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कथा कहन रिपोर्ट

कहानी और उसके विविध माध्यमों पर कथा कहन कार्यशाला की अनूठी शुरुआत

‘कहानी वह ध्रुपद की तान है ,जिसमें गायक महफ़िल शुरू होते ही अपनी सम्पूर्ण प्रतिभा दिखा देता है ,एक क्षण में चित्त को माधुर्य से परिपूर्ण कर देता है ,जितना रात भर गाना सुनने से भी नहीं होता ‘– कथा सम्राट प्रेमचंद

हिन्दी नेस्ट वेब पत्रिका की ओर से सृजन जगत् में उभरते लेखकों, कहानीकारों और साहित्य प्रेमियों के लिए तीन दिवसीय कथा कहन कार्यशाला का आयोजन 9 -10-11 अप्रेल 2021 को कानोता कैम्प रिसोर्ट ,जयपुर में सम्पन्न हुआ !

विख्यात कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ की दूरदृष्टि ,अथक परिश्रम और गहन परिकल्पना के सुंदर साथ से सजी तीन दिवसीय हिंदीनेस्ट कथा कहन कार्यशाला के भव्य उद्घाटन का आगाज़ साहित्य को कुछ लौटने के संकल्प से हुआ । इस कार्यशाला के प्रमुख आयोजक हिंदीनेस्ट जो तकनीकी दुनिया में एक चुनौती को पूरा करने का सपना भर था , आज विशाल वटवृक्ष बन नए कहानीकारों को प्रश्रय दे रहा है। हिन्दी नेस्ट वेब पत्रिका की संस्थापक तथा प्रतिष्ठित लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ, ग्रुप कैप्टन अंशु कुलश्रेष्ठ, लेखक प्रेमचन्द गांधी, चर्चित कहानीकार तथा सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर लक्ष्मी शर्मा, रुझान प्रकाशन के सम्पादक कुश वैष्णव तथा सेवानिवृत्त आई.पी.एस. बहादुर सिंह राठौड़ ने कथा – कहन कार्यशाला का उद्घाटन किया। कार्यक्रम में जाने - माने साहित्यकार फ़ारुख आफरीदी, हरिदेव जोशी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर ओम थानवी और वरिष्ठ पत्रकार व कवि त्रिभुवन जैसी शख्सियतों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर हिंदीनेस्ट के नये प्रारूप का उद्घाटन ग्रुप कैप्टन ए के कुलश्रेष्ठ द्वारा किया गया ! उद्घाटन समारोह में मनीषा कुलश्रेष्ठ ने नये उत्सुक कथाकारों को सम्बोधित करते हुए कहा कि यह उन्हें उचित दिशा और मार्गदर्शन देने का स्वर्णिम अवसर है। इस कार्यशाला के ज़रिए नए कहानीकार, कहानी के विविध माध्यमों को जान - समझ सकेंगे। कहानी क्या है? कहानियों की ज़रुरत क्या है? कैसा शिल्प हो? कहानियों में किरदार कैसे गढ़े जाएं? कार्यशाला में ऐसे ज़रूरी सवालों के इर्द – गिर्द अहम बातचीत होगी। लेखन मात्र ईशवरीय प्रतिभा नहीं है, बल्कि इसे दैनिक झाड़ – पोंछ और मांझे जाने की ज़रुरत होती है। वहीं प्रेमचन्द गांधी ने कहा कि हमारे देश में कहानी कहने – सुनने की सनातन परम्परा रही है, जो किसी धरोहर से कम नहीं है।
देश भर से जुटे जाने – माने साहित्यकारों ने कहानी की कारीगरी पर विस्तृत बातचीत की। कथा – कहन कार्यशाला के ज़रिए कहानी की बुनाई से जुड़े नए आयामों पर संवाद हुआ ।
वैश्विक पहचान वाले चित्रकार ,लेखक अनुवादक अखिलेश ,राजस्थानी व् हिंदी के चर्चित लेखक अरविन्द आशिया ,आधी शताब्दी से लेखन ,प्रकाशन और वृतचित्र निर्माण में सक्रिय ब्रजेन्द्र रेही, नाट्य निर्देशन ,रंग आलोचना में जाना –पहचाना नाम देवेन्द्र राज अंकुर ,पेशे से मनोचिकित्सक ,ह्रदय से कवि डॉ विनय कुमार,फिल्म निर्माता ,पटकथा लेखक और निर्देशक गजेन्द्र श्रोत्रिय ,वरिष्ठ पत्रकार,कथाकार ,नाटककार और व्यंगकार ईशमधु तलवार, वरिष्ठ व नामचीन लेखक व् वैज्ञानिक जितेन्द्र भाटिया,चर्चित उपन्यासकार ,कहानीकार लक्ष्मी शर्मा, ख्यातनाम लेखक व नाट्य निर्देशक प्रेमचन्द गाँधी ,प्रसिद्ध ब्लागर ,कहानीकार ,प्रकाशक ,नाट्य लेखक व् निर्देशक कुश वैष्णव ,प्रसिद्ध नृत्यांगना व् आचार्य प्रेरणा श्रीमाली ,इन्डियन सोसायटी फॉर थियेटर रिसर्च के कार्यकारी अध्यक्ष ,प्रसिद्ध नाटककार रवि चतुर्वेदी ,आधुनिक चिन्तनशील चित्रकार मनीष पुष्कले ,विजुअल स्टोरीटेलर कनुप्रिया कुलश्रेष्ठ व बरखा लोहिया तथा हिंदी कथा लेखन जगत का नामचीन हस्ताक्षर मनीषा कुलश्रेष्ठ ने अपने सुदीर्घ अनुभवों से सत्रों में प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया !


