ज़रा सा छुओ तो
पूरा छूने की चाह
एक चिंगारी से
दहकता है जंगल
अंजुरी भर पियो तो
समुद्र चाहिये पूरा
पृथ्वी पूरी
पूरा सूर्य
सिर्फ ज़रा सी उड़ान
और आसमां चाहिये पूरा
न पीने को न जीने को
चाहिये खुद को डुबाने को।
ज़रा सा छुओ तो
पूरा छूने की चाह
एक चिंगारी से
दहकता है जंगल
अंजुरी भर पियो तो
समुद्र चाहिये पूरा
पृथ्वी पूरी
पूरा सूर्य
सिर्फ ज़रा सी उड़ान
और आसमां चाहिये पूरा
न पीने को न जीने को
चाहिये खुद को डुबाने को।
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।
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