मुखपृष्ठ
|
कहानी |
कविता |
कार्टून
|
कार्यशाला |
कैशोर्य |
चित्र-लेख | दृष्टिकोण
|
नृत्य |
निबन्ध |
देस-परदेस |
परिवार
|
फीचर |
बच्चों की
दुनिया |
भक्ति-काल धर्म |
रसोई |
लेखक |
व्यक्तित्व |
व्यंग्य |
विविधा |
संस्मरण |
डायरी
|
साक्षात्कार |
सृजन |
स्वास्थ्य
|
|
Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | Feedback | Contact | Share this Page! |
|
|
संपादकीय यादें वो डायरियां हैं जिन्हें हम ज़हन में लिये घूमते हैं। जब इन्हें दर्ज कर देते हैं और वे यादें स्थायी हो जाती हैं। लेकिन जब यही स्मृतियां - विचार प्रकाशित हो जाते हैं तो अपने समय के टुकड़े को प्रस्तुत करने वाली कालजयी कृति में बदल जाते हैं। डायरी विधा को बहुत प्रेम मिला है पाठकों का। न केवल प्रसिद्ध लोगों की डायरियों में लोगों की दिलचस्पी रही बल्कि अनजान लोगों की डायरियों में भी विश्व को हिला कर रख दिया है। डायरी यानि रोज़नामचा, जिसमें आप अपने जीवन की घटनाएं, पारदर्शी विचार दर्ज़ करते हैं। डायरी यह छूट देती है कि जो विचार आज आपको घेरे है, कल उससे मुक्त हो सकें। डायरी अंतस को उन्मुक्त करने वाली विधा है।
प्रकाशित डायरियों से उम्मीद की जाती है वे ईमानदार होँ,
कश्मकश से भरी हों,
अपने समय को फॉरसेप से
पकड़ती हों और नीरस न होकर रोचक हों। कई विदेशी लेखकों ने तो '
राईटर्स ब्लॉक'
के समय उंगलियों को
हरकत में रखने के लिये डायरियां लिखीं। डायरी ने एक शिल्प का रूप लिया
कहानी - उपन्यास में। यह समय भी विकट है, संपूर्ण विश्व न केवल एक महामारी बल्कि आर्थिक पतन से गुज़र रहा है। लोग अवसाद में जा रहे हैं, कोरोना काल में मृत्युदर क्या कम थी कि अचानक आत्महत्याओं की दर भी बढ़ गयी हम लॉकडाऊन के जिस भीषण समय से गुज़रे और एक हद तक अब भी गुज़र रहे हैं, यह समय निश्चय ही डायरी में दर्ज करने योग्य रहा है कि कि 166 वर्ष के इतिहास में पहली बार रेलें बंद हो गयीं थीं। लाखों मजदूर पैदल घर चल दिये थे। हम एक ऐसे वायरस से मुखातिब थे जिसकी भयावहता का अंदाज़ देर में पता चला और लाखों मौतें हो गयीं। मैंने चाहा पर मैं कलम चला न सकी। एक जड़ता वजूद पर छाई थी। इस समय को स्वत: ही कोरोना काल का नाम मिल गया है। कई लोगों ने कोरोना समय में डायरी लिखने की शुरुआत की थी, कई लोगों ने नियमित लिखा कई लोग हताश हो गये। हम जैसे साहित्यकारों को फेसबुक लाईव, वेबिनार्स ने थोड़ा उबार लिया। हिंदी साहित्य और सोशल मीडिया में यह समय 'लाईव-काल' के नाम से भी जाना जाएगा। लेकिन डायरी पर लौटें तो मेरे परिचितों में बहुत कम लोगों ने कोरोना समय की डायरी लिखी है. वजह शायद अनिश्चितता का अवसाद और अपनों से दूर होने का तनाव। लेकिन चीन में एक साहसी लेखिका हैं, जिन्होंने 'वुहान डायरी' लिखने का साहस किया है। मगर उन्हें जान से मारने की धमकियाँ मिल रही हैं। फेंग-फेंक ने पहले यह डायरी नियमित रूप से ऑन लाईन लिखी। लेकिन छपवाने के नाम पर उन्हें धमकियाँ मिलने लगीं क्योंकि उन्होंने सत्ता के विरुद्ध भी कुछ बातें लिखीं हैं अपनी डायरी में। वुहान से निकले कोरोना वायरस पर डे टू डे अपडेट भी उन्होंने लिखा। तत्कालीन स्थितियों के बेक़ाबू होने पर उन्होंने बेबाक़ लिखा। उन्होंने अपनी डायरी में यह ख़ुलासा भी किया कि वुहान के चिकित्सा वैज्ञानिक यह जानते थे कि यह वायरस इंसानी संपर्क से फैला तो पैनडेमिक ही बनेगा। कई साहित्यिक पुरस्कारों से नवाजी जा चुकी फेंक ने लॉकडाउन, सुनसान गलियों, डरे हुए शहरियों, आपसी