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मजदूर दिवस कुछ रैलियाँ‚कुछ विचार गोष्ठियाँ‚सभाएँ की जाएँगी जगह – जगह। ‘दुनिया के मजदूर एक हो’ के नारे से आकाश गुँजाये जायेंगे‚ जगह – जगह। आक्रोश शब्दों में भरकर लोगों में बाँटे जायेंगे‚ आवेश की लहर भेजेंगे जगह – जगह। स्यात् कुछ प्रदर्शनियाँ लगाये जाएं कल्याण व उत्थान बताने जगह – जगह। मौके की तरह उठायेंगे लाभ प्रबंधन अपना चेहरा छुपाने जगह – जगह। संगठन की शक्ति का बड़े–बड़े शब्दों में किया जायेगा बखान जगह – जगह। किन्तु‚संगठन की इस शक्ति को औद्योगिक आतंक बना देने वाले लोगो स्वार्थ छोड़ो जगह – जगह। विरोध न बनाओ संगठन का चरित्र। हड़ताल न बनाओ इसका विरोध। इसे रचनात्मक आयाम देने के लिए संगठन के विधि–विधान का हो प्रयोग। ठहर कर सोचने को लोग‚कुछ बाध्य हों। उद्योग रँगदारों व दादाओं से मुक्त हों। ऐसा संकल्प लिया जाय जगह – जगह। विकाश प्रण हो‚ उत्पादन प्राण हो‚ उत्पादकता लक्ष्य। ऐसा कुछ औद्योगिक–धारा में डाले जाने का उपक्रम हो जगह–जगह। मजदूरों के इस दिवस पर‚हम कामना करते हैं ‘उनका चहुँमुखी विकाश और असीम उत्थान हो और मजदूर दिवस को सच्चा अर्थ मिले। उद्योग देश का‚उत्पादन समाज का एवम् देश व समाज हो कर्मशील लोगों का’। जय हो विजय सदा सर्वदा ऐसे सब लोगों का यहां वहां जगह – जगह। -अरूण कुमार प्रसाद |
विश्वास क्या तुमने श्मशान – भूमि में रखे मुर्दों के संबधियों की ऊब को समझा है! जो रात भर के रोए‚ लुटे – पिटे‚ थके – ऊबे बैठे होते हैं वैसी ही ऊब की त्रासदी को बरसों से भुगत रही हूँ मैं मेरे ही कांधे पर मेरा ही मुर्दा संस्कार के लिये तड़प रहा है कानाफूसी उनकी मेरे कानों पर हथौड़े पीट रही है अरे भाई! क्या देर है? अब किसका इंतज़ार है? फिर भी मैं चीखना चाहती हूँ ठहरो! ठहरो! मुझे अभी विश्वास है वह सकल प्रिय आकर पढ़ कर मंतर जिला देगा मुझे |
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