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लकीर उससे हाथ मिलाते वक्त दिनेश के मन में एक सवाल था कि वह हिंदोस्तानी है या पाकिस्तानी । और इसी वजह से उसके हैण्डशेक में वह गर्मी नहीं थी जो होनी चाहिये थी । हाथ मिलाने की वह महज़ औपचारिकता थी, एक उपक्रम भर । बाद में उसने बताया था कि उसका नाम अनवर है, अमरीका में पिछले दस वर्षों से है, अमेरिका का नागरिक बन चुका है, और हफ्ते भर पहले उसने अपने बीवी - बच्चों को भी यहीं बुला लिया है ...बातचीत में दिनेश ने भी अपने परिवार के बारे में बताया कि वह भी बीवी - बच्चों केसाथ कुछ महीने पहले अमेरिका आया है, तीन साल का कांट्रेक्ट है, उसके बाद वापस लौट जाने का इरादा रखता है ... जाने -अनजाने या शायद जानबूझ कर ही दोनों ने बातचीत में अपने देशों का नाम नही लिया था । जहां तक दिनेश की बात थी उसके नाम से ही अंदाज़ा लग सकता था कि वह भारत से ही होगा, लेकिन अनवर ? वह भारत से भी हो सकता था और पाकिस्तान से भी, क्योंकि मुसलमान तो दोनों ही तरफ़ हैं । लेकिन यह बात कि अनवर पाकिस्तान से ही है इसे भी साफ़ होने में बहुत देर न लगी । वजह थी अनवर के उर्दू बोलने का पंजाबी लहजाजो दिनेश ने किसी मुसलमान के मुख से इससे पहले नहीं सुना था । दिल्ली में रहते हुए जिन मुसलमानों को उसने जाना था वे अधिकतर पुरानी दिल्ली के थे , जिनके शीन-क़ाफ़ बहुत साफ़ थे । " अजी एक बार अमेरिका आ जाने के बाद कौन लौटता है ?" अनवर हंसा । "मैं भी जब पहले-पैल आया था, रोज़ सोचता था कि एक दिन वापस चला जाऊंगा । चला भी गया सबकुछ बेच-बाच कर । पर लौट आया । पूछो क्यों ? वहां बाकी तो सब ठीक था, पर वहां जा के कुछ महीनों बाद यहां के आराम याद आने लगे । होता यह है कि आने के बाद पहले साल आदमी अपने वतन को बहुत याद करता है, सोचता रहता है लौट जाऊंगा । अगले साल वतन जाता है।वहां जाके यहां के आराम याद आने लगते हैं । लौट आता है । फिर न वहां अच्छा लगता है न यहां ।तब सोचता है जब दोनों जगह ही मन नहीं लगना तो फिर यह मुलक ही क्या बुरा है । फिर वह यहीं रहता चला जाता है जिसम यहां दिल वहां ।" जब अनवर हंसा था तो दिनेश को लगा था कि उसकी हंसी में तंज़ है । लेकिन पूरी बात सुन कर लगा कि अनवर की बात है दिलचस्प । वह उससे और बातें करने लगा । बातें करते करते वह खुद को अनवर के करीब महसूस करने लगा । अनवर भी और खुलता चला गया, और न जाने कब उनकी बातचीत में उनके देशों के नाम सहज भाव से भी लिये जाने लगे । कराची का ज़िक्र आया तो दिनेश ने बताया कि उसकी बीवी कराची में पैदा हुई थी और वहां दूसरी - तीसरी जमात तक पढ़ी भी थी । ' लाहौर कैसा है ' दिनेश ने पूछा । लेकिन उसने यह प्रश्न इसलिये नहीं पूछा था कि अनवर उत्तर दे ही । बल्कि यह बताने के लिये कि उसकी अम्मा जी का जन्म लाहौर का है । तभी तो अपने प्रश्न के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना वह यह कहता चला गया था -अम्मा जी लाहौर की हैं, उनकी शादी लाहौर मे हुई, और तो और मेरी सास भी लाहौर में पैदा हुई थीं, और आज भी दोनों औरतें लाहौर के अनारकली बाज़ार को याद करती हैं ।..आपने हिंदोस्तान देखा है ?"
