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अधूरी तस्वीरें ''
अविनाश पहुँचते ही फोन कर
देना वरना तुम्हारी माँ
को चिन्ता हो जाएगी।'' बस मामा जी और माँ की ही जिद है, उसका तो बिलकुल मन नहीं था माऊन्टआबू जाने का। उसकी एक शादी से माँ का जी नहीं भरा जो इस दूसरी शादी के लिये माँ ने मामा से कह - कहलवा कर विवश कर दिया है। माना मामा अन्त तक कहते रहे हैं कि - ''अविनाश तू यह मत समझ कि तुझे शादी के लिये भेजा जा रहा है। वहाँ मेरे दोस्त ब्रिगेडियर सिन्हा का घर और बाग हैं, वहाँ तू बस उनके परिवार के साथ छुट्टियाँ बिताने जा रहा है। उन्होंने तुझे बचपन में देखा था। बडा बुला रहे थे। मैं अगले सप्ताह पहुँच जाऊंगा।'' पर वह जानता है यह जाल शादी के लिये ही बिछाया जा रहा है। बस चलते ही, अच्छा मौसम होने के बावजूद , यह बात सोच अविनाश का मन कडवी स्मृतियों से भर गया, आँखे जलने लगीं और उस अपमान को याद कर पूरा ही वजूद तिलमिला गया। नहीं करनी अब उसे दूसरी शादी। हालांकि पहली ही शादी शादी न थी, कोर्ट में शून्य साबित कर दी गई थी। पर उसका मन ही मर गया था। उसके बाद, हर स्त्री एक छलावा लगती थी। नौ साल हो गये उस बात को। पर मन के छाले हैं कि सूखते नहीं बल्कि बार बार फूट कर उसे आहत करते हैं। उसका क्या गुनाह था? कितने अरमानों के साथ उसकी विधवा माँ ने स्कूल में टीचिंग कर उसे अच्छे आदर्शों के साथ पाला, और फलस्वरूप उसका एन डी ए में सलेक्शन हुआ। जब वह आर्मी ऑफिसर बन कर माँ के सामने आया तो माँ कितनी गर्वित थी। उसने बडे चाव से ढेरों रिश्तों में से एक बेहतरीन रिश्ता चुना था उसके लिये, एक बहुत बडे आई ए एस अधिकारी की बेटी अल्पना। माँ तो बस घर बार और लडक़ी की सुन्दरता पर और उनकी शानदार मेहमाननवाजी पर रीझ गईं। देखने दिखाने की रस्म के बाद सबके कहने पर एकांत में उसने एक संक्षिप्त बात की और वह अचानक उठ कर चली गई , तब उसे लगा था कि शर्मा रही होगी। उन लोगों और माँ की जल्दी की वजह से उसे शादी के लिये छुट्टी लेनी पडी। तब भी एक दो बार उसने फोन पर बात करना चाहा पर किसी न किसी वजह से बात न हो सकी। उसने सोचा लिया था कि अब तो शादी हो ही रही है। शादी के ताम झाम के बाद जब अपनी जीवन संगिनी से मिलने की वो इत्मीनान की, एक दूसरे को जानने की रात आई तो शादी के शानदार पलंग पर फूलों की सजावट के बीच उसे लाल जोडे में अपनी दुल्हन नहीं मिली। काली नाईटी में अल्पना पैर सिकोडे सोई थी। जगाने पर बहुत ठण्डी आवाज में उसने कहा था, ''
मुझे छूना मत। यह शादी नहीं
है,
अविनाश,
समझौता है।'' वह सुन्दर चेहरा वितृष्णा से भर गया था। उसके बाद जब वह अगले दिन मायके गई तो उसकी जगह लौट कर विवाह को शून्य साबित करने के लिये उसके वकील का नोटिस आया, जिसमें आरोप था कि वह नपुंसक है और विवाह के योग्य नहीं। वह जड होकर रह गया। माँ और मामाजी ने उसके घरवालों से कहासुनी की, कोर्ट का फैसला होने तक अपमान उसे जलाता रहा। हालांकि वह आरोप साबित न हो सका, पर अब उसका ही मन न था कि यह सम्बंध