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लाशों का जुलू

दर्पण में दिखा उदास चेहरा
मन में गूंजते रहे
कहर के गीत
अफगानी बारात में बजी शहनाई
शान्तिमय बमबारी?
तबाही और मौत का सन्नाटा
बारातों में नाँचते खुशी मनाते
बच्चे युवा  औरतें और वृद्धों के
प्रफुल्लित चेहरे
बमबारी में झुलस गये
दुनिया देखती रही तमाशा
फिर एक बारात बनी
लाशों का जुलूस।

– शरद आलोक

Agast 6‚ 2002



 

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