भी नहीं हुए थे । उनका सोचना था कि जब बेटा राजा की
ज़िम्मेदारी संभालने के लायक हो गया है तो उसे यह गद्दी सौंप देनी चाहिए ।
कमाल है .. मन श्रद्धा से भर उठा । एक सम्मान की भावना खुद-ब-खुद मेरे मन
में घर करने लगी । जब बाकी देशों के राजाओं का इतिहास पुत्रों और भाइयों
द्वारा महाराजा को कैद करवा दिए जाने और मार दिए जाने के किस्सों से भरा
पड़ा है तब कोई राजा ऐसा भी है जिसे गद्दी का मोह नहीं है और जिस बेटे को वह
गद्दी दे रहा है वह भी ऐसा भला कि उसे राजतंत्र का ही मोह नहीं है । ऐसे
राजाओं को कौन सी जनता प्रेम नहीं करेगी । लोक कल्याणकारी राज्यों को इससे
सीखना चाहिए ।
'आप लोग अपने कल्चर से भी बहुत प्यार करते हैं । क्या कभी ऐसा महसूस नहीं
करते कि सोशल मीडिया के इस दौर में जब विश्व की सारी संस्कृतियों का प्रभाव
एक दूसरे पर पड़ रहा है तो भूटानी संस्कृति, जीवन शैली और मान्यताओं में भी
थोड़ा बदलाव आना चाहिए ?' मैंने बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाया ।
हमारे कल्चर और हमारी वेल्यूज़ ने हमें एक सुखी और खुशहाल जीवन दिया है । हम
क्यों इसे दूषित करना चाहेंगे ? आधुनिक जीवन शैली भौतिक-वादिता से प्रेरित
है । अगर हमारे बच्चों को पैसों से खुशियाँ खरीदने का चस्का लग गया तो वे
दुखी हो जायेंगे । क्योंकि हमारा देश एक गरीब देश है और हम कभी भी अमीर
देशों की बराबरी नहीं कर सकेंगे । इसलिए हमने हमारे बच्चों को हमारे पास
उपलब्ध धन और संसाधनों में संतुष्ट और खुश रहना सिखाया है । हमारे बच्चे
यही मूल्य अपने बच्चों को देंगे । इसलिए हम बहुत जोर देते हैं अपनी
संस्कृति को सहेजने पर ।
मैं एक सुखद हैरानी से उनकी बातें सुन रही थी । वे किसी से प्रतियोगिता ना
करके इस प्रतियोगिता को जीत लेते हैं ।
'हांलाकि पिछले कुछ सालों में इंटरनेट ,फेसबुक और दूसरे सोशल प्लेटफॉर्म आ
जाने से हमारे बच्चों पर इसका असर हो रहा है । और सबसे खराब असर यह है कि
वे नशे के आदी हो रहे हैं ।' उनके स्वर में एक चिंता उतर आई थी ।
यही कारण है कि वे दूसरे देशों के लिए अपने देश को आसान पर्यटन नहीं बनने
देते हैं पर्यटन व्यवसाय में काफी पैसा होने के बावजूद । सिर्फ भारत के लिए
उनके देश के दरवाज़े खुले हैं और उस पर भी वे पर्यटकों को मात्र 7 दिन की
अनुमति देते हैं । वे नहीं चाहते कि कोई बाहरी उनके देश में ज्यादा रुके और
संस्कृति को प्रभावित करे ।
