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o  नेक परवीन-3

मैं ने क्या नहीं किया उसे खुश करने के लिये...गर्मी की तपती दोपहरों में गैस खत्म होने पर उसके लिये जलते आंगन में कागज़ ज़ला जला कर चाय बनातीसर्द रातों में उठकर उसको भूख लगने पर खाना पकाया अपने हाथों से खिलाया, बच्चों की तरह नेवाले बना बना करउसकी हर ख्वाहिश पूरी की फिर भी वह बेवफा निकला और मेरा यकीन मोहब्बत पर से उठ गयातमाम जज्बे मुर्दा हो गये दिल रेगिस्तान हो गया

आश्रम की चिरकुंवारी मोटी गुरुजी कहती हैं, '' माया से बचो, प्रेम माया है, उसका जाल झूठा है
कोई न अपना है, न पराया, मुक्त हो जाओ बंधन से'' अकीदत ( श्रध्दा) से तमाम औरतें सर झुका लेतीं, मैं भी मक्कर साध लेती...आंखें खोलती तो गुरुजी की चेली उनको तले काजू खिलाती नजर आती  माया से !

'' आप उदास क्यों हैं?'' एक कमसिन लडक़ी ने बैठी हुई भीड में से पर्ची सरकाई
मैं इर्द गिर्द की खामोशी देखी थीअपना नोटों भरा बैग किनारे रख कर रुमाल तलाश किया था और उसको पर्ची लौटाते हुए मुस्कुरा दीसब माया है सब जड है

जितना मैं उसके करीब जाने की कोशिश करती वह दूर होता रहा
तमाम कामयाब नुस्खे नाकामयाब साबित हुएवह मेरी दूरी से खुश होता, मैं मायके जाने का नाम भी ले लेती तो वह नाच उठता
'' अल्लाह, तुम कितनी अच्छी हो, अपना ख्याल रखना
...आराम से रहना! कोई जल्दी नहीं है इत्मीनान से आना...वहाँ तो तुम्हारा दिल लगेगा न?'' और मैं दूर हटने लगी उसकी खुशी बढने लगी

'' सब कुछ तो है तुम्हारे पास औरत की तरह रहो'' ( शायद मुझे औरत की तरह रहना ही नहीं आया)
यों औरतों वाली तमाम कमीनगी, मुझमें भी थी, जलन, हसद, नफरत, कुढन, शुरु के दौर में मैंने खूब जासूसी भी की थीबटेरों की किस्में पता कीं, उसके पतों की डायरी छिपा दी लेकिन कंप्यूटर की तरह उसके जहन की फ्लॉपी में हजारों पते, फोन नम्बर, सालगिरह की तारीखें दर्ज थींखूब नमाजे और नफलें पढीं, रोजे रखे, कुरान हिफ्ज हो गया, हज़ारों सूरे याद हो गये, वह अपना न होना था, न हुआताबीज ग़ण्डे सब बेकार बेअसर

'' दिल को वसीह करो अपने
'' वह समझाता
'' सबसे मोहब्बत किया करो
'' वह हंसता
लो जी दिल न हुआ कबूतरखाना हो गया कि जिसके हर खाने में एक अदद( लडक़ी?)

मुझे पूरी चॉकलेट चाहिये थी
गलती यही थी कि मुझे शेयर करने की आदत नहीं थी नन कोई समान न कोई रिश्ता यही गांठ थीहजारों टुकडों में बंटी चॉकलेट का मजा कसैला हो जाता है मेरी जुबान परबचपन से आदत थी पूरी चॉकलेट खाने की, घर में छोटी होने का यही नुकसान रहा कि कोई हिस्सा बांट करने वाला नहीं था, सब कुछ अकेले ही लेना था, सुख दुख लेकिन यह तो वह चॉकलेट था जो

रात में अकसर ज्यादा पी लेने के बाद माफियां मांगता तब अचानक उसका जमीर जाग जाता, शक्ल मिसकीनों जैसी बना लेता
एकदम मासूम बन जाता, कदमों पर सर रख देता और दोनों हाथों से मुंह छिपा कर बच्चों की तरह फूट फूट कर रोता
मलूल आवाज में कहता, '' मैं तुमको कोई खुशी नहीं दे सका
''
'' नहीं नहीं तुम बहुत नेक हो
'' मैं फौरन सारे गुनाह बख्श देती और शर्मिन्दा हो जाती अपनी ज्यादतियों परवह अपने गुनाह बख्शवाने की जिद करता और मैं हर नमाज में इसके लिये दुआएं मांगतीमस्जिदों, इमामबाडों और दरगाहों में उसके गुनाह बख्शवाने पहुंच जाती

