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डिमी
"बाबू आ बासी खा ले।" डिमी ने भीतर वाले कमरे से आवाज लगाई।
"हां दोनों के लिए निकाल ले, आता हूं" सुकुम बाहर बकरियों को चारा डाल रहा
था।
सुकुम जब तक भीतर आया, डिमी ने रात का बचा भात, जिसे उसने पानी में भीगा कर
रखा था,उसे दो थालियों में निकाल लिया था और साथ थी ,सील पर पिसी हुई टमाटर
की चटनी।
"समारू से बिहा (ब्याह) करेगी? उसका बाबू एक भैंस, बकरियां और अनाज देने को
तैयार है।"
"तो क्या तेरी बेटी बेचने की चीज है?समारू मेरे लाइक है? दिन भर बच्चों के
साथ गुलेल से चिरई मारता घूमता है "
"नहीं रे, मैं तो बस पूछ रहा हूं। कहीं तो जाएगी ही न, और बेचने वाली कौन
सी बात, बेटी धन का,का मोल। ये तो परथा है, जो हर लड़के के बाप को निभाना
है।"
"हां तो मैं जिसके पास जाऊंगी अपनी मर्जी से जाऊंगी, डिमी को पा लेना इतना
आसान भी नहीं।"
"अब जैसा तुझे जंँचे। जब जंँच जाए तो बता देना।"
"आज जंगल जाएगी?"
"हां बांस खतम हो गया, कुछ सूपा और बना लूंगी तो हाट-बजार में बढ़िया पइसा
मिल जाएगा।"
" संझा तक आ जाएगी न।" सुकुम खा चुकने पर थाली कोने में सरकाता हुआ बोला।
" तू बकरियां चराकर जब तक आएगा उससे पहले ही।"
सुकुम बकरियां लेकर जंगल की ओर निकल चुका था। डिमी ने भी अपना खंजर अपनी
कमर में खोंसा और अपनी सहेली चंदा के घर की ओर चल दी, वो और चंदा दोनों साथ
ही जंगल जाती थीं। डिमी बांस की टोकरी, सूपा, पंखा, चटाई बीनती और गांव से
चार किलोमीटर दूर लगने वाले साप्ताहिक हाट बाजार में बेच आती थी। आसपास कई
छोटे-छोटे गांव थे जो आपस में लगे हुए थे, उनमें उरांव जनजाति के लोग बसते
थे।
डिमी की मां उसे जन्म देने के कुछ साल बाद चल बसी, तब से दोनों बाप बेटी ही
एक दूसरे के सुख-दुख के साथी थे। बड़ी सुंदर थी डिमी, गोल चेहरा, चमकता
तांबई रंग, अट्ठारह बरस की उमर। अगल- बगल के गांव के कई लड़के उससे ब्याह
करना चाहते थे, लेकिन उसने किसी का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। अब तो
सुकुम भी सबको ना बोलते-बोलते थक चुका था।
"ए चंदा एइएए...." तालाब के पाट पर खड़ी चंदा को, डिमी चिल्लाकर बुला रही
थी।
चंदा सुनकर दौड़ी-दौड़ी आई।
"चल जल्दी देर हो रही, बांस लेने जाना है। आज सवेरे तू हैंडपंप पे पानी
लेने नहीं आई?"
"आज मां चली गई थी। मेरी नींद ही ना खुली। आज तो शुकरवार है, तेरे बांस खतम
हो गए का,तू तो सोमवार को जाती है बांस लेने"
"हां खतम हो गए।"
जंगल पहुंचकर चंदा और डिमी बांस काटने में लगीं थीं। एक बीड़ा( गट्ठर)बांस
लेकर मंगल वहां से गुजर रहा था।
" तेरा बांस नहीं कटा अब तक?"
