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विजेता - दूसरा पन्ना अम्बिका का चित्त अशांत है। चित्त को शांत करना है। वह शवासन के लिए प्रवर्त हो भूमि पर कंबल बिछा कर लेट गई। डॉ व्यास का स्वर प्रतिध्वनि होने लगा - ''ध्यान, योग का सातवां अंक है। यम, नियम, आसन प्राणायम, प्रत्याहार धारणा, ध्यान, समाधि ध्यान में आने के लिए शवासन द्वारा मन और शरीर को शिथिल किया जाता है आंखे बंद रखे, दोनो पैरों की ऐडियों को मिलाएं, पैरों के दोनो अंगूठों को ढीला छोडें। दोनो भुजाओं को पैरों के दाएं-बाएं रख हथेलियां खुली और ढीली रखें, सोचे कि पैरों के अंगूठे ढीले पड क़र सुन्न हो रहे हैं, फिर उंगलियों, तलवों को शिथिल पडता महसूस करें अम्बिका को अंगूठे सुन्न होते जान नहीं पडते। जेहन में मौजूद डॉ व्यास उत्पात मचा रहे है। '' मन को दोनो पिंडलियों पर केंद्रित करें, पिंडलियों, घुटनों को सुन्न होता महसूस करें। पैरों की मांसपेशियों का कसाव ढीला पडेग़ा और ऐसा आभास होगा, पैर शरीर में है ही नहीं'' पिंडलियां, घुटने सुन्न होते नहीं जान पड रहे। ड़ॉ व्यास घुस-पैठ कर रहे है। '' इसी प्रकार क्रमवार रूप से पेट, कमर, हृदय, छाती, पीठ, कंधे, कोहनी, भुजा, कलाई, मणिबंध, हाथ की उंगलियों को सुन्न होता महसूस करें। आभास होगा, गरदन और चेहरे की मांसपेशियों को आराम मिल रहा है, चेहरे में रक्त प्रवाह बढ ग़या है। श्वास-प्रश्वास सहज गति से हो रहा है। प्रक्रिया के बीच शरीर के किसी भाग को न हिलाएं'' नहीं, अम्बिका ऐसा कुछ भी नहीं महसूस नहीं कर पा रही। पेट, कमर को शिथिल होता महसूस डॉ व्यास छाती, चेहरा, भाल डॉ व्यास डॉ व्यास पीछा नहीं छोडते। '' पूरे शरीर को शिथिल करने में प्राय: आधा घंटा लगता है। शरीर विश्राम अवस्था में सोया हुआ है और गुरुत्वाकर्षण शक्ति चुंबक की भांति शरीर के फाइबर-सेल्स को भीतर से खींच रही है'' डॉ व्यास आप मुझे चुंबक की तरह अपनी ओर खींच रहे है और मैं नन्हे-बारीक लोह कणों की तरह आपकी दिशा में खिंची चली जा रही हूं। अम्बिका योग मुद्रा छोड क़र उठ बैठी। ऐसे झटके से उठी कि कम्बल उसके पास सिमट आया। '' इस तरह फिर से शरीर भारी लगने लगेगा, यहीं है शवासन '' शवासन की ऐसी की तैसी, अम्बिका, डॉ व्यास के अतिरिक्त कुछ सोच नहीं पा रही है। उसने दोनो हाथों से कनपटियां थाम ली। कनपटियां तप्त है। यह क्या हो रहा है? इस बार भी डॉ व्यास ने उनका आत्मीय स्वागत किया।