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तैरता एक गांव आस का

न जाने कितने गवाहों के सामने
खूना – खून हो उठा सूरज
फिर डुबकियां लगा अस्त हो चला
'खत्म हो गया '
लोगों ने उसांस भरी
लौटने लगे सभी निहित कर्म के तहत
समुन्दर लेट गया काली चादर ओढ़
हवा चलती रही सन्नाटा हरियाने लगा
कुछ भी तो नहीं बदला दिनचर्या में
कि अचानक जग उठा वह
छा गया लहरों पर
आग के टुकड़ों में बंट कर
ठंडक पेट की आग की
लौटने लगा वह नावों पर
भूख को तौलती मछलियों की शक्ल में
एक गांव आस का
तैर रहा है समन्दर पर

-रति सक्सेना

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