"अरे मंगल! बस हो ही चुका।"
" तो बीड़ा बना ले जल्दी से , साइकिल पे रख दे। तेरा बीड़ा भी पहुंचा देता
हूं घर तक।"
" रहने दे मैं खुद ले जाऊंगी।"
" कितने अच्छे बांस काटे हैं तूने मंगल!" मंगल के बांसो की ओर देखती हुई
डिमी बोली।
" मेरे बांस कितने भी अच्छे हो पर, जो बात तेरी बिनाई में है उसके आगे मेरी
बिनाई कुछ भी नहीं।"
"ले तूने ही तो सिखाया है और अब ऐसी बात करता है।"
"नहीं रे सच कहता हूं। अच्छा चल फिर मैं जाता हूं, तुम दोनों को तो समय
लगेगा अभी।"
"ठीक है मंगल अब इतवार को हाट पे मिलेंगे"
"और किसी लड़के से तो तू सीधे मुंह बात नहीं करती, मंगल को बड़ा पतियाती
है।" मंगल के चले जाने के बाद चंदा मुस्काती हुई बोली।
" नहीं रे ऐसी वैसी कोई बात नहीं, देख दो ठो बात है पहला उसने मुझे बांस की
कलाकारी सिखाई और दूसरा एक वही है जिसने मुझसे कभी बिहा करने का नहीं
सोचा।"
"तुझे बिहा नहीं करना का?कितने बढ़िया-बढ़िया लड़कों को तूने मना कर दिया
आखिर कैसा लड़का चाहती है तू।"
"बढ़िया लड़के हुंह.... मैं बोल दूं खड़े हो जाओ, तो खड़े हो जाएं, बोलूं
बैठो, तो बैठ जाएं। मेरे को बंधुआ मजदूर नहीं चाहिए, पति चाहिए जिसके साथ
मैं शान से रहूं और वो मेरे साथ शान से रहे।"
"देवता जानें, कौन तेरे जोड़ का आएगा और कब आएगा"
**
डिमी इतवार के बाजार में बांस का सारा सामान बेच आई थी। नया सामान बनाने के
लिए चंदा और वो फिर बांस लेने गए थे। डिमी के बांस काटते हाथ रुक गए जब
वहांँ बंसी के मधुर स्वर गूंज उठे।
"चंदा आस-पास ही कोई बंसी बजा रहा है, चल देख कर आते हैं।"
" और जो तेरा काटा बांस कोई उठा ले गया तो?"
" इस बंसी की धुन के आगे इस बांस का, का मोल,जब तक इस बांस की बंसी ना बन
जाए। जो तुझे नहीं जाना तो तू रखवारी कर, मैं आती हूं।"
वहाँ कुछ भैंसे चर रहीं थीं, वहीं पर मंगल बांस काट रहा था और एक लड़का
चट्टान पर बैठा बंसी बजा रहा था। डिमी देर तक खड़ी बंसी सुनती रह गई।
"एक बार और बजाओ ना।" बंसी की धुन बंद हो चुकी थी।
लड़का कुछ नहीं बोला बस डिमी को देखता रह गया।
मंगल जो बांस काटने में लगा था, डिमी की आवाज सुनकर बोला
"अरे!डिमी तू कब आई, तुझे धुन अच्छी लगी का? फिर से सुनेगी?"
" ए परम बजा दे ना एक बार और ।"
" अब मेरा जी नहीं है, भैंसों को भी ले जाने का टेम हो गया।"
" एक बार बजा दे संगी।"
" बंसी मेरी, मर्जी मेरी, जब चाहूंगा तब बजाऊंगा। एक बार कह दिया अभी नहीं,
तो नहीं।" और वह अपनी भैंसों को हांकने लगा।
डिमी ने ऐसा लड़का पहली बार देखा था, जो उसकी बात को ना कह रहा था।
" रहने दे मंगल मैं जाती हूं।"
मंगल डिमी के पीछे-पीछे दौड़ा आया।
"डिमी जाने दे रिसाना(गुस्साना) मत वह ऐसा ही है, मेरा संगी है, मेरे गांव
का ही है,अब वह इधर ही अपनी भैंस चराने आएगा, अगली बार सुन लेना, मैं
कहूंगा उससे।"
" जैसे अभी तो तू कुछ कह ही नहीं रहा था।"
उसकी बात सुनकर मंगल झेंप गया।
" मंगल जाने दे मुझे देर हो रही, तू भी जा घर,बस एक काम करना मुझे जल्दी से
बंसी बनाना सिखा देना।"
चंदा बांस का बीड़ा बनाकर उसी के ऊपर बैठी,डिमी की राह देख रही थी।
"मिला तेरा बंसी बजइया?"
