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न भारत‚ न पाकिस्तान कोई नहीं चाहता
युद्ध। न भारतीय जनता चाहती है युद्ध न ही पाकिस्तानी अवाम। बहुत मँहगा सौदा
है यह युद्ध‚ ज़िन्दगियों का‚ देश की गाढ़ी कमाई का‚ और चैनो अमन का सौदा।
दोनों देशों में से कोई नहीं चाहता विकास के दसियों साल पीछे चले जाना और
युद्ध का अर्थ यही है। लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथियों और आतंकवाद ने युद्ध की
सोच को शह दी है और इस आतंकवाद की एक और चिनगारी युद्ध की आग भड़काने के लिये
काफी होगी। माना कि यह ज़रूरी नहीं जो आतंकवाद पाकिस्तान में पनप और बढ़ रहा
है‚ उसे देश की सरकार का सहयोग प्राप्त हो ही। माना कि धार्मिक दबावों की
वजह से बहुत बार इसे उन्हें उपेक्षित करना पड़ा हो…पर अंततÁ यह जानबूझ कर या
विवशता में दी गई शह पाकिस्तान को मंहगी पड़ी है और उसकी हालत साँप के मुंह
में छछूंदर जैसी हो गई है जो न उगलते बनता है न निगलते। |
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