बल्कि चाय भी पिलाई। रूटीन चेकअप के उपरांत कहा - '' आरसीनेक्स खाली पेट खाते रहना है। एक माह बाद इसकी पोटेन्सी कम की जाएगी।'' अम्बिका चाहती थी, डॉ व्यास बोलते रहें वह सुनती रहे। वही सामने बैठे रहे वह देखती रहे। उनकी समीपता का एहसास गुदगुदाता रहे। अम्बिका के भीतर उस क्षण परम आनंद का स्फुरण हुआ। यह आनंद कभी समाप्त न हो। आनंद ही आनंद अम्बिका के भीतर वह सब जो, मरता जा रहा था, लहलहा कर जी उठा। बल्कि उसे लगता है, मरा कुछ भी नहीं था। अम्बिका जिंदगी जीने का गुर सीख रही है। जिंदगी जीने का गुर कोई भी क्षण अपनी उपस्थिति दर्ज कराए बिना गुजरने न पाए। जिजीविषा प्रबलतम रूप में हो और जिंदगी को उसके समूचेपन के साथ जिया जाए कि जिंदगी हर हाल में बेशकीमती और खूबसूरत है। डॉ व्यास से मिलने के बाद अम्बिका को लगता है, जीवन नितांत व्यक्तिगत मामला है और इसे अपने तरीके से जिया जाना चाहिए। समाज के नियम इस व्यक्तिगत जीवन को बाधित न करें। वह सोचती है, उसे जीवन की पुनर्रचित का अवसर मिले तो वह उस की पुनर्रचित जीवन का आरंभ डॉ व्यास के साथ करना चाहेगी। पुनर्रचनाडॉ व्यासअम्बिका अपनी सोच पर मुस्करा कर रह जाती है। एक डिपार्टमेंटल स्टोर की ओपनिंग सेरोमनी में डॉ व्यास मिल गए तो अम्बिका के अतिरेक में भरते हुए मन ही मन कहा - '' अहो भाग्य।'' अम्बिका, दोनो बेटियों के साथ इधर-उधर घूम कर चीजें देख रही थी। ऐन सामने डॉ व्यास आ खडे हुए। ''
अम्बिका जी कैसी है?'' बेटियां फिल्मी गाने सुनती है तो वह चीख पडती है, वॉल्यूम कम करो, कपाल फटने लगा। अम्बिका, डॉ व्यास को बातों में उलझाए रखना चाहती थी पर उसे एक भी मुद्दा सूझ नहीं पडा। जिसके बारे में बहुत सोचो उसके सामने आ जाने पर मनुष्य शायद इसी तरह बावरा हो जाता है। '' नमस्कार डॉक साब।'' पीछे से किसी ने डॉ व्यास को पुकार लिया और वे एक्सक्यूज मी कहते हुए चले गए। तब अम्बिका को एक साथ बहुत सी बातें याद आ गई। सबसे पहले ये कि उनसे कभी घर आने का आग्रह करना चाहती थी। अम्बिका को निरंतर महसूस होता रहा, दो आंखे उसका पीछा कर रही है और उसने उत्साह में आकर बेटियों की पसंद की बहुत सी चीजें खरीद डाली। उसके इस उदात्त भाव पर लडक़ियां चकित थी। अम्बिका के वश में होता तो वह सारा जहान खरीद लेती। अम्बिका के बहुत सारे ख्वाब एक साथ सामने आ रहे है। बेशुमार ख्वाब। वह सोचती थी, जिंदगी ख्वाबों से खाली हो चुकी है जबकि ख्वाब कभी नहीं मरते। मनुष्य जिंदगी-भर ख्वाबों के संचय में लगा रहता है, भले ही वह ख्वाबों का संचित होना जान न पाए। यह एक अनथक प्रयास है जो जीवन के ठीक सबसे अंतिम क्षण मैं जाकर थमता है। अम्बिका के भीतर राग, भोग, शोक, पीडा, कामना, भय, जिजीविषा, स्वप्न सब कुछ मौजूद है। कुछ भी चुका नही है। अम्बिका बिछावन में लेटी हुई ठंडी गहरी सांसे छोडती है - जिस शख्स ने जीवन के प्रति मोह जागृत किया उसे नहीं कह सकती, वह उसकी चाहना करने लगी है। इंसान यहां पर बंधा हुआ होता है। ये सारे पहरे प्रेम पर ही क्यों