"देवता ने तेरी सुन ली चंदा, मेरे जोड़ का लड़का मिल गया मुझे।"
"जाने किस लड़के के भाग खुले हैं।"इतना कहकर चंदा हंस पड़ी।
उस शाम को घर पहुंच कर डिमी ने चौसेला (चावल के आटे की पूरी) बनाया, टमाटर
की चटनी बनाई।
"का बात है डिमी आज बहुत खुश है तू।"
"कुछ नहीं बाबू, बस ऐसे ही मन हुआ।"
पर सुकुम डिमी के चेहरे की रंगत देखकर समझ गया कि उसका दामाद उसे मिलने
वाला है।
डिमी की आंखों के आगे बार-बार परम की छवि उभर आती थी। सावला रंग, बलिष्ठ
देह, सिर पर बंधा हुआ साँफा(कपड़ा) जिसमें परम ने ढेर सारे रंग-बिरंगे पंख
खोंस रखे थे।
इस बार के हाट-बाजार तक डिमी बांस के ज्यादा सामान नहीं बना सकी, पर हां
उसने बड़े मनोयोग से, मंगल से सीख कर एक बंसी जरूर बना ली थी।
उस दिन हाट में मंगल के साथ परम भी आया था। डिमी का सामान कम था जल्दी ही
बिक गया। सामान बिकने के बाद डिमी वहां चली गई, जहां मंगल बैठा सामान बेच
रहा था।
"मंगल मेरा सामान तो बिक चुका चल मैं अब जाती हूं।"
इतना कहते हुए डिमी परम के पास पहुंँच गई।
पल भर में ही परम के कमर में खोंसी हुई बंसी डिमी के हाथ थी और डिमी की
बनाई हुई बंसी, परम के कमर में ।
"ले परम आज से बंसी मेरी,मर्जी तेरी। अब देखती हूं, मेरी बंसी पर तेरी
मर्जी कितने दिन चलती है।"यह कहकर डिमी ने परम की बंसी तोड़ दी।
"और खबरदार मंगल जो तूने इसके लिए दूसरी बंसी बनाई तो।"
इतना बोल कर वह गांव जाने वाले रास्ते पर निकल चुकी थी।उसने यह न देखा कि
इस पूरे घटनाक्रम में परम की नजर एक पल को भी उसके चेहरे से नहीं हटी थी।
मंगल परम को देखे जा रहा था, परम डिमी को।
**
डिमी अब परम की बंसी सुनने के लिए हफ्ते में दो बार जंगल जाने लगी कभी साग
ले आती, कभी लकड़ी, पर वह दूर से ही बंसी सुनती कभी परम के सामने नहीं गई।
एक दिन जब डिमी और चंदा जंगल पहुंचे तो देखा बांस का एक बीड़ा बना रखा हुआ
था।
"मंगल ने कहा ले डिमी तेरे लिए अच्छे-अच्छे बांस काट दिए हैं ले जा।"
डिमी ने बांस के बीड़े को देखा और उठाकर अपने सिर पर रख लिया।वहीं पास की
पहाड़ी से बंसी की धुन सुनाई दे रही थी।
"चल चंदा।"
"तू चल मैं आती हूं।"
चंदा मंगल से बोली "क्या तूने बांस काटे?"
"जो मुझे अपने बांस ढोने तक नहीं देती, क्या वह मेरे काटे बांस लेकर जाएगी।
वो जानती है कि बांस किसने काटे हैं।"
अगली बार फिर बांस का एक बीड़ा बना रखा हुआ था।
"चंदा तू यहीं रुक मैं आती हूं,मंगल यहीं अपने बांस काट रहा है।"
पहाड़ी से बंसी की धुन सुनाई दे रही थी, डिमी उस ओर बढ़ गई ।देखा तो परम
उसकी दी हुई बंसी ही बजा रहा था।
" मेरी बंसी के बदले तू बांस काट कर रख देता है का।"
परम डिमी की ओर पलटा और मुस्कुरा कर बोला "इतनी छोटी सी बंसी के लिए इतने
बांस काटूंगा मैं?"
" तो फिर क्यों काटता है?"
" अब मुंह से सुन कर ही मानेगी का तू?"
" हां "
"तेरी बंसी और मेरी मर्जी एक हो गए डिमी।"
डिमी परम के कंधे पर सिर टिका कर बैठ गई,परम देर तक बंसी बजाता रह गया।
"तेरी बंसी हिरदय तक पहुंचती है।"
"और सुनेगी?"
"अब जाती हूं परम, देर हो गई कल करमा है रात को करमा नाच में तू और मंगल
जरूर आना।"
**
अगले दिन करमा त्यौहार था। दिन में करम देवता की पूजा हो चुकी थी। रात में
युवक युवतियां सज धज कर मांदर की थाप पर करमा गीत गाते और नाचते।
"बाबू आज रात को परम भी आएगा तू भी चलना मिल लेना उससे।"
"ठीक है तू अपनी मां के गहने पहिन लेना।"
डिमी ने घुटने की ऊंचाई तक लाल सूती साड़ी बांधी, गले में सूकी (सिक्कों की
माला ) चांदी की सांटी( पायल) पहन लिया। लंबे, घने बालों का जूड़ा बना
लिया।बहुत सुंदर लग रही थी डिमी आज।
वो और चंदा जब तक पहुंचे परम आ चुका था।वो उसे देखता ही रह गया।
लड़के-लड़कियां नाच गा रहे थे। सुकुम,परम से मिलकर जल्दी ही वापस चला गया।
अब परम ने मांदर पकड़ लिया और डिमी भी नाचने लगी। परम की मांदर की थाप और
डिमी के पैरों की ताल से रात खिल उठी थी।डिमी गा रही थी।
एक्का कुककोस कड़खापदस।
एक्का कुककोस कड़रूखापदस।
कल्ला जु क्ली रैइया हों।
चिओस वाच बाच जिया एंगैह साती.....