हाल में ड्रग्स इस देश की सबसे बड़ी चिंताओं में से एक बनकर उभरा है ।
' डिनर रेडी है...' डेमा की मुस्कुराती आवाज़ ने हमारी बातचीत पर विराम लगा
दिया । डेमा इस होटल में सबसे ज्यादा ज़िम्मेदारी से काम करने वाली वर्कर है
। हर जगह उसकी मौजूदगी दिखाई देती है ।
अच्छा ..ये और बताइये कि ये फोर फ्रेंड्स की क्या कथा है ? यहाँ हर जगह
हमने उनके चित्र पाए हैं ।
' फोर फ्रेंड्स में एक हाथी है जो एक पेड़ के नीचे खड़ा है ,उसकी पीठ पर एक
बंदर है ,बंदर की पीठ पर एक खरगोश और पेड़ के ऊपर एक पक्षी बैठा हुआ है ।
पक्षी एक फल तोडकर खरगोश और बंदर को बांटते हुए उनके माध्यम से हाथी तक
पहुंचा रहा है । इसका अर्थ है कि समाज के हर वर्ग का व्यक्ति एक दूसरे की
मदद करे और उपलब्ध संसाधन को सबके पास पहुंचाए ।
हम्म.. मीनिंगफुल तस्वीर है ।
उनसे बातें खत्म कर हम रेस्तरां पहुंचे तो गरमा गरम दाल,चावल,रोटी ,सब्जी
और सलाद वाला स्वादिष्ट खाना तैयार था । सलाद बड़ा मनोरंजक था । खीरे की
पांच स्लाइस ,टमाटर की चार स्लाइस, प्याज की दो स्लाइस और नीबू की तेरह
स्लाइस थीं ।हम सबकी हंसी छूट पड़ी उस सलाद को देखकर । क्या ये लोग नीबू भी
चबाकर खाते हैं ? दांत खट्टे करना मुहावरा सलाद की इसी प्लेट के लिए बना है
।
रेस्तरां का एक दरवाज़ा किचिन में खुलता था और दूसरा रिसेप्शन लॉबी में ।
दोनों दरवाजों पर दो लड़कियां खडी थीं और एक दूसरे को इशारे कर मुंह छिपाकर
हंस रही थीं । हम सबकी हंसी उन दोनों को देखकर फिर फूट पडी । अपने स्कूल और
कॉलेज के दिन याद आ रहे थे जब क्लास के बाहर से लड़कियां अंदर वाली लड़कियों
को देखकर इसी तरह की मस्ती किया करती थीं ।
'गज़ब ही हंसते हैं ये लोग ' कुश फिर बोल पड़ा था ।
बढ़िया है .. हंसनुमा माहौल बना रहता है ।
आख़िर हम लॉफिंग बुद्धा के देश में हैं । एक सवाल जेहन में आया कि –
" ये लोग खूब हँसते हैं इसलिए खुश रहते हैं या खुश रहते हैं इसलिए खूब
हँसते हैं ?"
खाना खाकर थोड़ी देर बाहर टहलने निकले । रात के दस बजे थे और मौसम बेहद
खुशनुमा था । सूनी सड़क पर सिर्फ फूलों की खुशबूदार हवा में लिपटी स्ट्रीट
लाईट की पीली रौशनी थी । झींगुरों की झन्न-झन्न का उच्च आवृति का मधुर शोर
था और सामने अँधेरे में जगमगाता महल था । साँसों में भर लेने को थी विश्व
की सबसे शुद्ध कार्बन नेगेटिव हवा । मैंने एक भरपूर सांस खींची ।
"अरे मेरा चश्मा किधर गया " कुश की थोड़ी बेचैन आवाज़ ने हम सबका ध्यान खींचा
।
क्या हुआ ?