सत्र २ -क्या कहानी कोई सवाल पैदा करती है – देवेन्द्र राज अंकुर
आगाज सुंदर था ,अंदाज और भी बेहतर !! उद्घाटन सत्र के बाद कहानी का रंगमंच सत्र में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की ओर से तीन नाटकों का मंचन हुआ, जिसमें सूर्यबाला की कहानी एक स्त्री के कारनामे, अज्ञेय की कहानी शरद् दाता तथा मंटो की चर्चित कहानी खोल दो का प्रदर्शन हुआ। नाट्य निर्देशन तथा रंग आलोचना में जानी-मानी शख्सियत देवेन्द्र राज अंकुर के निर्देशन में अमिताभ श्रीवास्तव और दुर्गा शर्मा सरीखे वरिष्ठ कलाकारों ने सजीव अभिनय से दर्शकों को बांधे रखा। ये नाटक दृश्य दर दृश्य चोट करते हुए झिंझोड़ रहे थे।नाटकों की प्रस्तुति के बाद, रंगमंच पर कहानियों की बुनावट के इर्द – गिर्द महत्वपूर्ण चर्चा हुई। देवेन्द्र राज अंकुर ने कहा कि रंगमंच के लिए कहानी चुनते हुए यह देखना अहम है कि कहानी क्या कहती है? कहानी क्या सवाल पैदा करती है? या कहानी दिल में कितना उतरती है?

सत्र ३- रचनात्मकता के रहस्यों पर चर्चा
इस महत्वपूर्ण प्रस्तुति के बाद अगला सत्र भी शानदार रहा ! पटना से आए मनोचिकित्सक और कवि डॉ विनय कुमार ने कहानी के संसार में जगह बनाने के इच्छुक प्रतिभागियों को कहा कि रचनात्मकता के लिए सबसे ज़रूरी है मौलिकता, कल्पनाशीलता और मनोरंजन या पाठकों को बांधे रखने की क्षमता। लिखते हुए जब भी अटकें, स्वयं से प्रश्न करें। उन्होने युवा कहानीकारों को सम्बोधित करते हुए कहा कि एक रचनाशील व्यक्ति के ज़ेहन में बहुत कुछ इकट्ठा होता है, यही उसका कच्चा माल है, जिससे वह रचता जाता है। अपने विज़न को बड़ा करें, और कल्पनाशीलता को बढ़ाने का अभ्यास करते रहें।

