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चाहत लगे
चुराने सपन हमारे,
सुनहरे सपने सजाये रखना खोज
रहा हूँ बाजारों में,
वो आशियां जो कभी था मेरा मजहब
के रखवालों ने मिल,
लूट लिया है इन्सानों को नहीं
शेष अब सहनशीलता,
हृदय में शोले सुलग रहे हैं
कई तरह की आग लगी है,
हमे बचाना है उपवन को
-श्यामल सुमन |
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