' मेरे गौग्ल्स नहीं मिल रहे । बना ..गाड़ी में देखो एक बार "
देवेन ने गाड़ी खोली मगर कुश के गॉगल्स उसमें नहीं थे ।
'कमरे में देख ,वहीँ होंगे । कहाँ जायेंगे'
हम सब कमरे में पहुंचे और सब जगह तलाश किया मगर उसका चश्मा नहीं मिला ।
फिर रिसेप्शन ,रेस्टॉरेंट में देखा , हमारे
हैण्ड बैग्स में ढूँढा मगर चश्मा कहीं नहीं मिला ।
कुश का चेहरा उतर गया था । उसको यह चश्मा बेहद प्रिय था । कई सालों से उसको
केवल यही चश्मा लगाते देख रही हूँ ।
' परेशान मत हो ...मिल जाएगा ' मैंने दिलासा दिया ।
अब तक गड्डू का जासूसी दिमाग सक्रीय हो उठा था । अगर यह जासूस होती तो आला
दर्जे की जासूस होती । वह मज़ाक में खुद को जाजूस 007 भी कहती है । बरसों
पहले उसकी किसी सहेली ने जासूस की जगह जाजूस कहा था और तब से वह जाजूस ही
कहती है ।उसने अपने मोबाइल से ली गयी फ़ोटोज़ को देखना शुरू किया ताकि यह पता
लगाया जा सके कि आखिरी बार चश्मा कहाँ देखा गया था । यह बेहद काम की
एक्सरसाइज़ निकली । सुबह से ली गयी हर फोटो में चश्मा साथ था और नाश्ते के
समय तक कैफे से निकलते वक्त पहले टेबल पर और फिर कुश के हाथ में दिखाई दे
रहा था ।
' याद आया ... इमिग्रेशन ऑफिस में छूटा होगा । मैंने फॉर्म भरते समय उतारकर
काउन्टर पर रखा था और फिर वहीँ भूल आया " कुश के दिमाग की बत्ती एकाएक जली
।
'हाँ ..वहीँ छूटा होगा' हम सब सहमत थे ।
कोई नहीं ... कल सुबह हम पुनाखा निकलने से पहले इमीग्रेशन ऑफिस जायेंगे और
चश्मा वहाँ से ले लेंगे ।
कोई ले तो नहीं गया होगा ? कुश का मन आशंका से घिरा था ।
' नहीं रे ..यहाँ के लोग हमारे यहाँ के लोगों जैसे नहीं हैं । ईमानदार हैं
। वहां के किसी स्टाफ ने देखा होगा और संभाल कर रख लिया होगा ।' गड्डू ने
पूरे भरोसे से कहा ।
हम सबने सहमति में सर हिलाया । कुश भी मान गया लेकिन उसके चेहरे की ख़ुशी
गायब हो चुकी थी ।
' एक काम करते हैं । होटल के सी सी टी वी कैमरे के फुटेज देख लेते हैं ।
अगर यहाँ तक आया होगा तो पता चल जाएगा ।' गड्डू जाजूस ने फिर आइडिया दिया ।
कुश को जम गयी बात । और वह नीचे रिसेप्शन पर सी सी टीवी फुटेज देखने चला
गया ।
देवेन अपने कमरे में चला गया कपड़े बदलने और मैं भी कपड़े बदलकर खिड़कियाँ
खोलकर बैठ गयी उन किताबों को उलटने पलटने जो आज खरीदी थीं ।
landa leaming ' married to Bhutan ' उठायी पहले क्योंकि इसके शुरूआती कुछ
पेज देवेन ने पढ़कर कहा था कि इसे पहले पढ़ना , अच्छी रोचक भाषा में लिखी हुई
है ।
वाकई ...पहले तीन पेजों में ही हँसते-हँसते भूटान के लोगों का अंदाजा लग
जाता है । लिंडा किताब की शुरुआत में भूटानियों की जीवन शैली का जो चित्र
खींचती हैं उसका सारांश यूं हैं कि लेखिका भूटान में काफी दिनों से रह रही
है और उसका एक मित्र लंदन से उसे फोन करके शिकायती स्वर में कहता है कि उसे
कुछ हफ्ते बाद भूटान किसी असाइनमेंट के लिए आना है और सम्बन्धित कार्यालय
से अभी तक मेरे मेल का कोई जवाब नहीं आया ।
लिंडा कहती है कि भूटानी जनरली ई मेल्स का जवाब नहीं देते ।
लेकिन किसी ने फोन भी नहीं उठाया । मैंने कई बार कोशिश की । मित्र ने कहा ।
वो इसलिए कि यह फरवरी का महीना है । सर्दियों में आपको कोई रेस्पोंस नहीं
मिलेगा ।
क्यों भला ?