कुल्ला नु किला टेइया हां।
(कौन लड़का भैंस चराता है।
कौन लड़का भैंस चराता है।
उसके छाते में बहुत सारे पंख लगे हैं।
वह मुझे देगा...
ऐसी आशा मेरे दिल में लगी है।)
परम ने हंसते हुए कहा "मेरे छाते में नहीं,साँफे में पंख लगे हैं" और अपने
सिर पर बंधे साँफे से एक पंख निकालकर डिमी के जूड़े में खोंस दिया।
परम घर जाते वक्त बोल गया, कल मां और बाबू को तेरे घर भेजूंगा,नकर मत जाना।
अगले दिन परम के मां बाबू, सुकुम से डिमी का हाथ मांग गए। एक हफ्ते बाद
उनकी शादी का दिन तय हो गया।
शादी से कुछ रोज पहले दोनों उसी पहाड़ी पर बैठे थे। करम की भैंसे पीछे की
ओर चर रहीं थीं। "यहां हमेशा बैठता है तुझे डर नहीं लगता देख तो आगे कितनी
गहरी खाई है, जो कोई गिर जाए, तो सीधे ऊपर पहुंच जाए"
"कौन हम उसके किनारे जा रहे, बंसी सुनेगी?"
"सुना"
कुछ देर बाद परम बोला "बता मेरी बंसी का कह रही?"
"बताऊं तेरी बंसी कह रही है कि जब वह हम दोनों का नाम पुकारती है, तो खाई
से टकराकर एक आवाज वापिस आती है।
"क्या?"
"प्रेम"
परम हंँसने लगा।
डिमी बोली "हंँस मत चल तुझे दिखाती हूं।" और उसे खींचकर खाई के मुहाने तक
ले आई।
"अभी तो तू खाई से डर रही थी।"
" तेरे साथ नहीं।"
बोलकर वह जैसे ही परम की ओर मुड़ी उसका पांव एक पत्थर पर पड़ा,वह लड़खड़ा
पड़ी, परम ने झट उसका हाथ पकड़ पीछे को खींचा,वह वहीं गिर पड़ी।
"लगी तो नहीं? देख आज क्या हो जाता।" दोनों के चेहरे पर डर की रेखाएं थी।
"तूने मुझे बचा लिया परम"डिमी कांपती हुई बोली।
"चल यहां से आज के बाद इधर नहीं आएंगे कभी।" डिमी को सहारे से उठाते हुए
परम बोला।
परम और डिमी की शादी हो रही थी, दोनों मंडप के नीचे बैठे थे। डिमी ने परम
से कहा
"मेरा सब कुछ तुझे सौंपती हूं परम, बस अपना मान अपने पास रखती हूं।"
परम ने डिमी के हाथ पर अपना हाथ रख दिया।
***
परम और डिमी की शादी को एक साल होने वाला था।दो कमरों के मकान में परम ने
अपने मां-बाबू से अलग, अपनी गृहस्थी बसा ली थी।उनकी घर-गृहस्थी बढ़िया चल
रही थी, पर प्रेम में कभी-कभी मन प्रिय पर एकाधिकार चाहने लगता है और यह
भाव जब बढ़ता ही चला जाए तब दुख का कारण भी बन जाता है। परम की भी यही दशा
होती जा रही थी।
उस दिन परम अपनी भैंसे लेकर जंगल को निकल रहा था।
" बांस खत्म हो गए हैं आज लेते आना।"
"एक बात कहूं?"
" बोल।"
"बांस का काम छोड़ देगी?"
