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नेपाल
राजघराने में अविश्वसनीय
नेपाल राजमहल के इतिहास में एक नई नृशंस कथा खून से लिखी गई। लोग सकते
में हैं और विश्वास नहीं कर पा रहे कि युवराज दीपेन्द्र जैसा लोकप्रिय और
स्नेहिल‚ रूमानी युवक ऐसा कर सकता है। तरह–तरह से नेपाल सरकार लोगों को
विश्वास दिला रही है कि इसके पीछे किसी तरह का षड्यंत्र नहीं था। कभी यह
सूचना आम की जाती है कि गलती से स्वचलित हथियार से यह हादसा हुआ‚ कभी
नक्शे बना–बना कर राजपरिवार के बचे हुए सदस्य जो कि चश्मदीद गवाह हैं‚
दीपेन्द्र के नशे में किये वारों का स्टेप बाय स्टेप विवरण देते हैं।
लेकिन जनता इस बात को गले नहीं उतार पा रही कि कुछ खास लोगों को
दीपेन्द्र ने कैसे छोड़ दिया? अपने प्रिय भाई–बहनों से उसे कोई नाराज़गी नहीं
थी। उनके चचेरे भाई पारस कैसे बच गए? इस साप्ताहिक भोज में वर्तमान राजा
ज्ञानेन्द्र परम्परा के विरूद्ध अनुपस्थित थे और पारस अपनी पत्नी को भी
साथ नहीं लाए। इस सब के बावज़ूद शवों का कोई पोस्टमार्टम नहीं किया गया‚
और जल्दी में उनका राजकीय दाह कर दिया गया। |
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