वो इसलिए कि सर्दियों में सारी गतिविधियाँ थम जाती हैं । राजधानी थिंफू से
पुनाखा शिफ्ट हो जाती है ।
लेकिन जब तक वे लोग ऑफिस में हैं तब तो कुछ काम करते होंगे ।
' 9 बजे ऑफिस पहुँचने का वक्त होता है , वे लोग 9.45 पर ऑफिस पहुँचते हैं ।
फिर बाकी साथियों से गप्पें लड़ाते हैं ,फिर चाय पीते हैं ,फिर कम्प्यूटर पर
सोलिटेयर खेलते हैं । फिर लंच के टाइम एक बजे से आधे घंटे पहले ही उठ कर
अपने दूसरे काम निपटाने या हवा खाने बाहर चले जाते हैं । 3 बजे वापस आते
हैं । फिर चाय पीते हैं । फिर ऑफिस बंद होने का वक्त हो जाता है ।
मित्र ने यह सुनकर फोन पटक दिया ।
तो ये थी एक झलक भूटानियों के मिजाज़ की जो संभवतः दस से अधिक वर्ष पुरानी
रही होगी क्योंकि हमें इमीग्रेशन ऑफिस का अनुभव ऐसा नहीं मिला था । स्लो तो
थे पर काम बराबर कर रहे थे । हम कितने जजमेंटल हो जाते हैं किसी की भी
आदतों को लेकर । धीमापन हमारे लिए गलत है क्योंकि हम तेज़ काम को प्रमोट
करते हैं । क्या पता उन्हें हमारी रफ़्तार पसंद न आती हो । दरअसल धीमापन
उनकी जीवन शैली का अहम गुण है क्योंकि वे किसी काम की जल्दी में नहीं हैं
।हमें उन्हें ऐसे ही स्वीकार करना होगा ।
वे स्लो हैं या लापरवाह, इससे इतर इन तीन पेजों को पढने से यह ज़रूर हुआ कि
हमने यह स्वीकार कर लिया कि भूटानी ऐसे ही हैं ,इसलिए अब ऑर्डर में देरी
होने पर या काम द्रुत गति से न हो पाने पर न झल्लाना है और न गुस्सा करना
है । बस हँसते हुए एन्जॉय करना है ।और इन तीन पेजों ने हमारे बाकी के सात
दिन ख़ुशी ख़ुशी हर सर्विस को स्वीकार कर लेने में अहम् भूमिका निभाई । जो
चीज़ हम शायद और दो दिन बाद अनुभव से सीखते ,वह इस किताब से पहले ही दिन सीख
गए ।
करीब आधे घंटे बाद कुश लौटकर आया निराश और खीझा हुआ ।
"क्या हुआ "
" यार इन लोगों को आता ही नहीं है सीसी टीवी के फुटेज देखना ।कुछ टेक्निकल
प्रोब्लम है और किसी को कुछ समझ नहीं आरहा है । लगा लिया है सिस्टम , पर
कभी ज़रूरत नहीं पड़ी देखने की तो कोई नहीं जानता कैसे देखते हैं "
कोई नहीं ...कल इमिग्रेशन ऑफिस में देखते हैं ।मिल जाएगा ।
"हम्म..अब इसके अलावा और कोई ऑप्शन भी नहीं है।" कुश के स्वर में उदासी थी
।
अपनी प्रिय चीज़ खो जाने का ग़म बड़ा होता है । किसी चीज़ के प्रिय होने का
सम्बन्ध उसकी कीमत से नहीं होता । दरअसल कोई चीज़ क्यों प्रिय होती है ,उसका
कोई सीधा-सीधा समीकरण नहीं होता । किसी अजीज़ का दिया हुआ तोहफा हो तो वह
प्रिय होता है ,बड़ी खोजबीन के बाद वह वस्तु प्राप्त हुई हो तो वह दिल के
बहुत करीब हो जाती है और कई बार तो हम खुद नहीं जानते कि कोई चीज़ हमें
क्यूँ प्रिय है । मुझे एक बचपन में अपना एक फाउन्टेन पेन बहुत पसंद था । वह
सस्ता-सा पेन मैंने खुद ही खरीदा था । जब उसमें चेलपार्क की रॉयल ब्लू इंक
भरकर उससे लिखती थी तो चमकीले नीले मोतियों जैसे अक्षर उभरते थे । जब तक वह