लगाए जाते है? मनुष्य हर किसी से शत्रुता, घृणा, प्रतिद्वंद्विता, संघर्ष करने के लिए स्वत्रंत्र है पर हए किसी से प्रेम नहीं कर सकता। अम्बिका उस व्यक्ति से भी प्रेम करने के लिए सामाजिक रूप से स्वत्रंत्र नही मानी जा सकती जिसके कारण उसने अवसाद और निराशा के व्यूह से निकलना सीखा है। वर्जित फल! समाज और समाज के नीतिबध्द कायदे! अम्बिका चेकअप के लिए डॉ व्यास के घर को निकली तो केशव के साथ श्रीनिकेत भी था। अम्बिका, श्रीनिकेत से बोली - ''
डॉ व्यास फीस नही लेते है,
हमें संकोच होता है।
क्या कभी उन्हे रात्रि भोज पर बुलाया जाए?'' केशव व्यवसायी है और व्यवसायिक कारणों से अधिकारियों, नेताओं, व्यवसायियों को कभी घर, कभी बाहर भोज पर आमंत्रित करता रहता है। वह इस तरह संबंध विकसित करने को व्यवसाय के पार्ट के रूप में देखता है। डॉ व्यास ने अम्बिका का वजन किया, रक्तचाप मापा। सुबह खाने वाली गोली में परिवर्तन किया। तत्पश्चात श्रीनिकेत ने रात्रिभोज का आमंत्रण दिया। ''
अम्बिका जी पेशेन्ट है और
श्रीनिकेत तुम पेशेन्ट पर भार डाल रहे हो।''
कहते हुए डॉ व्यास
ने अम्बिका को ताका। अम्बिका ने सारा काम बडी स्फ़ूर्ति से लगभग उन्मत्त भाव से संपन्न कर डाला। छप्पन भोग तैयार किए, खुद भी रुचि से तैयार हुई। मां को बनी-ठनी देखकर निम्मी, निन्नी उत्फुल्ल हो गई। इधर एक दो वर्षो से वे दोनो अम्बिका को मुंह गाडे, उदास बिस्तर पर पसरी हुई देखती थी और उनकी दिनचर्या प्रभावित होती थी। ''
ममा,
इसी तरह खूब अच्छी
साडियां पहना करो। हमें अच्छा लगता है।''
निन्नी बोली। तुम्हारे डॉक्टर ? यानी मेरे डॉक्टर ? डॉ व्यास आप मेरे डॉक्टर बनना पसंद करेंगे? एक विजयी चमक अम्बिका के अंतस में फूटी और स्निग्ध कपोलों पर लालिमा बन कर छा गई। डॉक्टर व्यास की दृष्टि का अनुगमन कर रही अम्बिका स्पष्ट रूप से महसूस कर रही है, वे घर की सुव्यवस्था निहारते हुए कनखी से उसका निरीक्षण किए डालते है। डॉ व्यास आप मुझसे प्रभावित है, इसका स्पष्ट संकेत देंगे? '' पुराणिकजी आपका घर बडा खूबसूरत है।'' डॉ व्यास कह रहे है। डॉ व्यास मुझे मालूम है, घर के मिस आप मेरी सराहना कर रहे है। ''
हमारी होम मिनिस्टर का कमाल
है।''
केशव ने अम्बिका की ओर
इंगित किया। खाने के मिस मेरी सराहना '' बढिया खाना मिल जाए तो आदमी का दिन सफल हो जाता है।'' डॉ व्यास ने एक क्षण को आंखे मूंदी फिर खोल दी। डॉ व्यास इन आंखो में मेरे लिए कुछ है, मैं जानती हूं। डॉ व्यास ने कई मुद्दों पर बातें की। चलने से पूर्व काफी समाप्त करते हुए डॉ व्यास ने अम्बिका से पूछा - '' अब कैसा फील करती है?'' कैसा फील करती हूं? ताप, धीमा नशा, खुमारी, बहुत मध्दिम करेंट की गुदगुदीभरी झनझनाहट, अकुलाहट, बेचैनी। आपको जानना चाहती हूं, छूना चाहती हूं, महसूसना चाहती हूं। मैं अपनी फीलिंग पूरी तरह बता नहीं पाऊंगी और आप भी क्लीनिकली एक्सप्लेन कर नहीं पाएंगे। प्रत्यक्षत: बोली -
