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तोता बाला ठाकुर की आत्मकथा क्षेमेन्द्र ठाकुर की हत्या 'रक्त में उतना अनुराग नहीं होता जितना मन में होता है' किंतु मन कौन सी विधि से पकड़ती तुम्हारा क्षेमेन्द्र ठाकुर? भीम जब दुर्योधन के रक्त से स्नात अंजलि में भरे उसकी जंघा का रक्त याज्ञसेनी का शीश प्रक्षालन करने आया था तब उसे भीम दीख पड़ता था दुर्योधन तुम्हारे रक्त से भीगी, ताँत मेरी जैसे जैसे छुड़ाकर तुम्हारी मुट्ठी से, जब मैं पहुँची थी ऋषभ ब्रह्मो के निकट, तब दूर हटा किंचित वह ढाके की मलमल का श्वेत कुर्ता कहीं मित्र के रक्त से मैला हो जाता तो- इसलिए ऋषभ ब्रह्मो मैंने की तुमसे प्रीति परकीया हुई, रचे षड्यंत्र, अपने स्वामी का शीश छेद दिया जैसे धागा तोड़ती थी काँथे का टाँका लगाके उसी निशा निश्चय कर लिया था मेरे रागमणि कि जो रक्त के रंग थे मेरी पीली ताँत पर जो रक्त की गंध थी मेरे केशों में उसे तुम्हारे कपाल के रक्त से करूँगी स्वच्छ किसी किसी पुरुष का स्वेद निष्फल रहता है सदैव किंतु स्त्री की प्रीति फलती है उसके गर्भ की भाँति। |
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