रहा उसके अलावा किसी और पेन से नहीं लिखा । हलके नीले रंग पर गहरे नीले रंग
की लहरिया जैसी डिजाइन का वह पेन उसके गुम जाने तक मेरे कम्पास बॉक्स में
बना रहा । जिस दिन वह खोया था , मैं बहुत उदास हुई थी । सातवीं कक्षा का वह
पेन आज भी मुझे जब-तब याद आ जाया करता है । गड्डू की बचपन में एक कत्थई रंग
की बेहद प्रिय फ्रॉक थी मोटे से हौजरी के कपड़े की ,जिसमें से हमेशा सीलन
जैसी गंध आती रहती थी । हम सब उसे मना करते उस फ्रॉक को पहनने को । मगर
जाने क्यों वह उसे ढंग से सूखने भी नहीं देती और रोज़ ही पहन लेती । एक बार
तो मम्मी ने छुपा भी दी वह फ्रॉक मगर गड्डू जाजूस उसे अगले ही दिन खोज लायी
और फिर से लटका ली ।
"कुश का चश्मा मिल जाए " मैंने मन में दुआ मांगी ।
कल सुबह पुनाखा निकलना है । अब पहले इमीग्रेशन ऑफिस में चश्मा ढूँढने
जायेंगे ,उसके बाद निकलेंगे । तो सुबह उठने की कोई जल्दी नहीं होगी क्योंकि
ऑफिस तो दस बजे से पहले खुलना नहीं है ।जब यह पता हो कि सुबह अलार्म नहीं
लगाना है तो नींद में एक सुकून की भी मिलावट होती है । आज का दिन थकाऊ नहीं
था इसलिए रात के ग्यारह बजे भी ना तो नींद आ रही थी और ना ही थकावट महसूस
हो रही थी । हम सब एक ही कमरे में बैठे बातें कर रहे थे । हर बात की तरह इस
बातचीत का मुख्य विषय भूटानी लोग और यहाँ की संस्कृति ही था । हम अपने रोज़
की घुमक्कड़ी और लोगों से बातचीत के आधार पर यह जानने की कोशिश कर रहे थे कि
इनके खुशहाल जीवन की कई सारी वजहों में से सबसे अहम् वजह क्या है । प्रकृति
प्रेम , अच्छी सरकार , नैतिक मूल्य और सीमित संसाधनों में संतुष्ट रहने का
माद्दा यह सब निस्संदेह बेहद वाजिब वजहें हैं खुश रहने के लिए लेकिन अभी
इसकी आत्मा तक पहुंचना बाकी था । हर बातचीत के अंत में अंत यही सवाल कि –
" ये लोग इतने खुश क्यूँ हैं ?"
खिडकियों से ठंडी हवा भीतर आ रही थी और ब्लूटूथ स्पीकर पर मौसम का साथ दे
रहीं थीं ग़ज़लें । थोड़ी देर बाद सब सोने चले गए और साइड लैंप जलाकर मैंने
अपनी डायरी में आज का दिन दर्ज़ किया । डायरी लिखते हुए बुद्ध पॉइंट का ख़याल
आता रहा और एक कविता उतर आई –
'सदियों से पर्वत खड़े थे अविचल अपने हरे एकांत में
प्रकृति के चेतन सौन्दर्य के समक्ष कौन सा सौन्दर्य टिक पाता भला ।
तब बुद्ध विराजे पर्वतों के मध्य
भूमिस्पर्श ध्यान मुद्रा थी ,होंठों पर बारीक स्मित रेखा
और अधखुले नेत्रों से झरती करुणा
प्रकृति के सौन्दर्य के समक्ष था
चेतन आत्मा का सौन्दर्य
और हम रुंधे कंठ समर्पित नत मस्तक दोनों के मध्य ।
पल्लवी का परिचय तो अब बॉलीवुड के सितारे भी जानते
हैं क्योंकि वे कुछ ऎसा मारक लिखती हैं कि वह वायरल हो जाता है। व्यंग्य
लेखन की माहिर और रूमानी और संवेदना से भरी कहानियों और रोमांच से भरे सोलो
और दोस्तों के साथ किए ट्रेवल्स और उनके अनुभव पल्ल्वी का यू एस पी हैं।
पल्लवी की कलम का जादू हिंदीनेस्ट के पाठकों के लिए ...
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