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मांझी
सांझ
की बेला घिरी,
और गाया गीत होगा रे किसी ने
मर्म जीवन का भरे अविरल
बुलाता
स्वप्न की छाया गिरी
छिलमिलाया सोमसा होगा किसी
का
लौटते रंगीन विहगों की दिशा
में
सृष्टि तो माया निरी,
मांझी!
-महेन्द्र भटनागर
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