सत्र ४ -जीवन की विस्तृत कथा उपन्यास
वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय जितेंद्र भाटिया सर ने कहानी और उपन्यास के विविध पक्षों को छूते हुए चर्चा को एक सार्थक मोड़ दिया,वरिष्ठ कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ मैम के उनसे पूछे गए मानीखेज सवाल सभी प्रतिभागियों के लिए उपयोगी रहे।
उपन्यास की बारीकियों पर संवाद चर्चा में वरिष्ठ एवं चर्चित लेखक जितेन्द्र भाटिया ने कहानी - संसार की परतों को संवाद दर संवाद खोला । आज किस्सागोई के लिए कितनी जगह बची है? अंदाज़े – बयां कैसा हो? कहानी के लिए क्या सबसे ज़रूरी है – सरीखे अहम् पक्षों पर संवाद हुआ । उन्होने विस्तार से स्पष्ट करते हुए बताया कि आप क्या कहना चाहते हैं, यह आपके ज़हन में साफ़ होना चाहिए। लेखक के लिए हथियार होते हैं शब्द, और उन्हें अपने लिखे को लगातार काटते – छांटते रहना चाहिए, जिससे शब्दों का दोहराव नहीं हो।


सत्र ५ -कैसे रचता है कथाकार
वरिष्ठ पत्रकार ,कथाकार ईशमधु तलवार ने प्रेमचंद गांधी के साथ कहानी के तत्वों पर सारगर्भित संवाद व रोचक चर्चा की। सत्र में कहानी के समूचे पक्षों पर चर्चा हुई ।
ईश मधु मानते हैं कि लेखक का पक्ष मानवता का पक्ष होता है, इसे ध्यान में रखकर लिखें। शब्द लेखक की ताकत होते हैं, और ग़र उनका सही प्रयोग हो, तो वे समाज को बदलने का औजार भी बन सकते हैं। ईश मधु ने ज़ाहिर किया कि कहानी के किरदारों का स्वभाव कहकर नहीं, मज़ेदार किस्सों और भाव – भंगिमाओं के ज़रिए बुनें। ईश मधु कहानी में संवादों की महत्ता पर ज़ोर देते हुए बताते हैं कि संवाद सहज और वास्तविक लगें। किरदारों के मुताबिक भाषा गढ़ें। वहीं कहानी में वातावरण और पृष्ठभूमि को भी नज़रअंदाज नहीं करें।
वहीं बातचीत में प्रेम चन्द गांधी ने कहानी की कारीगरी पर कई सुझाव बांटे। उन्होने कहा कि अपने लिखे से मोह नहीं पालें, और उसे समय – समय पर कांटते – छांटते रहें। वहीं इर्द – गिर्द छोटी – छोटी घटनाओं को भी गहराई से देखें। नए शब्द मिलें, तो उन्हें कहीं लिखते चलें।

सत्र ६ -चित्रों के ज़रिए कहानियां कैसे लेती हैं आकार : ग्राफिक बुक्स
चित्रों के ज़रिए कहानियां कैसे आकार लेती हैं? क्या वजहें हैं कि चित्र हमें आकर्षित करते हैं? कुछ ऐसे ही प्रासंगिक पहलुओं पर कथा – कहन कार्यशाला के दूसरे दिन आयोजित हुए सत्र चित्रों की जुबानी – नयी कहानी में रोचक चर्चा हुई। अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चर्चित चित्रकार अखिलेश तथा युवा विजुअल स्टोरी टैलर्स कनुप्रिया कुलश्रेष्ठ और बरखा लोहिया ने कलाप्रेमियों को विजुअल स्टोरी टैलिंग के सफ़र के बारे में साझा करते हुए बताया कि गुफाओं की दीवारों पर जो चित्र हैं, वे सभ्यता के सबसे पुराने चित्र माने जा सकते हैं। इलस्ट्रेशंस, कार्टून्स, पिक्चर बुक्स, ग्राफिक नॉवल्स सरीखे प्रचलित माध्यमों के बारे में व्यापक चर्चा हुई। वक्ताओं ने पॉवर पॉइन्ट प्रजेंटेशन के ज़रिए विजुअल स्टोरीज़ कहने की अहमियत और ज़रुरत के बारे में विस्तार से बताया।

