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बच्चों द्वारा लिखित हॉलोकॉस्ट डायरी

बच्चे जब खेलने की उम्र में अपने दुर्दांत समय को दर्ज़ करने के लिए कलम उठा लें तो उस भीषण समय की कल्पना की जा सकती है। महेश्वर इस आलेख में इन डायरियों पर जो लिखते हैं वह बहुत मार्मिक है।
 

महेश्वर


हॉलोकॉस्ट अपने समय का सबसे क्रूरतम कृत्यों में से एक है। विश्वयुद्ध काल में हॉलोकॉस्ट के दौरान लगभग एक मिलियन यहूदी बच्चे मारे गये। लगभग इतनी संख्या में ही यहूदी बच्चे भी नाजियों द्वारा उनके कू्रर व्यवहार के शिकार भी हुए। उनमें से जो कुछ थोड़े बच्चे बच गये उन्होंने आगे चलकर अपनी आपबीती डायरी के पन्नों में दर्ज किये। इसमें नाजीयुग की अन्धकारमय जीवन, उसकी यातना-त्रासदी-विभिषिका आदि का सजीव चित्रण देखने को मिलता है।
मिरियन वाटेनबर्ग (मेरी बर्ग) की डायरी हॉलोकॉस्ट की डरावनी और भयावह तस्वीर प्रस्तुत करनेवाली पहली कृति मानी जाती है। जिसने अपने प्रकाशन के साथ ही सबका ध्यान अपनी ओर खींचा था। वाटेनबर्ग का जन्म 10 अक्टूबर, 1924 को लोड्ज शहर में हुआ था। इस बालिका ने अक्टूबर 1939 में अपनी युद्ध कालीन डायरी को लिखना शुरु किया जब, पोलैंड ने जर्मनी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। वाटेनबर्ग परिवार को वार्सा के घेटो (नाजियों द्वारा बनाया गया यहूदी बस्ती) में भेज दिया गया। यहाँ वाटेनबर्ग परिवार को अलग समुदाय में रखा गया क्योंकि मिरियम की माँ अमेरिकी नागरिक थीं।
1942 के ग्रीष्म में वार्सा के बहुत से यहूदियों को त्रेलिम्बका से डिपोर्ट किया गया। जर्मन अधिकारियों ने मिरियन, उसके परिवारवालों को और वैसे यहूदियों को जिनके पास विदेशी पासपोर्ट थे उनको पावियाक जेल में रखा गया।
जर्मन अधिकारियों ने अचानक इस वाटेनबर्ग परिवार को इन्टर्रमेंट कैम्प फ्रांस भेज दिया, जहाँ उन्हें 1944 में संयुक्त राष्ïट्र अमेरिका माइग्रेट होने की अनुमति मिल गयी। द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्ति के बाद कुछ प्रमुख भुक्तभोगियों द्वारा लिखी गयी डायरी में से एक है यह। मिरियन वाटेनबर्ग ने इसे 1945 में 'मेरी बर्गÓ पेन नाम से प्रकाशित करवाया। नाजियों द्वारा स्थापित 'घेटोÓ का जीवन्त चित्रण इस कृति में है।
इसी प्रकार ऐने फ्रैंक की डायरी भी हॉलोकॉस्ट युग की बहुत ही मार्मिक डायरी मानी जाती है। ऐने फैंक ने इसमें अपने परिवार और यातना शिविर की असहनीय यातनाओं को बहुत ही मार्मिकता से व्यक्त किया है।