मदद जैसी भावुक घड़ियों को भी शामिल किया है। उनकी इस किताब को चीन में प्रकाशक छापने का साहस नहीं कर रहे तो यह हार्पर कॉलिन्स से छप रही है। अशोक जी ने कभी - कभार में कोरोना समय में सामूहिक संवेदना को पकड़ा है। कोरोना समय में कुछ दिनों मित्र - चित्रकार मनीष पुष्कले ने भी उल्लेखनीय डायरी लिखी। जैसा कि मैं एक महीना पहले घोषणा कर चुकी थी कि हिंदीनेस्ट को हम यानि मैं और अंशु और आप सब ( नियमित पाठक और लेखक) फिर से सक्रिय करने जा रहे हैं। मुझे लगा क्यों न यह शुरुआत 'डायरी विधा' से हो और क्यों न कोरोना के इस बोझिल समय में लोग डायरी लेखन और पठन की तरफ़ फिर से लौंटे। यह अंक अनूठी डायरियों से समृद्ध है। संभव है आप लोग पढ़ पढ़ कर थक जाएं लेकिन हम हिंदीनेस्ट को अपडेट करने में नहीं थकेंगे। इस अंक के लिए चालीस से ज़्यादा रचनाएं आई हैं, जिस क्रम में ई-मेल से रचनाएं आई हैं उस क्रम में हम तीन- चार दिन में सभी रचनाएं अपडेट कर देगें। इसके पहले दिन के अपडेट में हम ले रहे हैं - दिनकर की डायरी, कृष्ण बलदेव वैद साहब की डायरी 'ख्वाब है दीवाने का' के अंश, अशोक वाजपेयी जी के ताज़ा-तरीन 'कभी - कभार', अरुण प्रकाश जी, डॉ सत्यनारायण जी के डायरी विधा और डायरी विधा के इतिहास पर लेख, प्रसिद्ध चित्रकार अखिलेश की डायरी, युवा सितार व सरोद वादक असित - अमित गोस्वामी की डायरी, राजस्थानी हिंदी के लेखक नंद भारद्वाज जी की डायरी, प्रसिद्ध पुरावेत्ता और महानिदेशक - राकेश तिवारी जी की अफ़ग़ानिस्तान डायरी। गांधीवादी वरिष्ठ पत्रकार डॉ. राकेश पाठक की 'चम्बल के बीहड़' में गुज़रे एक दिन पर डायरी। डायरी विधा पर कुछ कविताएं इस अंक की शोभा बढ़ाने जा रही हैं कविगण हैं- आशुतोष दुबे, प्रेमशंकर शुक्ल, शार्दुला, उर्वशी साबू हम इसे लगातार अपडेट करेंगे - तेजी - रुस्तम की कोरोना-काल में मजदूरों के संघर्ष में साथ देने वाले दिनों की डायरी, हेमंत शेष की डायरी , राजा राम भादू, कैलाश मनहर, प्रोफेसर सदानंद शाही जी की डायरियों सहित यात्रा डायरी में पुलिस अधिकारी, यायावर, लेखिका पल्लवी की भूटान डायरी, प्रेमचंद गांधी जी की डायरी, फौजी शायर कथाकार कर्नल गौतम राजरिशी की रोमांचक डायरी के साथ हमारे मित्र, डॉक्टर ग्रुप कैप्टन अनिल दीक्षित की मणिपुर डायरी। राजस्थानी के लेखक अरविंद आशिया की युवावस्था की डायरी। सतीश नूतन जी की प्रसिद्ध ओड़िया लेखक ‘सीताकांत महापात्रा’ से मुलाकात के दिन की डायरी। डॉ सत्यनारायण की डायरी। डायरी केंद्रित - युवा प्रतिभावान लेखक अम्बर पांडे की एक अनूठी कहानी इस क्रम में शामिल होगी। कथाकार डॉ.लक्ष्मी शर्मा के दुबई प्रवास और कथाकार मित्र पंकज सुबीर की लंदन डायरी सहित जापानी सराय से चर्चित कथाकार अनुकृति उपाध्याय की गोवा डायरी, पारुल पुखराज की काव्यात्मक डायरी, लंदन में रहने वाली मित्र लेखक शिखा वार्ष्णेय की लंदन की समसामयिक डायरी और युवा कवि देवेश पथसरिया, विभा सिंह, रुचि भल्ला, सिद्धेश्वर सिंह और राजनैतिक बंदी रहे अमिता शीरीं - मनीष आज़ाद की जेल डायरी, देवदीप मुखर्जी की कलकत्ता डायरी का पन्ना, संगीता सेठी की कोविड डायरी, विज्ञान कथा साहित्य के प्रतिनिधि कथाकार राजेश जैन की डायरी, श्रद्धा आढ़ा, कालूलाल कुल्मी, आरती तिवारी की डायरी और कुछ अन्य डायरियों के पन्नों के साथ हम लगातार उपस्थित रहेंगे। तो लीजिए प्रस्तुत है हिंदीनेस्ट का चिरप्रतीक्षित " डायरी विशेषांक" |
|
(c) HindiNest.com
1999-2021 All Rights Reserved. |