वह गर्भाशय में शोर नहीं करती
पड़ी रहती है चुपचाप
उसके पानी में बगैर हिले डुले
अपनी खैर मनाती
तिर जाती है इस पार से उस पार तक
कुछ नहीं मिलता उसे
विरासत में
न सपने‚ न हँसी‚ न खुशी
पता नहीं कैसे बिन – चुन लेती है
थोड़े बचे खुचे इधर उधर से
हाथ सेंकने को कभी कड़ी ठण्ड में
न वह शोर करती है
न हलकान होती‚ न ऊबती
एक गर्भाशय से दूसरे में
स्थानान्तरित होती लड़की
सिर्फ उदास होती है
नाल कटने के बाद भी
नाल विहीन नहीं होती लड़की
पड़ी रहती है गर्भाशय में चुपचाप
अपने हाथ पैर समेटे
अपनी परिधी में।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

आज का विचार

ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम ही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।

आज का शब्द

ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम ही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।

Ads Blocker Image Powered by Code Help Pro

Ads Blocker Detected!!!

We have detected that you are using extensions to block ads. Please support us by disabling these ads blocker.