" तू जितना पकड़ने की कोशिश करेगा, तेरे हाथ से उतना ही छूटता जाएगा
परम।मैं तो तेरी ही हूं। रहने दे,बांस तू नहीं लाएगा तो मैं ले आऊंगी।"
कुछ दिनों बाद डिमी हाट में बैठी सामान बेच रही थी।
" घर नहीं जाएगी संझा होने वाली है जंगल का रास्ता है।"
"रुक जा मंगल, कुछ सौदा और हो जाए फिर चलते हैं।"
और थोड़ी देर बाद जैसे ही मनमाफिक सौदा हुआ, डिमी पास की दुकान की ओर बढ़
गई,जब दुकान से निकली तो अंधेरा ज्यादा ही घिर चुका था। "इतने अंधेरे, जंगल
के रास्ते कैसे जाएंगे, तू कहे तो यही मेरे संगी का घर है, रात रुक जाते
हैं डिमी।"
"ठीक है, पर परम बेचारा परेशान हो रहा होगा।"
इधर जब अंधेरा घिरने तक डिमी नहीं पहुंची तो परम कई घरों में पूछ आया, हाट
गए सब लोग घर आ चुके थे। फिर वह मंगल के घर पहुंचा,मंगल भी घर नहीं आया था।
मंगल की मां ने कहा "चिंता मत कर परम, मंगल के साथ ही होगी डिमी, समान
बेचते टेम हो गया होगा तो मंगल के संगी के यहां रुक गए होंगे पहले भी मंगल
कई रात रुक चुका है।"
परम घर को आ गया रात बड़ी मुश्किल से नींद आई उसे तो देखता है कि वह पहाड़ी
पर बैठा बंसी बजाता डिमी का इंतजार कर रहा है, बहुत देर हो गई डिमी नहीं आई
तो वह पहाड़ी से नीचे उतरा तो देखता है कि डिमी मंगल के पास बैठी बंसी
बनाना सीख रही है।
वह नींद से उठ बैठा फिर उसे नींद नहीं आई।
सुबह होते ही वह हाट वाले रास्ते पर बढ़ गया। कुछ दूर आगे गया तो देखा कि
मंगल के साथ डिमी साइकिल पर बैठी आ रही थी,
परम को देखा तो साइकिल से उतर गई।
"कल सौदा करते देर हो गई परम तो मंगल के संगी के यहां रुक गए।" डिमी बहुत
खुश लग रही थी।
" तुम दोनों आओ, मैं जाता हूं।" मंगल यह कहकर आगे निकल गया।
" इतना देर क्यों किया सामान नहीं बिका था तो अगले हाट में बिक जाता।"
"मुझे कुछ पैसे चाहिए थे।"
परम पूरे दिन उखड़ा-उखड़ा रहा। पर डिमी बहुत खुश थी।
रात डिमी कमरे में आई परम खटिया पर बैठा था।
" तूने इतना सामान बेचा पर तेरी अंटी(पैसे रखने का छोटा बैग)में तो कुछ ही
पैसे हैं। फिर देर कैसे हो गई"
इतना कहकर परम कमरे से निकल गया और बाहर के कमरे में आकर सो रहा।
डिमी आकर परम के पास खड़ी हो गई।
"तुझे भीतर चलने को नहीं कहूंगी,मंगल पर भरोसा नहीं था तुझे, मुझ पे और
मेरे खंजर पर तो करना था। सुबह उसी पहाड़ी तक चलना जहां तूने नया जीवन दिया
था मुझे, वहां तक तो चल सकेगा न? वहीं बताऊंगी सब।"
डिमी कमरे में आकर खटिया पर गिर पड़ी। सूरज गहरी खाई में गिर पड़ा था, चारो
ओर अंधेरा था।
सुबह जब परम की आंख खुली, तो देखा घर का दरवाजा खुला था,डिमी घर में नहीं
थी।
उसे रात की बात याद हो आई, वो भी पहाड़ी की ओर निकल गया।
पहाड़ी पर चढ़ते-चढ़ते परम की सांसे फूल चुकी थीं। परम जहां बैठकर डिमी को
बंसी सुनाया करता था, वहीं पर एक गुलाबी रंग का नया सांँफा रखा हुआ था। उसे
उठाते हुए परम के हाथ कांप गए। डिमी कहीं नहीं दिख रही थी।
वह डिमी,डिमी पुकारता रहा, पर कोई जवाब नहीं आया। अब सांफा उसके हाथ से गिर
चुका था, वह धीमे-धीमे कदमों से चलकर खाई के मुहाने पर जा बैठा।
खाई में बहुत नीचे पेड़ की डालियों में फंसा डिमी का गमछा, जिसे वह हमेशा
अपनी कमर में बांधकर रखा करती थी, लहरा रहा था।
परम बुदबुदा रहा था...
"मानिनी तूने मेरा दिया कुछ भी न रखा।"
फिर खाई की ओर देखकर पुकारा "डिमी..."
आवाज खाई से टकराकर वापस आई...
" मैंने तुझे अपना सबकुछ सौंपा था अपना मान नहीं।"
- अनामिका वर्मा
बिलासपुर, छत्तीसगढ़
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