ये गुनाह हैं क्या आखिर?
ये गुनाह ही हैं क्या?
कुछ भरम‚
कुछ फन्तासियां
कुछ अनजाने – अनचाहे आकर्षण
ये गुनाह हैं तो…
क्यों सजाते हैं
उसके सन्नाटे?
तन्हाई की मुंडेर पर
खुद ब खुद आ बैठते हैं
पंख फड़फड़ाते
गुटरगूं करते
ये गुनाह
सन्नाटों के साथ
सुर मिलाते हैं
धूप – छांह के साथ घुल मिल
एक नया अलौकिक
सतरंगा वितान बांधते हैं
सारे तड़के हुए यकीनों
सारी अनसुनी पुकारों को
झाड़ बुहार
पलकों पर उतरते हैं
ये गुनाह
एक मायालोक सजाते हैं
तो फिर क्यों कहलाते हैं ये
एक औरत के गुनाह?
कविताएँ
एक औरत के गुनाह
आज का विचार
जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
आज का शब्द
जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।