"बचपन
में एक दिन अपने वालिद के साथ एक दिन दिल्ली में बिताया था
। किसी काम से गये थे । वहां लाल किले के पास बाज़ार है न चांदनी चौक
,
वहां एक होटल मे रुके थे
..वहीं
एकसिनेमा भी देखा था नॉवल्टी में ,
बस इतनी धुंधली सी याद
है । लेकिन हिंदोस्तान देखने की सरत ज़रूर है । बल्कि पाकिस्तानी
वज़ारत-ए-खारजा
में मैंने फ़ॉरन-सैक्रेरी
से एक बार गुज़ारिश भी की थी कि भारत की पोस्टिंग दिलवा दें,
वह कहते तो रहे कि करा
दूंगा,
पर करवाई कभी नहीं । अब इंशा
अल्लाह अमेरिका की शहरियत मिल गयी है,
फ़ैमिली भी आ गयी है ।
सबसे पहले हिंदोस्तान जाऊंगा । "
और एक दिन दरवाज़े पर दस्तक सुन
कर दिनेश ने दरवाजे मे लगे पीपहोल से झांक कर जो देखा
तो पाया बाहर मिस्टर और
मिसेज़ अनवर खड़े हैं । दरवाज़ा खुलते ही अनवर ने कहा,
"सलामभाभी जान",
और फिर वह दिनेश की बीवी
से कुछ यूं मुखातिब हुआ मानों उससे बरसों की जान-
पहचान हो,
उसका असली देवर हो और
अचानक मिलने चला आया हो ।
छुटकनियां सिर्फ शर्मा दी और
अनवर के चेहरे को देखती रही ।स रोज़ अनवर ने दिनेश के घर खाना भी खाया। फिर
चारों देर तक गप्पें लगाते रहे ।
मौसेरी बहन कुक्की और मानो में
सचमुच बहुत समानता थी । बल्कि सच पूछो तो अनवर केघर में सब कुछ मौसी के घर
जैसा ही लग रहा था,
जैंसे दीशो,
बब्बू,
नीलम,कुक्की
और माला
अपने मम्मी - पापा के
इर्द-गिर्द मंडरा रही हों ।
.......उनकी भी पांच
बेटियां ,
एक से एक सुंदर,
शरारती और होशियार । इसी
तरह हंसती रहतीहैं । इसी तरह लड़ती हैं और फिर इसी तरह जुड़ जाती हैं
,
इसी तरह बहुत बोलनेवाली
,
अपनीउपस्थिति से हर माहौल में
जान डाल देने वाली । नाम भी कितने मिलते-जुलते ... खातिर करने में कोई कमी
नहीं छोड़ रहीं थीं । एक कहती "
मेहदी हसन को सुनेंगे
अंकल ?
दूसरी कहती,
" आप अज़ीज़ मियां
को सुनेंगे अंकल ?
क्या क़व्वाली गाते हैं?
तीसरी कहती
, "मुझे
नूरजहां बहुत पसंद है ?
मैं आपको नूरजहां को वह गाना
सुनवाऊं
जो मेरा फ़ेवरेट है
?"फिर
कैसेट में रिकार्ड लगा कर सुनाने के लिये झगड़ने लगीं । दिनेश की बड़ी बेटी
भी
उनके आगे-पीछे
दौड़ने लगी ,
जैसे उनको बहुत समय से जानती हो
।बेगम अनवर रसोई में खड़ी चपातियां बना रही थीं,
बोलीं,
" अरे अंकल को चाट
तो खिलाओ
पहले ।"बातों
में जो शब्द बहुत आम था वह था पाकिस्तान । हमारा पाकिस्तान
,पाकिस्तान
के शहर,पाकिस्तान
की सड़कें,
शहर
, गलियां
, मोहल्ले
, मेले,
गाने
, लोकगीत
,नृत्य
, संस्कृति
, यहांकी पाकिस्तान की
राजनीति भी । भुट्टो ठीक हैं कि ग़लत । उन पर चलाये जा रहे मुक़दमें झूठे
हैं या सच्चे । पता चला
कि सदर अनवर के बच्चे एक तरफ हैं यानी भुट्टो की तरफ और सदर
अनवर भुट्टो के खिलाफ़ ।
बहस जब तेज़ हो गयी तो अनवर के अब्बा जी
,
जो अब तक बैठक में आ चुके थे
,
और सबसे
परिचय
करा दिये जाने के बाद एक तरफ कुर्सी पर चुपचाप बैठे थे सहसा बोले,
"पॉलिटिक्स खत्म
करेंअब । सिरदर्द हो जाता है। " यह सुन कर सब हंसने लगे । लेकिन इससे भी मज़ेदार बात यह कि वह बाद में भी दिनेश को दनेश ही पुकारती रहीं । मानो भाग कर परिवार की एलबम उठा लायी । दिनेश , रेखा और उनकी बेटियां एलबम देखने लगीं । यह कौन हैं ? मेरे चाचू हैं । यह उनकी शादी की तस्वीर है । रात को देर तक ढोलक पर गाने गाते रहे । यह कौन है ? दादी अम्मा हैं . .यह किसकी तस्वीर है ..नहीं पहचाना ..ग़ौर से देखिये .अबू हैं । कौन अबू ? अनवर ?तभी दिनेश की छोटी बेटी ने कहा , " बिलकुल पापा लगते हैं। "श्रीमती अनवर ने कहा , जब पोपी ने पहली बार दनेश भाई को देखा था तो वह भी यह ही बोली थी कि कि अंकल बिलकुल पापा लगते हैं । उसके बाद खाना परोसा गया । सब ने साथ बैठ कर खाया । खाने में कढ़ी , मटर पनीर और रायता थे । दिनेश ने खाने की तारीफ़ करते हुए कहा, " बहुत मज़े का बना है । अपने मुल्क से दूर तो रहा जा सकता है लेकिन अपने मुल्क के खाने से दूर बहुत दिन नहीं जी सकता । "
अनवर की बेटी पोपी बोली,
"
पाकिस्तानी खाने जैसा खाना तो
दुनिया में कोई है ही नहीं ।
"
खाने के बाद जब सारी प्लेटें उठा ली गयीं
,
सभी लोग हाथ धोने के लिये बिखर
गये ,
और
श्रीमती
अनवर छोटी-छोटी
कटोरियों में खीर परोसने लगीं,
तब दिनेश की छोटी बेटी
ने उससे पूछा,
"
यह अंकल कौन हैं
?"दिनेश
ने बताया, "यह
मेरे दोस्त हैं । जहां मैं काम करता हूं
,
वहां यह मेरे साथ काम करते हैं
। "
उमेश
अग्निहोत्री
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