'' बेटर फील करती
हूं, पहले मन एकदम उचाट था।'' रसोई समेट कर अम्बिका लेटी तो दिन भर का लेखा-जोखा सामने था। आज वह अपना चरित्र-चित्रण करने लगी - मैं स्वभाव से छलिया भी नही हूं, केशव के साथ छल नहीं करना चाहती। ठीक है, केशव के प्रति मैं विरक्ति महसूस करने लगी थी, पर किसी अन्य के प्रति आसक्त नहीं थी। मै स्वभाव से साहसी भी नहीं हूं। कभी डॉ व्यास प्रेम को अभिव्यक्त करें तो बहुत संभव है, मैं घबरा जाऊंगी और इस घबराहट में इंकार कर दूंगी। दुत्कार भी सकती हूं। औरऔरकभी चुनाव की स्थिति बनी तब? किसी एक के लिए फिर ये कोई एक डॉ व्यास ही क्यों न हो अपने घर-परिवार से उदासीन हो जाना आसान नहीं होगा। और केशव? यह सच है, इसकी संगत में अब दोहराव लगता है, पर इसके प्रति मेरी जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती। और फिर केशव एक इकाई मात्र नहीं है। इसे घर, बच्चियां, सामाजिक संर्दभो के साथ समग्र रूप में देखना पडता है। यदि सामाजिक दबाव न हो तो भी केशव को नहीं छोड सकूंगी। हां, डॉ व्यास के लिए भी नही। मैं उसे प्यार करती हूं। मै केशव को ही प्यार करती हूं और अब डॉ व्यास को भी प्यार करने लगी हूं। इस ही और भी में मूल और सूद का संबध है। अम्बिका उद्भ्रांत है - क्या एक स्त्री दो पुरुषों को सम भाव से प्रेम नहीं कर सकती? संतानो, माता-पिता को समान रूप से प्रेम कर सकती है तो एक से अधिक पुरूषों से प्रेम क्यों नहीं कर सकती? यह असामाजिक हो सकता है, पर अस्वाभिक क्यों? अव्यवहारिक हो सकता है, पर अप्राकृतिक क्यों? अम्बिका की दृष्टि सोए हुए केशव की पीठ पर पडी। उसे केशव पर बहुत सा प्यार आया और दया भी। केशव तुम अच्छे पति हो, बहुत-बहुत अच्छे। मैं सोचती थी, तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम खत्म हो चुका है। बस निबाहने की जवाबदेही बची है, पर डॉ व्यास के परिप्रेक्ष्य में सोचते हुए पाती हूं मैं तुम्हे आज भी प्रेम करती हूं। यद्यपि यह भी उतना ही सच है, मैं डॉक्टर व्यास को भी प्रेम करने लगी हूं। उतना ही जितना तुम्हे। तुम समझ सकते हो, प्रेम कोई प्रतिशत नही है जो एक ओर बढे तो दूसरी ओर घट जाए। प्रेम एक भावना है जिसे सौ की सीमा में नहीं बांधा जा सकता है और न ही विभाजित किया जा सकता है। इसे कोई विशिष्ट प्रतिस्पर्धा भी मत समझो क्योकि तुम दोनो में तुलना नहीं हो सकती। तुम दोनो ही अतुलनीय हो। डॉ व्यास तुम्हारा स्थानापन्न नहीं बन सकते बल्कि उसके लिए मेरे भीतर एक अलग स्थान बन गया है। मुझे