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तोता बाला ठाकुर की आत्मकथा
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क्षेमेन्द्र ठाकुर -
मेरे हृदय की कंदरा में तीन
नदियाँ बहती रही सदैव
तुम्हारी हत्या करने से पहले
तुम्हारी हत्या करते हुए
तुम्हारी हत्या करने के पश्चात्
तुमसे प्रेम करने से पहले
तुमसे प्रेम करते हुए
तुमसे प्रेम करने के पश्चात्
यह नदी सरस्वती की तरह लुप्त है
कई रात्रियाँ मैंने तुम्हें विष देने की योजना
बनाने में व्यर्थ कीं
तुम्हें मार डालने की इच्छा में
भटकती रही बाजार बाजार
ऐसे हथियार की फिराक में
जिसका तुम में प्रवेश
पहले भर दे तुम्हें सुख से, कुछ देर बाद
उठे तुम्हारी अंतिम चीत्कार
प्रेम ही हो सकता था इतना तीक्ष्ण
प्रेम ही मार सकता है बिना रक्तपात किए
तुम्हारा रक्त जो मैंने रखा इतना शुद्ध
व्याधियों से की रक्षा
ऐसे शुद्ध रक्त से ही बन सकते थे मेरे कुंडल
इतने शुद्ध रक्त से ही बन सकता था मेरा चूड़ामणि।

-५-
 

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