12 जून 1929 में जर्मनी के फ्रैंकफर्ट-अम-मेन में ऐनेलिज फ्रैंक का जन्म हुआ था। ऐने व्यापारी ओटो फ्रैंक और उनकी पत्नी एडिथ की दूसरी सन्तान थी। जब 1939 में नाजी सत्ता अपने अस्तित्व में आयी तो सबसे पहले उन्होंने जनवरी 1939 में यहूदियों को अपने ऑडर के आधार पर अमस्र्टडम भेज दिया। ऐने के पास एक ऑटोग्राफ बुक थी जो उसे उसके 12वें जन्मदिन के अवसर पर भेंट स्वरुप मिला था। इसमें ऐने ने 'सिक्रेट एनेक्स के अन्तर्गत डायरी लिखी थीं। जर्मन सुरक्षा पुलिस ने ऐने की छुपने की जगह को ढूँढ निकाला और ऐने को 4 अगस्त 1944 को बेस्टरर्बोक से आश्वित्ज डिपोर्ट कर दिया।
1944 के अक्टूबर के अन्त और नवम्बर के शुरुआती सप्ïताह में ऐने और उसकी बहन मागरेट को सवारीगाड़ी से आश्वित्ज से बर्गेन बेलसेन भेज दिया गया। लगभग फरवरी और मार्च के शुरुआती दिनों में दोनों बहने टाइफस के जबरर्दस्त चपेट में आ गयीं। 1945 में युद्ध के बाद जब ऐने के पिता ओटो फ्रैंक यातना शिविर से बचकर निकले तो कुछ लोगों में से एक थे। वे 1945 के ग्रीष्म में अमस्र्टडम लौटे तो वहाँ एक सरकारी कर्मचारी मीप गीज ने उन्हें ऐने फ्रैंक की डायरी और कुछ दूसरे कागजात सौंपे जो उसकी गिरफ्तारी के वक्त प्राप्ïत किये गये थे। यह डायरी 1947 में नीदरलैंड में सर्वप्रथम प्रकाश में आयी और 1952 में 'डायरी ऑव अ यंग गर्लÓ नाम से अँग्रेजी में प्रकाशित हुई। प्रकाशन के बाद यह पुस्तक युद्धकालीन रोजनामचे के रूप में ऐने फ्रैंक की यह पुस्तक सबसे अधिक पढ़े जानेवाली किताबों में शामिल हो गयी। इस पुस्तक की लेखिका ऐने फ्रैंक के हॉलोकॉस्ट के द्वारा कत्ल किये गये हजारों यहूदी बच्चों के यातनापूर्ण जीवन और त्रासद जीवन का बड़ा ही जीवन्त वर्णन है। ऐने फ्रैंक की यह पुस्तक एक कड़ी के रूप में है। लगभग इसी तरह की एक और पुस्तक है—'इन सीतूÓ जिसमें हॉलोकॉस्ट पर लिखे बच्चोंके नोट्स संकलित हैं। आज भी इस पुस्तक का अपना खास महत्त्व है।
युद्धोपरान्त कई भुक्तभोगियों ने कांस्ट्रेशन कैम्प की विभिषिका को डायरियों में दर्ज किया है जो युद्धकाल को समझने में मदद करती है। इन बच्चों के कांस्ट्रेशन कैम्प की जिन्दगी को बहुत ही मार्मिकता से बयाँ किया है। कुछ बच्चे गरीब और किसानों के परिवार से थे तो कुछ सम्पन्न और पढ़े-लिखे परिवार से थे, लेकिन सामाजिक स्तर पर अलग-अलग पृष्ïठभूमि के होने के बावजूद भी उनके लेखन में समानता देखने को मिलती है।
बच्चों द्वारा लिखी गयी इन डायरियों को इतिहासकारों और समाज विज्ञानियों ने तीन भागों में बाँटा है। एक, ऐसे बच्चे जो जर्मन अधिकृत क्षेत्र में रहे या रिफ्यूजी थे; दो, जो बच्चे छुपकर अथवा भागे हुए थे; तीन, ऐसे बच्चे जो नाजियों द्वारा बनाये 'घेटोÓ में रह रहे थे और घेटो की कड़ी कानून व्यवस्था से जूझ रहे थे। और कुछ कांस्ट्रेशन कैम्प में कैद बच्चे थे।
हॉलोकॉस्ट आधारित रिफ्यूजी डायरी 1930 से 1940 के दौरान ऐसे यहूदी बच्चों द्वारा लिखा गया, जिनके माता-पिता जर्मनी, आस्ट्रिया, पोलैंड और चेकोस्लोवाकिया के रहनेवाले थे। इन बाल लेखकों ने जो अपने परिवार के साथ नाजी शासन में इधर-से उधर भटकते रहे थे। उन्होंने जो कष्ïट भोगा उसे अपने लेखन में उतार दिया। जूत्ता सेल्बर्ग (1926, हैम्बर्ग जर्मनी में जनमे), लिलि कोहन (1928, हालर्बस्टाड, जर्मनी), सूसी हिलसेनार्थ (1929, बाड क्रूजनार्च, जर्मनी), एलिजाबेथ कुफ्मान (1926, वियेना, ऑस्ट्रिया) आदि अपने माता-पिता और भाई-बहनों के साथ निष्कासित हुए थे। क्लाउस लैंगर (1929, बर्लिन, जर्मनी), वार्नर एंग्रेस (1920, बर्लिन, जर्मनी) और लिजा जेडवाब (वियातीस्टॉस, पोलैंड) अकेले ही इस विरान-डरावने स्थानों पर भेजे गये थे।
इन बाल डायरी लेखकों में कई ऐसे हैं जिन्हें कानूनी रूप से यातना-शिविर आदि में भेजा गया था। इस दौरान इनके द्वारा भोगा गया दारुण कष्टï, भय-प्रताडऩा आदि दर्ज हैं। यह किसी भी सामान्य व्यक्ति के लिए पढ़कर उस मंजर को याद करना भयभीत कर सकता है। इन भुक्तभोगी डायरी लेखकों ने इतनी सचाई और यथार्थ चित्रण किया है कि पढ़ते ही मस्तिष्क पर भय व्याप्त हो जाता है।
इन डायरियों में दर्ज दर्द मानवीय स्तर पर हमें सोचने पर मजबूर करते हैं।

