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कथा कहन स्पीकर – 3

लिखना

खुद को अभिव्यक्त करना इंसान की आदिम आकांक्षा है. वह दूसरे के सामने खुद को एक्सप्रेस करना चाहता है. हम सबके अंदर ज़ज़्बात हैं. हमें तकलीफ़ होती है, इन्सल्ट महसूस होती है, किसी से प्रेम होता है, किसी से नफ़रत. हम जो भी महसूस करते हैं, उसका इज़हार करना चाहते हैं. इज़हार करने की इच्छा भी कोई मामूली इच्छा नहीं है. यही इच्छा सभी कलाओं की जननी है. हम कहते तो अपनी बात हैं पर उसमें सबकी बात शामिल हो जाती है. इसी तरीके से दूसरा भी हमसे आ जुड़ता है. इज़हार की इच्छा को इसी बात से समझा जा सकता है कि यंगस्टर्स हर वक्त मोबाइल या सोशल मीडिया से जुड़े रहते हैं. इज़हार हमारी आत्मा की गहरी ज़रूरतों में से एक है. अगर आप इज़हार नहीं कर पाएंगे तो धीरे-धीरे एक किस्म के डिप्रेशन में उतरते चले जाएंगे. खुद को निरर्थक महसूस करने लगेंगे. हम प्रेम भी तो इसीलिए करते हैं कि खुद को कह सकें और जब प्रेम गहरा हो जाता है तो कुछ कहने की भी ज़रूरत नहीं रह जाती सब कुछ खुदबखुद कम्युनिकेट हो जाता है. लिखना बोलने का सबसे अच्छा तरीका है क्योंकि बोले गए शब्दों को तो हवा उड़ा ले जाती है पर लिखे गए शब्द मिट नहीं सकते.

तो चार प्रकार के फाइन आर्ट्स माने गए हैं...
१- पेंटिंग
२- डांस
३- म्युज़िक
४- राइटिंग

पेंटिंग, डांस और म्युज़िक की अकादमियां होती हैं. इन्हें सिखाने के प्रयास किए जाते हैं. इन पर भारी मेहनत और ख़र्च किया जाता है पर राइटिंग को सिखाया नहीं जाता. कहते हैं, लिखना ख़ुदादाद होता है. दूसरा आपकी मदद नहीं कर सकता क्योंकि आख़िरकार ख्याल आपका है. इंटरनेट के ज़माने में मैं इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखती.

हमने जब लिखना शुरू किया था, हमारा मार्गदर्शन करने वाला कोई नहीं था. अटकते-भटकते-धक्के खाते हमने लिखना सीखा. अब लगता है, इस स्किल को सिखाया जाना चाहिए कि कैसे अपनी मिट्टी में अपने ख्यालों के बीज डालें फ़िर उस ख्याल को पोषित करें, उसका किन लफ़्ज़ों में इज़हार करें, खुद को कैसा वातावरण दें, खुद को नरचर करने के लिए क्या करते रहें? कौन सी विधा आपके लिए ठीक रहेगी? बहुत से सवाल हैं, जो जवाब के ख्वाहिशमंद हैं. इस पर हम तीन तरीकों से बात करेंगे ....

१- लिखने से पहले
२- लिखते वक्त
३- लिखने के बाद

हम क्या लिखते हैं, इसका दारोमदार इस बात पर है कि हम क्या पढ़ते हैं और क्या सुनते हैं? पढ़ते हुए ही हम पर अपने ही कई राज़ खुलते हैं. हम शब्दों में झांकते-झांकते अपने भीतर झाँकने लगते हैं और वहीँ अपना छोटा सा सत्य पा लेते हैं.

लिखना एकांत का धीमा और मधुर संगीत है. कई बार हम अपने लिखे में उन चीज़ों को पकड़ने की कोशिश करते हैं, जो पकड़ से बाहर हैं.

कहानी सिर्फ़ एक कोशिश है वह कहने की, जिसे कहने में तुम असमर्थ भी महसूस कर रहे हो. ये भीतर की कोई तलछट है, जो तुम कुरेद कर निकाल रहे हो. हम यथार्थ के पंछी को पकड़ने की कोशिश करते हैं, कितना पकड़ पाएंगे, वह उड़ जाएगा या मर जाएगा, नहीं जानते.

हेमिंग्वे के अनुसार, कहानी लिखना एक बुल फाइटिंग की तरह है .... उसके बहुत नज़दीक है. हर कथाकार अखाड़े में सांड के सामने रहता है और हर बार उसके भयावह सींग, उन्हें तुम चाहे ज़िंदगी कह लो, सत्य या यथार्थ, उसे छीलते हुए, छूते हुए फ़िसल जाते हैं.

लिखना आपको अपनी कैद से आज़ाद करता है. आपको उस बोझ से सुर्खरू करता है, जिसे ढोते-ढोते आप थकने लगे थे.

चलिए अब इस बात पर गौर करते हैं कि जिनमें लिखने की कूवत तो है फ़िर वे क्यों अटकते और भटकते हैं? क्यों उन्हें इस बात पर ऐतबार नहीं आता कि वे लिख सकते हैं? वे कौन सी गलतियाँ करते हैं? क्या सचमुच ट्रेनिंग की ज़रूरत है और किस प्रकार की ट्रेनिंग? ऐसी कौन सी गलतियाँ हैं जो लिखने वाला अपने शुरूआती दौर में करता है?

तो आइए, कुछ सवालों के जवाब ढूँढने की कोशिश करेंगे ....

१- लिखना ज़रूरी क्यों है?
२- अपनी भावनाओं को किस फार्म में अभिव्यक्त करें?
३- शुरुआत और अंत किस तरह करें?
४- गहराई हासिल करने के लिए क्या करें?
५- भाषा को कैसे साधें?
६- विषय का चुनाव कैसे करें?
७- राइटिंग स्किल डेवलप करने के लिए क्या करें?
८- अपनी स्किल कैसे पहचानें कि हम क्या लिख सकते हैं?
९- एडीटिंग का महत्त्व
१०. अपनी कॉल कैसे पहचानें?
११. कल्पना शक्ति का महत्त्व

- जया जादवानी

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