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चाह

ज़रा सा छुओ तो
पूरा छूने की चाह
एक चिंगारी से
दहकता है जंगल

अंजुरी भर पियो तो
समुद्र चाहिये पूरा
पृथ्वी पूरी
पूरा सूर्य

सिर्फ ज़रा सी उड़ान
और आसमां चाहिये पूरा

न पीने को न जीने को
चाहिये खुद को डुबाने को।

– जया जादवानी

 


 

जो नहीं बोलते

जो कभी नहीं बोलते
बोलते हैं अकसर सबसे ज़्यादा
जिसे तुम ख़ामोशी समझने की
भूल करते हो
वह जगह ढंकी है
शब्दों की लाशों से।

– जया जादवानी

 

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