सत्र ७ -सिनेमा की माया – कहानी की काया
सिनेमाई लेखन पर आधारित इस सत्र में भोभर और कसाई जैसी लोकप्रिय फिल्में बना चुके गजेन्द्र क्षोत्रिय ने उभरते कहानीकारों से फिल्म मेकिंग की विधा पर रोचक जानकारियां साझा कीं। दर्शकों की जिज्ञासाओं को सुलझाते हुए क्षोत्रिय ने विस्तार से बताया कि फिल्म बनाने की दिशा में क्या करें। वे बताते हैं कि फिल्म बनाने के लिए सबसे ज़रूरी है कहानी या स्क्रिप्ट। ऩिर्देशक सबसे पहले विषय तय करें और ऐसी कहानी चुनें, जो दर्शकों को रास आए। किरदारों की पृष्ठभूमि पर विस्तार से कार्य करें, उनकी पर्सनल, प्राइवेट और प्रोफेशनल ज़िन्दगी के बारे में ज़रूर बताएं। बतौर लेखक यह तय करें कि किरदार की ज़िन्दगी में उतार – चढ़ाव बने रहें, साथ ही देखें कि यह बदलाव सहज लगें, बनावटी नहीं। कहानी विश्वसनीय लगे, तब ही दर्शकों से जुड़ पाएंगे।

सत्र ८ -कैसे हो समूची कलाएं हमक़दम
किस कद़र सारी कलाएं एक – दूसरे से जुड़ती हैं, बात करती हैं और आगे बढ़ती हैं – यह बयां हुआ सत्र हमकदम – साहित्य और अन्य कलाएं में, जहां प्रख्यात चित्रकार अखिलेश, देश की अग्रणी नृत्यांगना प्रेरणा श्रीमाली तथा चिन्तनशील चित्रकार मनीष पुष्कले ने रोचक संवाद किया। अखिलेश ने कहा कि कम उम्र से ही बच्चों को साहित्य पढ़ने को प्रेरित करें, संगीत कार्यक्रमों में ले जाएं, नृत्य नाटिकाएं दिखाएं तथा चित्रकला प्रदर्शनियों में ले जाएं, जिससे उनमें बचपन से ही समस्त कलाओं के प्रति प्रेम और अभिरुचि विकसित हो।
सत्र ९ -कहानी दिल का मामला है
सत्र दूरदर्शन से ओ.टी.टी. के सफ़र में देश के जाने – माने पटकथा लेखक, सम्पादक तथा स्तम्भ लेखक रहे ब्रजेन्द्र रही ने साफ़गोई से बयां किया कि कहानी किसी फार्मूले से नहीं, दिल से लिखें। लगातार पढ़ते रहें और विचार – विमर्श करते रहें। रही ने दूरदर्शन से ओ.टी.टी. तक के सफ़र में कहानी के बदलते रूपों पर व्यापक चर्चा की। नए कहानीकारों को सम्बोधित करते हुए रही कहते हैं कि फूल की मानिंद हल्के रहें, खिलखिलाएं और खिलें।

सत्र १० -लिखना जैसे इक आग का दरिया है
लिखने की राह में कितनी मुश्किलें हैं? लेखक के समक्ष क्या चुनौतियां हैं? कुछ ऐसे ही ज़रूरी सवालों पर पटना से आए मनोचिकित्सक तथा कवि डॉ विनय कुमार ने ‘इक आग का दरिया है’ सत्र में नए रचनाकारों के सामने उन दिक्कतों का जिक्र किया, जो लिखते हुए पेश आती हैं। डॉ विनय कहते हैं कि कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकल कर ही अच्छा लिखा जा सकता है। वे मानते हैं कि आपकी जिज्ञासाएं, कल्पनाशीलता, संवेदनशीलता और जीवन के अनुभव ही आपको उत्कृष्ट रचनाकार बनाते हैं। डॉ विनय सुझाते हैं कि सरल रहें, पूर्वाग्रहों से बचें, ज़हन को खुला रखें और सकारात्मक रहने की कोशिश करें।

सत्र ११ -पुराने को ध्वस्त करके ही नए की रचना मुमकिन
इंडियन सोसायटी फॉर थिएटर रिसर्च के कार्यकारी अध्यक्ष तथा नाट्य जगत में वरिष्ठ नाम रवि चतुर्वेदी ने ‘रंग लेखन के तत्व’ सत्र में खुलकर कहा कि पुराने को ध्वस्त करके ही कुछ नया रचा जा सकता है। डॉ चतुर्वेदी ने नाट्यशास्त्र के कई आयामों पर अपनी बात रखते हुए कहा कि हर कहानी को मंचित किया जा सकता है बशर्ते कि वह लोगों को प्रभावित करने में सक्षम हो।