लगता है, केशव कभी भी किसी का स्थानपन्न नही बन सकता बल्कि सबका अपना अलग स्थान हुआ करता है। एक साथ दो पुरुषों से प्रेम करते हुए मुझे असहज और विचित्र कुछ भी नहीं लग रहा है। अच्छा बताओ तुम कभी एकसरता से संत्रस्त नही होते? आखिर पंद्रह वर्षो से एक जैसा जीवन जीते रहना कोई छोटी और मामूली त्रासदी नहीं है। या कि तुम इतने व्यस्त रहते हो कि थोडा-सा ठहर कर कभी जानना नहीं चाहा, दांपत्य जीवन कैस बीत रहा है - उत्तम, मध्यम अथवा निकृष्ट। तुम सचमुच इतने परितृप्त हो? और तुम्हारे भीतर कुछ घट भी रहा हो तो उस भेद को मैं कैसे जान सकती हूं जैसे कि तुम मेरे भीतर घट रहे को नहीं जान सकते। मैं क्या करूं केशव, मैं डॉ व्यास के प्रति जबरदस्त आकर्षण महसूस करती हूं। वे मुझे पूर्ण पुरुष लगते है। अ कंप्लीट मैन। उन्हे पाने की दुर्दमनीय कामना है। उन्हे लेकर इन दिनो मैं इतनी प्रसन्न और निमग्न हूं कि मुझे जड में चेतना दिखाई पडती है। अम्बिका को डॉ व्यास का फोन नम्बर कंठस्थ हो गया है। और उसने पाया, उसकी थरथराती उंगलियां उनका नम्बर डायल कर रही है। यह एक सुहानी शाम है। कुछ देर पहले हुई बारिश ने मौसम को धो-पोंछ दिया है। ''
हलो।''
डॉ व्यास की आवाज
बडी क़ोमलता से उसके भीतर उतरती हुई वृत्ताकार तरंगे बनकर समूची देह में
फैल गई। मजाक मत कीजिए डॉ व्यास। ''
कोशिश करूंगी।'' तो हमारे साथ चलिए इस कोशिश मे तो बात बनती नहीं तो हमारे.... इस कोशिश डॉ व्यास आप कुछ संकेत दे रहे है? मुझे देख कर आपकी जो आंखो मे चमक, चेहरे मे तृप्ति, स्वर में आह्लाद समा जाता है, उसमें मेरे प्रति एक नरम भाव है, मैं जानती हूं। विजय की विधिवत उद्धोषणा नहीं हुई, पर अम्बिका को विजय का आभास मिलने लगा है। जी चाहा खूब चहचहा कर घर गुंजार कर दे। उसे जो भी सी ड़ी सामने पडी दिखी, उसने सी ड़ी प्लेयर में लगाई और तेज वाल्यूम में संगीत सुनने लगी।'' हम्मा.. हम्मा..एक हो गए हम और तुम।'' अम्बिका सुर में सुर मिला कर गा रही है। उसे याद आया, कभी वह अच्छा गाती थी। अब सब कुछ भूली-बिसरी बातें हो गई। हम थोडा-थोडा बदलते हुए एक दिन इतना बदल जाते है कि भूल जाते है, पहले, बहुत पहले हम कैसे हुआ करते थे। हमारे भीतर का बहुत कुछ पुराना पडते हुए पता नहीं कहां गुम हो जाता है। निन्नी और निम्मी ने मां को गाते थिरकते देखा तो घबरा गई। निन्नी बोली - ''
ममा,
बंद कीजिए,
आपको सर दर्द हो
जाएगा।'' संगीत में आनंद है। यह दुनियावी पेचिदगियों से दूर खूबसूरत दुनिया में ले जाता है। अम्बिका को लगा, वह आज भी बहुत युवा, ताजा, ऊर्जावान, क्रियाशील है। उसके अंतस में ऊर्जा, उत्साह, उमंग की अजस्त्र धार बह रही है। |
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