बना रहे। उसने तलाक मंजूर कर लिया। उसके बाद उसने अपनी पोस्टिंग लेह करवा ली थी वहाँ से भी लगातार फील्ड पोस्टिंग्स लेता रहा जानबूझ कर और मां की दूसरे विवाह की जिद को टाल गया था। पर अब माँ की अस्वस्थता की वजह से उसे जोधपुर पोस्टिंग करवानी पडी। और माँ के साथ रह कर उनकी जिद न टाल सका। बार बार शादी की उम्र निकल जाने की बात कह कर भी माँ को जीवन भर अविवाहित रहने की बात के लिये मना न सका। हर बार वही बहस ''
माँ इस अगस्त में
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का हो जाऊंगा। अब कोई उमर है शादी की।'' पिछले कई दिनों से यह माऊंट आबू प्रकरण माँ और मामा चलाए जा रहे थे। माँ के इमोशनल ब्लैकमेल और पिता जैसे मामा के समझाने पर वह टाल न सका। इस बार मामा छाछ भी फूंक फूंक कर पीना चाहते थे सो वह उसे लडक़ी और उस के परिवार के साथ पूरे पन्द्रह बीस दिन छोडना चाह रहे थे। ब्रिगेडियर सिन्हा मामा के कलीग रह चुके हैं, उनकी एक बहन है अविवाहित, उसने भी किन्हीं कारणों से शादी नहीं की। उसके मन में किसी बात को लेकर कोई उत्साह नहीं है। उसे मलाल हो रहा है, उसने सोचा था कि इस बार एनुअल लीव लेकर माँ के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएगा और माँ के साथ लम्बी यात्राओं पर जाएगा पूरा भारत घूमेगा। पर माँ ने ही कह दिया कि- '' औ मेरे श्रवणकुमार, मैं तो तीर्थ कर ही लूंगी, पहले तेरी शादी करके गंगा नहा लूं।'' बहुत सारे ख्यालों से उसका मन भारी हो चला है, वह सर झटक कर बस के बाहर झांकता है, शाम का झुटपुटा रास्तों और पहाडियों पर उतर आया है, झुण्ड का झुण्ड तोते शोर मचाते हुए लौट रहे हैं, हवा में सर्दी के आगमन की खुनकी महसूस होने लगी है, वह पूरी खुली खिडक़ी जरा सी सरका देता है, बस के अन्दर नजर डालता है। सामने वाली सीट पर एक विदेशी युवति बैठी है, उसे देख मुस्कुरा देती है। वह उस बेबाक निश्छल मुस्कान पर जवाब में मुस्कुराए बिना नहीं रह पाता। अचानक न जाने किस गुमान में उसके हाथ बाल संवारने लगते हैं। अपनी इस कॉलेज के लडक़ों जैसी हरकत पर उसे स्वयं हंसी आ जाती है और उसे दबाने के लिये खिडक़ी के बाहर देखने लगता है। मन हल्का हो गया है। वैसे आजादी में कितना सुकून है। अब उम्र के पैंतीस साल मुक्त रह कर विवाह के पक्ष में वह जरा भी नहीं पर यहाँ भारत में जिस तरह बडी उमर की लडक़ियों का कुंवारा रहना संदिग्ध होता है वहीं बडी उम्र के कुवांरे भी संदेहों से अछूते नहीं रह पाते। समाज का इतना दबाव होता है कि आप को कोई चैन से नहीं बैठने दे सकता। वह बस अपनी नौकरी के बीस साल पूरे करते ही, एब्रोड चला जाएगा। नहीं करनी शादी-वादी। बेकार का बवाल! उसकी नजर फिर उधर चली गई, वह भी इधर ही देख रही थी। दोनों ने फिर मुस्कान बांटी। लडक़ी आकर्षक है। शाम ढलने लगी थी। लगता है आबू रोड से उपर माऊंट आबू पहुंचते पहुंचते दो घंटे और लग जाएंगे और रात आठ बजे से पहले नहीं पहूँचेगा वह। फिर वह रात किसी होटल में ठहर कर सुबह ही ब्रिगेडियर सिन्हा के घर जाएगा। ठण्ड