सत्र १२ -यह है बोलती किताबों का दौर
कैसे बनते हैं ऑडियो नॉवल? क्या है, जो ऑडियो कहानियों को रोचक बनाता है? इन दिनों कैसी कहानियां पसन्द करते हैं सुनने वाले? इस किस्म के रुचिकर सवालों के इर्द – गिर्द सत्र ‘बोलती किताबें’ में लम्बी बातचीत हुई। चर्चा में प्रख्यात साहित्यकार मनीषा कुलश्रेष्ठ और लोकप्रिय ऑडियो कहानियां लिखने वाले कुश वैष्णव ने ऑडियो रेडियो माध्यमों के लिए कहानी लिखने के ज़रुरी टिप्स बताते हुए कहा कि कहानी श्रोता के मुताबिक किस प्रकार लिखी जाए कि वह उससे जुड़ाव महसूस कर सके। सत्र में उन्होने इन दिनों अत्यधिक प्रसिद्ध हो रही बोलती किताबों की विधा पर संवाद किया।

सत्र १३ - ग्लोबल समय की कहानी’
कहानी में वैश्विक अपील हो, तब ही वह सभी को अपनी महसूस होती है – यह कहना था फिल्म निर्देशक गजेन्द्र श्रोत्रिय का, जो कथा – कहन कार्यशाला के तीसरे दिन ‘ग्लोबल समय की कहानी’ में अपनी बात रख रहे थे। संवाद में उनके साथ थे वरिष्ठ साहित्यकार प्रेमचन्द गांधी, जिन्होने कहा कि जब भी वैश्विक स्तर पर कुछ रचें, तो यात्राएं करें। जिस जगह के बारे में लिख रहे हों, वहां पर्याप्त समय बिताएं, उसे भरपूर जानें – समझें और फिर लिखें। वहीं श्रोत्रिय ने ओरहान पामुक, वी.एस.नायपॉल और अमिताव घोष के उपन्यासों का जिक्र करते हुए बताया कि किस तरह लोकल को ग्लोबल बनाया जा सकता है।

सत्र १४ - लोक का आलोक
हिन्दी व राजस्थानी के चर्चित लेखक अरविन्द आशिया और कहानीकार - उपन्यासकार डॉ लक्ष्मी शर्मा ने ‘लोक का आलोक’ सत्र में लोक कथाओं, लोक गीतों और लोक देवताओं से जुड़ी महत्वपूर्ण चर्चा करते हुए कहा कि लोक में व्याप्त कथा तत्वों का प्रयोग करते हुए एक बेहतरीन कहानी लिखी जा सकती है। अरविन्द आशिया ने कहा कि लोक सदैव समूह की संवेदनाओं को व्यक्त करता है, व्यक्ति की नहीं। उन्होने कहा कि लोक अनगढ़ है और वही उसकी व्यापकता का रहस्य है। वहीं डॉ लक्ष्मी ने विजय दान देथा की लोक कथाओं का जिक्र किया, और कहा कि लोक की भाषा को पकड़ना ज़रूरी है, इसी से कहानी में संप्रेषणीयता आती है।
कार्यशाला के समापन अवसर पर समस्त प्रतिभागियों ने अपने अनुभव साझा करते हुए कार्यशाला को हर दृष्टि से उपयोगी, ज्ञानवर्धक और वैचारिक दृष्टि से संपन्न और सार्थक बताया। प्रतिभागियों ने कहा कि ऐसी कार्यशाला हर वर्ष होनी चाहिए, ताकि रचनाकारों की दृष्टि विकसित हो।
हिंदीनेस्ट कथा कहन कार्यशाला अनूठी थी। अब तक हिन्दी साहित्य जगत ऐसे प्रयोगों से कमोबेश वंचित ही रहा है। लेखन की दुनिया में ऐसी कवायदों का बारम्बार स्वागत है।
साहित्य के क्षेत्र में इस नवप्रयोग के लिए मनीषा कुलश्रेष्ठ को साधुवाद!! हिंदी साहित्य में एक सुनहरा पृष्ठ जुड़ा।सभी प्रतिभागियों को स्नेहिल शुभकामनाएं !

