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सार सार को गहि लिये थोथा देय उड़ाय

आज बात करते – करते अपनी एक क्रिश्चियन दोस्त से मेरी बहस हो गयी। उसका कहना था‚ एक समर – कैम्प में वह अपने बेटे को भेजना चाहती थी‚ वैसे बहुत अच्छा था समरकैम्प में सब कुछ… बहुत कुछ सिखाया गया बच्चों को पर वहां उसने अपने बेटे को महज एक ही वजह से नहीं भेजा क्योंकि वहां ' गीता – वीता ' भी पढ़ा रहे थे। कुछ विवेकानन्द से रिलेटेड था।
मैं ने कहा – " तो! कितने कॉन्वेन्ट्स हैं जो रोज़ हिन्दू बच्चों को क्रिश्चियन प्रेयर्स कराते हैं‚ बल्कि कॉन्वेन्ट्स के अलावा पब्लिक स्कूल‚ गली गली खुले अंग्रेजी माध्यम के स्कूल भी ईश्वर की जगह 'गॉड' ही सिखाते हैं। और रही बात गीता की‚ तो मुझे कोई भी धर्मग्रन्थ पढ़ने में कोई आपत्ति नहीं रही बल्कि मैं ने शौक से बाइबिल की कहानियां पढ़ी हैं। यहां तक की कुरान की भी।"
" नहीं नहीं‚ आय डोन्ट बीलीव इन यॉर फिलॉसफी…मेरा बच्चा पहले अपने रीलीजन में तो थॉरो हो जायें।बड़े होकर बात अलग है‚ जब आप अपने रीलीजन में थॉरो हो तो फिर किसी भी धर्म की किताब पढ़ो आप पर असर नहीं होता उस धर्म का‚ लाइक वन ऑफ माय हिन्दू फ्रेण्ड… शी टोल्ड मी… जब भी उसे कोई प्रॉब्लम हुई उसके मन में जीसस के लिये प्रेयर्स निकलती थीं‚ बचपन से कान्वेन्ट में पढ़ने की वजह से।"
" यह उसकी अपनी सोच होगी‚ वरना मेरे भी बच्चे स्कूल में ' ओ जीसस'… करते हैं‚ घर आकर नानी के साथ ' ओम जय जगदीश हरे ' गाते हैं … आरती लेते हैं…। हमसे कहीं ज़्यादा हमारे बच्चे उदार हैं।"
उसने कहा ‚ " कुछ भी हो बचपन में मैं अपने क्रिश्चैनिटी के अलावा अपने बच्चों को कोई और धर्म नहीं पढ़ने देना चाहती। फॉर मी माय रीलीजन इज़ बेस्ट फॉर मी। मेरी मदर तो हमें बिन्दी भी नहीं लगाने देती थी। शी वाज़ मोर स्ट्रिक्ट दैन मी ! "
मैं ने कहा‚ " इसमें कुछ खास बात नहीं हरेक के लिये उसका धर्म सर्वश्रेष्ठ होता है। मुझे भी गर्व है कि मैं हिन्दू हूं। पर मैं हर धर्म की अच्छी चीजों में यकीन करती हूँ न ही धर्म को लेकर मैं ऑफेन्सिव रवैया नहीं रखती कि तुम्हारे यहां की पूजा के बाद का खाना न खाऊं।"
तब उसने दलील दी‚ " आय एम ऑल्सो नॉट आफेन्सिव बट आय एम वैरी मच डिवोटेड टू माय रिलीजन… मैं तो किसी कीमत पर अपना धर्म न बदलूं।"
" मैं भी कभी नहीं‚ बचपन से जिस धर्म में संस्कारित हुए वही अपना धर्म…
उसने बात काट कर कहा… " हमारे धर्म में पैसे का कोई काम नहीं। गरीब हो या अमीर सबकी तरफ से फ्री प्रेयर होता है चर्च में। तुम्हारे यहां पूजा करवाने के लिये भी पण्डा पुजारी लोग पैसे मांगते हैं। मंदिर में जाने की फीस लगती है।"
" वो अलग बात है… वह भी कुछ वर्ग –विशेष के लोगों के स्वार्थ की वजह से धर्म का व्यवसायीकरण हुआ है। वरना हिन्दू धर्म में तो स्वयं मन से की गई पूजा मंदिर के दरवाजे से ही स्वीकार हो जाती है।"
" हमारे धर्म में अमीर – गरीब सब बराबर हैं‚ कोई दलित नहीं‚ कोई उंचे जातवाला नहीं। तुम्हारे धर्म के लोगों ने अपने लोगों को भी नीची जाति के लोग कह कर छोड़ रखा है…तभी तो तुम्हारे गरीब हिन्दू ईसाई धर्म अपना लेते हैं।"
" पैसों और सुविधाओं के लालच में…।"
" यह तुम्हारी गलती है कि अपनी जाति के लोगों का ख्याल नहीं रख पाते। जो कि मिशनरी करते हैं। विश्व हिन्दु परिषद या संघ के लोग कितनी झोंपड़पट्टियों में जाकर सेवा करते हैं? हिन्दुओं के कितने स्कूल हैं जो फ्री एजूकेशन देते हैं? और मिशनरी हॉस्पिटल…! कलकत्ता में मदर टैरेसा के मिशनरी गरीब लोगों की सेवा करते हैं।"