गहराने लगी थी, उसने मां की जबरदस्ती रखी हुई जैकेट निकाल कर पहन ली। उस लडक़ी ने फिर उसे देखा इस बार उसकी आँखों में आकर्षण था उसके प्रतिवह मुस्कुराया नहीं इस बारएक गहरी नजर डाल, खिडक़ी के बाहर फैलते अंधेरे में दृष्टि डालने लगा। पहाडों - पेडों की सब्ज आकृतियां धीरे धीरे स्याही में बदल रही थीं, उसके मन पर अन्यमनस्कता के साये फिर घिर आए। कहाँ जा रहा है वह और क्यों बेवजह? क्या समझौते की तरह दो लोगों के बंधने से जरूरी काम कुछ और नहीं? बेकार है यह विवाह नामक संस्था। मामा क्यों कहते हैं कि शारीरिक जरूरतें तो हैं ही, एक साथी के लिये मानसिक जरूरत भी होती है। शारीरिक जरूरतों का क्या है, उस जैसे आकर्षक पुरुष के लिये लडक़ियों की कमी है क्या? जैसे जैसे अंधेरा गहरा रहा है, वह उस विदेशी युवति की नजरों को अपने चेहरे पर महसूस कर रहा है। उसने चेहरा घुमा लिया है खिडक़ी की तरफ फिर से हालांकि इस एक पोस्चर में उसकी गर्दन दुखने लगी है। पर वह किसी किस्म की गलतफहमी उसे नहीं पालने देना चाहता। बस ने आठ की जगह साढे आठ बजा लिये हैं। बसस्टॉप पर उतर कर वह अपना सामान डिक्की से निकलवा रहा है। तभी उसके कन्धे पर उसे हाथ महसूस हुआ, ''
हलो,
जेन्टलमेन,
आय एम ब्रिगेडियर
सिन्हा।'' अंधेरे में पहाडी रास्तों से होकर ब्रिगेडियर सिन्हा के बंगले पर पहुंचते पहुंचते पन्द्रह मिनट लग गये। सारे रास्ते वे बोलते रहे वह सुनता रहा, कि कैसे फौज छोड क़र वे यहा सैटल हुए, यहाँ उनका फार्म हाउस भी है। फार्मिंग में उनकी शुरू से रुचि रही है। वे उसमें स्ट्राबैरीज उगाना चाह रहे हैं इस बार। माऊंट आबू का मौसम कैसा है? यहाँ वे बहुत लोकप्रिय हैं आदि आदि। उनके बंगले के गेट से पोर्च तक एक मिनट की ड्राईव से लग रहा था कि खूब बडी ज़गह लेकर घर बनाया गया है। अन्दर पहुंच कर, रामसिंग को उनका सामान गेस्टरूम में रखने का आदेश देकर, उसे हालनुमा ड्राईंगरूम में बिठा कर वे अन्दर कहीं गायब हो गये। हॉल की सज्जा कलात्मक थी। किसी के हाथ से बनी सुन्दर पेन्टिंग्स, जिनमें ज्यादातर राजस्थानी स्त्रियों के चेहरे थे, सांवला रंग लम्बोतरे चेहरे, खिंची हुई काजल भरी आंखें और तीखी नाक वाले। पूरे हॉल पर नजर घूमती हुई एक जगह आ टिकी, दरवाजें में हल्के नीले परदों पर बने आर्किड्स के जामुनी फूलों के बीच एक पेन्टिंग का सा ही चेहरा चस्पां था, वह चकराया, उसके गौर से देखने पर उस चेहरे ने पलकें झपकाईं और चेहरा हंस पडादूधिया हंसी। ''
ऐ नॉटी गर्ल।''
ब्रिगेडियर साहब आते
आते उस जीती जागती पेन्टिंग को साथ लेकर परदे में से बाहर आए। श्रीमति सिन्हा के साथ साथ अरदली चाय का टीमटाम लेकर आ गया। श्रीमति सिन्हा एक सुन्दर व सभ्रान्त महिला लगीं। चाय की औपचारिकता के बाद वह र्फस्ट फ्लोर पर बने गेस्टरूम में आ गया। रूम क्या था एक छोटा मोटा सा समस्त सुविधाओं से युक्त फ्लैट ही था। पूरा घूमघाम कर देख कर उसे याद आया दस बजे डिनर के लिये नीचे उतरना है। - आगे |
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