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मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम रघुकुल की महान परंपरा में अयोध्या नगरी में पिता दशरथ ओर माता कौशल्या के यहॉ श्रीराम अवतरित हुए। उस समय अयोध्या राज्य में सब ओर सुख शान्ति थी। लेकिन सुदूर दक्षिण भारत में लंकापति रावण आसुरी वृत्तियों को बढाने में लगा था। वह अतिशक्तिमान राक्षसराज धीरे धीरे उत्तर में भी अपना कुप्रभाव फैलाने में सफल हो रहा था जिसके चलते भारतके दक्षिण में स्थित अनेक राज्य और उनके निवासी राजा रावण के राक्षसी प्रभाव का शिकार बनते नजर आ रहे थे। ऐसे में प्राचीन भारत की महान संस्कृति का प्रचार और प्रसार करने की जिम्मेदारी निभाने के लिये प्रभु को स्वयं श्रीराम के रूप में अवतरित होना पडा। भारत को भौगोलिक राज्यों को एकसूत्र में बांधने का अधिकांश श्रेय भगवान राम को ही जाता है। अपने भाई लक्ष्मण और भार्या सीता के साथ 14 बरस उन्होने लगभग संपूर्ण भारत का भ्रमण किया जगह जगह सात्विकता को बढावा देते तामसिक वृत्तियों का संहार किया। एक ओर ॠषिमुनि जनों का आदर किया तो दूसरी ओर राक्षसों को दण्डित भी किया। ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य समाज के साथ पिछडे वर्ग के लोगों को साथ लेकर उन्होने सामाजिक क्रान्ति की नींव रखी। ठोस उदाहरण देने हो तो आदिवासी सरदार गुह नौका खेनेवाला केवट भक्त शबरी वानर जाति के सुग्रीव और अंगद रीछ जाति के जाम्बुवंत पक्षी जाती के जटायु आदि सब जन के साथ श्रीराम का प्रेमपूर्ण सद्भाव और मैत्री का व्यवहार रहा। ये सब एकजुट होकर श्रीराम के कार्य में लगे रहे। सीताहरण और उसके चलते उसकी तलाश में जहॉ राम लक्ष्मण स्वयं वन में पैदल भटके वहीं इन सब पिछडी जाति के सदस्यों ने उनकी निष्काम भाव से सहायता की। रामसेतु और लंकाविजय को सामूहिक और सांघिक एकजुटता की विजय का प्रतीक हम मान सकते हैं। ऐसे मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के जीवन के कुछ पहलूओं का हम संक्षेप में अध्ययन करेंगे।
चौदह
बरस धर्मपत्नी के सहवास में रहनेपरभी वल्कलधारी मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम
और माता सीता संन्यास आश्रम का पालन करते हुए शरीर सुख का त्याग करते
है।
यह
उदात्तता भारतीय संस्कृति को छोड शायद ही किसी अन्य संस्कृति में पाई जाती
हो।
ध्येयवादी राम अरण्य में भी ॠषिमुनीओं के आश्रम को भेंट देते और वेद उपनिषद
के गहन तत्वों की चर्चा करते।
इससे
वेदो का अध्यात्मिक ज्ञान सारे भारत में फैला और आर्यसंस्कृति का सदूर
प्रसार एवम् प्रचार हुआ।
डॉ सी एस शाह |
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