न रिल्के की कविताएँ
न रामशरणजोशी के लाल-नीले विश्वासघात
न इज़ाडोरा की प्रेमकथा
न स्वयंप्रकाश का इंधन
कुछ भी बांध नहीं पाता देर तक
एक झटके से आ-आ जाता है वह
हंसता-लड़ियाता
उसके सिर पर हाथ फेरत हूं मैं
देखो-तुम्हारे बाल फिर उगने लगे हैं
कितने सुन्दर हैं ये और मुलायम भी
पहले से भी ज्यादा
पेट से लगा भींचता
करीब-करीब उठा लेता हूं उसे
कि-पूछता है वह
पापा
बबलू की तरह
लौट तो नहीं जाएगी बीमारी

नहीं
नहीं लौटेगी बेटे
ऐसा है-कि कुछ करो
चित्र बनाओ या लिखो कुछ
अस्पताल के अपने मित्रों के बारे में
कुछ करोगे तो नहीं लौटेगी बीमारी

पापा-मैं क्रिकेटर बनना चाहता हूं
क्या-बेटे, यह भी कोई काम है
क्या ·· पापा
मम्मी कहती है डॉक्टर बनो
और आप ……..।

One Reply to “Kuchh karoge to nahin lautegi bimari”

  1. उफ्फ .. कितनी छूती है यह !
    जिसे मैं पकड़े रखता हूं भीतर, छूटने लगता है ..
    कितने कम शब्द – और उमड़कर शैलाब की तरह आ रहे ..

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आज का विचार

जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

आज का शब्द

जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

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