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लघु कविताएं
जीना यहा– मरना यहां
आज यहां पर हंसना
बिल्कुल मना है।
एक ' जोकर ' का
उठावना है।।
मनोकामना
रिश्वत के पहाड़ों से निकली
बेशर्मी की नदियां
जब भ्रष्टाचार के सागर में
मिलती हैं
आजाद भारत के
नेताओं की
बांछे खिलती है।।
इट्स दैट ईज़ी
नौकरी का इच्छुक
बस रिश्वत देकर सो गया
भरोसा जो था पूरा
खिलाया‚ पिलाया और हो गया।।
दो टूक
वे
वादों के धनी है।
सुगंधित
नागफ़नी है।।
एक कदम आगे
विरोधियों ने किया तय
जब नेताजी आएंगे
उन्हे काले झंडे दिखाएंगे।
प्रत्युत्तर में बोले वो –
हम तो फिर भी छाएंगे
पहन कर काला चश्मा जाएंगे।।
नापाक
मानवाधिकारों का पाक में
हनन हो रहा हैं
वहशियत का फिर से
उत्खनन हो रहा है।।
उल्लघंन
वे शासकीय वाहन में
सपरिवार
भ्रमण कर रहे हैं।
कानून की सीमाओं का
खुलेआम
अतिक्रमण कर रहे हैं।।
नौटंकी
आजकल के नेता
होते गर अभिनेता
तो मेहनत की खाते।
हर साल
फिल्म फेस्टीवल में
अच्छे अभिनय के लिए
स्वर्र्ण मयूर पाते।।
पतित–पावन
स्वभाव सन्तों का
साबुन सा पाक रहता है
जो सबका मैल धोकर भी
स्वयं बेदाग रहता है।।
चोरी मेरा काम
एक रात में तीन जगह
चटका दिए हैं ताले
शहर भर के थानों में
लटका दिए हैं ताले।।
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मॉडर्न ज़माने में
देखिए
पुरूषों की दुर्गति
नौकरीपेशा महिला ने मांगा
गृहकार्य में दक्ष
सलोना‚ सुन्दर पति।।
प्रोफेशन
डॉक्टर व वकील के
पेशे में ऐसी रेस है
मिलर्नेजुलने वाल भी
हर व्यक्ति इक केस है।।
– डॉ
अरविन्द रूनवाल
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लघु कविताएं
कार्यप्रणाली
करत–करत आलस्य के
सरकारी तंत्र होत बेजान
चिठ्ठी आवक–जावक ते
नहीं अफ़सर सुनत अजान।।
दो बूंद स्याही
समाज को तराशे
हथौड़ा न छेनी
धार कलम की
तलवार से भी पैनी।।
तर्क
उनकी नज़र में
हर नाजायज़ चीज भी
जायज़ है।
क्योंकि –
'नाजायज़ ' में भी
बस ' ना ' छोड़कर
बाकी सब तो जायज़ है।।
प्रसिद्धि
देश विदेश में उनकी
दूर–दूर तक ख्याति है
डिग्री पदवी कोई न है‚
बस मंत्री जी के नाती है।
पॉलिटिकल पाप
नेता बोला नहीं मिलूंगा
मेरी म–र–जी।
बाद इलेक्शन हो गई
जनता से एलर्जी।।
अर्थ अनर्थ
नयी परिभाषाएं सुन
उनका सिर चकराया
जब किसी ने
रिश्वत कलेक्ट
करने वाले को
कलेक्टर
और उसपर
कमीशन खाने वाले को
कमिश्नर बतलाया ।।
रिजल्ट
हैरान रह गए सब
जब इन्टरव्यू का
नतीजा निकला।
कोई साहब का भाई
कोई –
भतीजा निकला।।
– डॉ प्रिया रूनवाल
नौकरी
पैसा कमाना
शुरु से उसकी चाहत है
तनख्वाह के सूखे में
रिश्वत ही राहत है।।
बुलेटिन
जातिवाद का समाधान
सांप्रदायिक सद्भाव के प्रण में है
दंगो में एक मरा कई घायल
स्थिति नियत्रंण में है।।
देर है‚ अंधेर नहीं
न्यायप्रक्रिया की रफ़्तार
इसलिए मंदी है
इन्साफ की राहों पर चलती
कानून की देवी अंधी है।।
अकर्मण्य
वे सिर्फ चुनाव के समय ही
खड़े रहते है
बाकी समय
इस कुर्सी से उस कुर्सी पर
पड़े रहते है।।
इरादे
वे कहते है
देश में
समाजवाद लाऊंगा
अमीर–गरीब दोनो को
कच्चा चबा जाऊंगा।।
– डॉ अरविन्द रूनवाल
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