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मैं तुम्हें प्यार करता हूँ


'मैं तुम्हें प्यार करता हूँ'- यह कह पाना किसी के लिये कभी आसान नहीं था, अब भी नहीं है। 'प्यार' ऐसा शब्द है, जिसे बोलने के लिये हृदय की शुद्धता चाहिए। यह शुद्धता आग में तपे बिना नहीं आती। तात्कालिक आवेग में भले ही कोई किसी को बोल दे कि-' मैं तुम्हें प्यार करता हूँ', तो उसमें कोई साहस की बात नहीं है। मजा तो तब है, जब आपके बोले बिना किसी के द्वारा आपकी आवाज सुन ली जाए, और उधर से बिना कुछ कहे प्रत्युत्तर मिले कि 'हाँ, मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ'।

प्यार में उत्तेजना नहीं होती, केवल समर्पण होता है। प्यार एक निवेदन है। यह स्वीकार हो या न हो, यह और बात है। इस संसार में ऐसे असंख्य प्रणयी युगल हैं, जो कभी आपस में नहीं मिले, लेकिन उनका प्यार जीवित है, और दो दिलों में धड़कता रहता है। यह दो दिलों के बीच का मधुर संवाद है।शायद यही वजह है कि 'उसने कहा था' जैसी कहानी देशकाल की सीमा को चीरती हुई अब अमर हो चुकी है। इसकी कोमल उष्मा का अहसास आज भी होता है।

प्यार देह के धरातल पर भी होता है, लेकिन कोई चाहे जो कहे, वह दूसरी श्रेणी का ही है। देह के धरातल पर तात्कालिक सुख के आदान-प्रदान को भी शायद प्यार ही कहा जाता है, लेकिन इसे सहेज कर रखना हर किसी के बस की बात नहीं। कब इसका रस सूख जाए, और कब इसकी सुगंध उड़ जाए, पता नहीं चलता। शायद इसीलिए प्रेमियों के दिल टूटते हैं। प्यार में धोखा खाने वालों की सूची बनाई जाये, तो कागज कम पड़ जायेंगे, स्याही खत्म हो जायेगी।

हमारे यहाँ राधा और कृष्ण, शिव और पार्वती की प्रणय कथाओं के माध्यम से प्रेम को धार्मिक मान्यता दी गई है। आचार्यों ने प्रेम में अविभक्त समर्पण को ही 'राधा' कहा है।कृष्ण प्रेम की भाषा ही समझते हैं, लेकिन शिव के पास तपस्या की भाषा है , इसलिये पार्वती शिव की भाषा में ही प्रेम करती है। वह कठोर तपस्या कर शिव के ध्यान में प्रवेश कर जाती है । महायोगी शिव की समाधि में इतनी बड़ी सेंध ।पार्वती के प्रणय-निवेदन के आगे प्रलयंकारी शिव लाचार और बेबस ।

प्यार कभी नीचे नहीं ले जाता। वह हमेशा ऊर्ध्वमुख होता है। वह पूजा की जगह है। किसीके प्यार में होना एक तीर्थयात्रा है। इस तीर्थयात्रा में कई पड़ाव आते हैं, कई सुरम्य झीलें हैं, कई हिंसक पशुओं से भरे हुए जंगल हैं और आलिंगन में भर लेने वाले मोहक मधुवन भी।

प्यार करने का मतलब है - अपने को प्रियतम के लिये लुटा देना। प्यार करने का मतलब है उस मदिरा की तलाश, जिसे छक कर पी लेने के बाद भी प्यास जस की तस बनी रहे। प्यार करने का एक मतलब यह भी है कि आप उस झरने में नहाने के लिये चुन लिये गये हैं, जिसमें लैला-मजनू और सीरी-फरियाद नहाए थे। लेकिन याद रहे, जरा सा फिसले, तो धड़ाम से इतना नीचे गिरेंगे कि फिर उठ नहीं पायेंगे।

'मैं तुम्हें प्यार करता हूँ'- यह किसी में डूब कर जीने का मंत्र है। इसे याद नहीं करना पड़ता, लेकिन इसे अपनी जिह्वा पर आने के लिये आह्वान करना होता है। यही प्यार है। यह एक साधना है, जो तत्काल सिद्धि तक नहीं पहुँचती। यह मंत्र ऐसा फल है, जिसे कच्चा तोड़ कर किसी को देने में हानि ही हानि है, और पक जाए तो फिर आप नहीं, अपने हृदय को ही बोलने दीजिए - 'मैं तुम्हें प्यार करता हूँ' और खो जाइए प्यार की खूबसूरत दुनिया में।

- डा मुरलीधर चाँदनीवाला
 

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