अकसर जी चाहता कि कलेजे में छिपा लूं
बाज कात मैं मां बन जाती उसकी, बहन भी बन जाती, महबूबा भी बन जातीहजारों रूप निकल आते हम फिर दोस्त बन जातेकभी कभार मियां बीवी भी बन जातेलेकिन चन्द दिनों बाद फिर वही...कुत्ते की दुम टेढी वाला हिसाब....जो कभी सीधी नहीं होती लाख कोशिश कर लोकुरान हाथ में लेकर झूठी कस्में खा जाता ऐसे ऐसे बहाने तराश लेता कि अक्ल हैरान रह जाये

अब मैं भी अकसर चुप रह जाती
कुछ कुछ इंसानी दोस्ती भी हो गयी थी उससे, रिश्ता बदल सा गया था

वह मुझे बताने लगा था कि  फरहा थोडी मोटी है, लेकिन आंखें झील की तरह पुरसुकून और गहरी नीली हैं
मोहिनी के दांत, सरोज के लब, लबें लाली कान्ता के बाल, सुमबुल.. अंजलि की जबान मीठी है...साधना से सिर्फ फोन पर ही बात कर लो तो सुकून मिल जायेअब इतनी दौड भाग के दौर में ज़रा सा सुकून तो सभी चाहते हैं न? तुम समझ रही हो न? रूटीन लाईफ से आदमी बोर हो जाता है न? इसलिये जरा सी तब्दीली''

मेरी अक्ल मोटी है, बारीक बातें मेरी समझ में नहीं आती हैं
इसलिये मैं सो जाती

हालांकि वह जल्दी बोर भी हो जाता फिर नई जुस्तजू नई तलाश शुरु हो जाती
वह एक जगह बैठने वाला परिंदा था ही नहीं बहुत क्लोज पार्टीज में वह अपनी नई डिसकवरी को भी ले जाता और दोस्तों पर रोब मारतामेरे चिडचिडाने पर कहता, '' तुमको तलाक तो नहीं दे रहा हूँ न!'' मैं घुटकर रह जातीजी तो चाहता मैं खुद ही ऐसे शख्स को तलाक दे दूंलेकिन बन्नो तू जायेगी कहाँ? इस समाज में जहाँ कुंवारी और तलाकशुदा लडक़ियों की हालत एक जैसी है जो बगैर कोई गुनाह किये गुनाहगार मानी जाती हैंतलाकशुदा औरत? न न न! कभी जी चाहता भाग जाऊं यह जंजाल छोड क़र लेकिन तहफ्फुज( सुरक्षा) का अहसास ही काफी था

'' प्रैक्टिकल बनो
वक्त के साथ चलना सीखो''
अब लडक़ियों से मुझे भी मिलवाने लगा
अकसर देर रात में आये फोन थमा देता
''सुनो लडक़ियां क्या क्या कहती हैं मुझे
कितना प्यार करती हैं''
बडा गुमान था उसको अपनी मर्दानगी का
हैरत होती मुझे लडक़ियों के मुंह से इस तरह की बातें सुनकर

चन्द लडक़ियां मुझे अच्छी भी लगीं
मैं उनकी आपा और बाजी भी बन गई चन्द वक्त - ए - रुखसत पर इतना रोईं कि मेरा दिल समुद्र की तलहटी में चला गया और मैं ने बडी मिन्नतें कीं कि -
'' आप इनमें से किसी के साथ तो ईमानदार रहिये
आप जिससे चाहे शादी कर लें मुझे एतराज नहीं होगा बस आप खुश रहिये, इसी में मेरी खुशी है''
'' लानत भेजो'' वह मेरी बेवकूफी पर बेतहाशा हंसता और कहता कि '' मेरे बेटे का क्या होगा? तुमको अन्दाजा ही नहीं है अभी
यही तो मेरी नस्ल बढाएगा ( वह बेटा जिसकी शक्ल वह कभी कभार ही देखा करता था) समाज में मेरी इज्ज़त हो तुम...वह मेरा बेटा''

यह खुदा किस तरह मेरा साथ दे रहा है? जी चाहता है न साथ दे तो ही अच्छा
। हाँ लडक़ी की जुदाई उससे बरदाश्त नहीं होतीलडक़ी छोडते वक्त बेहाल हो जाता, इतना दर्द तो मुझे बच्चा पैदा करने में नहीं हुआ था जितना इसे लडक़ी छोडने में होताबेतहाशा रोता, घन्टों उदास रहता, न खाता न पीता मैं उसको फिर जिन्दा करने की कोशिश में बेजान हो जातीचन्द दिन वह नॉर्मल रहता फिर दूसरा दौर शुरु
मुझसे कहता, '' मुस्कुराती रहा करो
हंसा करो, यह क्या मुंह बनाकर बैठी रहती हो? पपलू खेला करो, घूमने जाया करो सजकर रहा करो''

मैं चीनी की गुडिया की मानिन्द सज संवर कर बैठी रहती, मुस्कुराती रहती
आईने में मेरा चेहरा इतनी पर्तों से ढका नजर आता कि फिर लगता कि कोई दूसरा ही चेहरा हैमैं तो खो गई हूँ। गुमशुदा हूँ, अगर मेरे घर से कोई आ जाता तो वह घबडा जाता

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