 इनमें उनके घर को खोने की पीड़ा है, परिवार से, दोस्तों से बिछुडऩे का दर्द है लेकिन उन्होंने अपनी भाषा, संस्कृति आदि को याद करने की कोशिश की है।
ऐने फ्रैंक जैसे कई बच्चे थे जो नाजियों से छुपकर रह रहे थे उन्होंने इस दौरान भी अपनी मनोस्थिति को बयाँ करने की कोशिश की है। ये बच्चे बैंकर्स, तहखानों स्टोररूमों में छिपे थे। ऐसा लगभग पूर्वी और पश्चिमी यूरोप में सामान्य रूप से देखा गया है। ओटो वुल्फ (1927, मोहेनिसे, चेकोस्लोवाकिया) ये बोहेमिया और मोराविया के कब्जेवाले इलाके के थे। मीना ग्लूक्समैन, क्लारा क्रामेर (1927, जोकूवी), लियो सिवरमैन (1928, प्रिजमीन) पोलैंड में, वर्टजे ब्लॉच वॉन रीन, एडिथ वॉन हेसेन (1925, हेग) और अनिता मेमेर (1929, हेग) नीदरलैंड ने अपनी डायरी में कांसेंट्रेशन कैम्प में बिताये अपने नरकीय जीवन के बारे में लिखा है।
इन बच्चों ने अपने लेखन में खुद के छिपने और उसकी समस्याओं को रेखांकित किया है। उस छिपने की जगहों के बारे में और छुप कर भी खेलने, अपना मन बहलाने की तरीकों के बारे में लिखा है। यह बहुत ही कठिन समय था जब बच्चों के साथ-साथ उनके परिवारवाले भी भय और निराशा में जी रहे थे। इन डायरियों को पढऩा एक युग को जानने-समझने के सामान है।

महेश्वर ने दिल्ली विश्वविद्यालय से चेक भाषा व साहित्य का अध्ययन किया है, जामिया मिल्लिया इस्लामिया से एम.ए. और जेएनयू से चेक साहित्य पर एम.फिल. व पी-एच.डी. की उपाधि भी ली है। कविताएं लिखने के साथ ही महेश्वर ने साहित्य से जुड़े कई रचनात्मक काम किये हैं -

कुँवर नारायण’, ‘मैनेजर पांडेय’ और मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी और वियोगी हरि पर वृत्तचित्र बनाना उनमें से उल्लेखनीय है।   ‘नया ज्ञानोदय’ के सह संपादक के रूप में तो हम सभी उन्हें जानते ही हैं।

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