नए कहानीकारों के लिए ज़रूरी है रचनात्मक कार्यशालाएं – मनीषा कुलश्रेष्ठ अपनी तरह में अनूठी कथा कहन कार्यशाला की आयोजक और वरिष्ठ साहित्यकार मनीषा कुलश्रेष्ठ ने कहा कि हमारे देश में बहुत कम ही ऐसी कार्यशालाएं होती हैं, जहां लिखना सिखाया जाता हो !वे बताती हैं कि प्रतिभागियों के चेहरों पर संतुष्टि थी,उत्साह था और यही उनके लिए इस कार्यक्रम की सफलता है। अपने ४० प्रतिभागियों और स्पीकर्स का आभार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा -यह डर, फ़िक्र और चुनौतियों से घिरा कोरोना का मुश्किल वक़्त है, जहां दूसरे राज्यों से लेखकों और वक्ताओं का आना आसान नहीं था। इस सब के बीच भी नए रचनाकारों को कहानी लिखने के गुर सिखाने के लिए वे गुलाबी शहर पहुंचे।
शहर की भागदौड़ से दूर कानोता शहर की भागदौड़ से दूर कानोता बांध,चहुं ओर हरियाली और इस सब के बीच कहानियां बुनना सीखते कथाकार। कहानियां और किरदारगढ़ने के लिए इससे सुन्दर जगह हो सकती है भला!! सुबह के वक्त में, पेड़ों के झुरमुटों के बीच चर्चित साहित्यकार मनीषा कुलश्रेष्ठ ,डॉ लक्ष्मी शर्मा और प्रेमचन्द गाधी ने नवेले कहानीकारों की रचनाएं सुनी और मानीखेज सुझाव दिए।
पटना से पहुंचे मनोचिकित्सक और कवि डॉ विनय कुमार ने कार्यशाला में कहानी संसार की बारीकियों पर रोचक बातचीत की। कुमार बताते हैं कि वे हिन्दी नेस्ट की संस्थापक मनीषा कुलश्रेष्ठ को कार्यशाला में आने के लिए आश्वस्त कर चुके थे, तो उन्हें आना ही था। इस प्रकार की अनूठी कार्यशाला के आयोजन के लिए हिन्दी नेस्ट को शुभकामनाएँ देते हुए कुमार बताते हैं कि इस मंच के माध्यम से उन्हें कई नए कहानीकारों और कलाप्रेमियों से मिलने का अवसर मिला। उनके अनुसार हिन्दी जगत् में कहानी की कारीगरी सिखाने वाली इस तरह की कार्यशालाएं दुर्लभ हैं। ऐसे प्रयोगों का स्वागत होना चाहिए।

देश के चर्चित पटकथाकार ब्रजेन्द्र रही ने नवेले कहानीकारों को विस्तार से बताया कि दूरदर्शन से ओटीटी तक के सफ़र में कहानी कहने का तरीक़ा बिल्कुल बदल चुका है। दिल्ली से पहुंचे रही साफ़गोई से कहते हैं कि नए लेखक मुफ़्त में नहीं लिखें। जब मज़दूर भी बिना पारिश्रमिक के काम नहीं करता, तो लेखक की कहानियां मुफ़्त क्यू छपें। कथा कहन कार्यशाला के अनुभव को साझा करते हुए वेकहते हैं कि ऐसे प्रयोगों से हिन्दी साहित्य का संसार समृद्ध होगा। ऐसे आयोजनों से नई दृष्टि मिलेगी। नई प्रतिभाओं को विकास का अवसर मिलेगा। रही ने कहा कि कार्यशाला में नए रचनाकारों में महिलाओं ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, जिससे यह ज़ाहिर हुआ कि आने वाले समय में महिला लेखन की सशक्त सम्भावनाएं हैं।
देश के चर्चित चित्रकार और लेखक अखिलेश ने कहा कि जिस प्रकार इस कार्यशाला में लिखने की
बारीकियों पर चर्चाएं हुईं, यह अद्वितीय है। ऐसे आयोजनों की सफलता पक्की है।

प्रस्तुति : सोनू यशराज

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