यहां मैं चुप थी‚ क्योंकि उसका तर्क सही था।
वह कहती रही‚ " एण्ड लुक एट द डार्कर साइड… वो फादर ग्राहम स्टेन्स ने अपनी फैमिली के साथ दलितों की सेवा में अपनी पूरी लाइफ लगा दी उसे हिन्दुओं ने क्या दिया … उसे उसके बच्चों के साथ जला दिया। साउथ में नन्स के साथ रेप हुआ।… "
यहां भी मैं शर्मिन्दा थी‚ मैं ने कहा भी‚ "अपने उन अशिक्षित‚ राजनैतिक हितों में बरगलाये‚ हिंसक हिन्दू भाइयों पर बल्कि मैं क्या पूरा देश शर्मिन्दा था उनपर… जिन्होंने यह कुकृत्य किये। पर हिंसक जानवरों का जब विवेक ही नहीं होता तो धर्म तो बाद की चीज़ है। अपराधियों का कोई विवेक‚ कोई धर्म नहीं होता।"
" यू नो जनरली आय डोन्ट टॉक ऑन सच सेन्सटिव इश्यूज़‚ माय हसबेन्ड आलवेज़ स्टॉप्स मी… ऐसी बात पर लोग हमेशा ऑफेन्ड करते हैं कि तुम्हारे मिशनरीज़ हमारे लोगों का धर्म परिवर्तन करते हैं‚ इसलिये ग्राहम स्टेन्स और नन्स वाले केसेज़ हुए।"
"ना ! मैं उन लोगों में से नहीं हूं‚ कि उन अपराधों को कोई जस्टिफिकेशन दूं‚ वो गलत थे हर तरह से। लेकिन किसी एक व्यक्ति की वजह से पूरा धर्म गलत नहीं हो जाता।रही धर्म अपनाने की बात जो धर्म आपके अपने अन्दर से स्वीकृत हो वही आपका धर्म।इसमें कोई भी आपको विवश नहीं कर सकता। आपकी मर्जी. आप जो धर्म अपनाना चाहें। उसमें पैसों सुविधाओं का लालच नहीं होना चाहिये।"
" नो नो मनीषा‚ वी क्रिश्चियन्स आर मोर ह्यूमन्टेरियन्स… वी कान्ट किल एनी बडी फॉर रीलीजन सेक… हम तो मानव की सेवा करते हैं… कभी किसी क्रिश्चियन ने किसी ओर धर्म के लोगों को पूजा करते हुए नहीं मारा होगा। बट हिन्दूज़ … दे आर कट्टर्स … क्रिश्चियन कान्ट किल एनी बडी।"
" यहां मुझे ऑबजेक्शन है! मुझे बस एक बात का उत्तर दे दे… क्या उन देशों में ऐसे क्राइम नहीं होते जो क्रिश्चियन बहुल्य हैं? बैसाखी की पूजा के वक्त जलियांवाला बाग में जिस जनरल डायर ने हज़ारों लोगों को मारा क्या वह क्रिश्चियन नहीं था? सुकरात को ज़हर पिलाने वाले कौन थे? और गैलिलियो… "
अब चुप रहने की उसकी बारी थी। तब मैं ने कहा —
" देख यार… हर धर्म में कुछ कट्टरपंथी होते हैं‚ कुछ अपराधी होते हैं… जो धर्म को राजनैतिक हितों के लिये खून से रंगना चाहते हैं। लेकिन उन मुट्ठीभर अच्छे मानवीयता के पुजारियों के सहारे की वजह से ही कोई धर्म चलता है…। देखने वाली आंख चाहिये‚ हर धर्म में अच्छाइयां भी और बुराइयां भी दिख जाती हैं। हर धर्म का एक उद्देश्य है…मानवीयता की भावना को बढ़ाना है।"
" प्लीज़ डोन्ट माइन्ड‚ इट वाज़ जस्ट फॉर डिस्कशन सेक !" वह बात खत्म करना चाहती थी।
" मुझे पता है‚ मैं कभी धर्म को लेकर ऑफेन्सिव नहीं होती। वह मेरा निजी मसला है। पर मैं अपने बच्चों को ज़रूर उदारवादी बनाना चाहूंगी…उन्हें प्रेरित करुंगी कि हर धर्म की किताबें पढ़ो… और ' सार सार को गहि लिये थोथा देय उड़ाय ' की सीख मन में रखो।"
" मीन्स?"
" मीन्स … हर धर्म में जो सही और सच है उसे अपना लो‚ जो ठीक न लगे उसे छोड़ दो‚ जैसे कि सूप होता है‚ अन्न के साफ दाने रख लेता है‚ कचरा – कचरा उड़ा देता है।"
बात तो वहीं खत्म हो गयी। दोस्ती भी उसी अंतरंगता से वहीं कायम रही। पर मन विकल रहा क्या हम ये छोटी छोटी गलतफहमियों की‚ दूसरे धर्म को हीन समझने की‚ कट्टरवादिता की दरारें भर सकेंगे? और इन दरारों को पाट कर क्या हम अपने बच्चों को एक नयी उदारवादी संस्कृति दे पायेंगे?
 

– मनीषा कुलश्रेष्ठ

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