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जितना कुछ देख सुन कर
उसने इस परिवार में सीखा था,
उतना
करने का प्रयास किया।
धोक लगाए,
चरण धुलवाए और
उन्हें मर्दाना बैठक में
फर्श पौंछ कर बैठाया। ''
विराजें।''
पहली बार उसे लगा
कहाँ
फंस गई है वह।
जब वह लौट कर जल
लेकर नीचे बैठक में आई तो स्वयं महाराजसा ने उसकी समस्या हल कर दी यह कह
कर कि बस दूध और फलाहार लेंगे।
वह जल्दी से गाढे
दूध में केसर और मेवे मिलाकर ले आई,
साथ में तीन-चार किस्म के फल और खोए की मिठाई।
दूध और फलाहार
ग्रहण कर उन्होंने पूछा - ''
आपका नाम
? '' ''महाराजसा,
कुछ फलाहार साथ के
लिये रख दूँ?''
फिर पॉज असहज सा। ''.....आपको
उस दिन पहली बार हवेली में देखा आप साधारण कहाँ हैं।एम ए में अध्ययन के
समय मैं ने ब्राउनिंग और कीट्स को पढा और प्रेम को व्यर्थ की दैहिक
अनुभूति समझता रहा आज वही सब मुझे विचलित करता है सुमेधा जी मैं तब से
अस्थिर.. मेरा मन अस्थिर था।''
ऐसे प्रश्न निश्चय ही
आहत करने वाले थे और सीधे जाकर मर्म को चोट
पहुँचाने
वाले।
और चोट
पहुँची
भी
। ''सुमेधा
जी मैं अपनी कमजोरी का प्रायश्चित करके,
आपसे मार्ग पूछने
नहीं आया था,
हारा अब भी नहीं हूँ। मैं
स्वयं अनजान था इन अजानी कामनाओं से देखना एक दिन उबर आउंगा। उनका चेहरा
जल रहा था,
आखों में नमी थी और होंठ
फिर दृढता से भिंच गए थे।''
सुमेधा का मन बुरी तरह
भर आया था।
स्वयं को अपराधी महसूस
कर रही थी।
इस युवा मुनि के सहज
असमंजस पर चिंता हो आई,
उमर ही क्या होगी इसकी,
कैसे निभाएगा इतना भीषण वैराग्य?
देर रात लौट पाए पुखराज।
और आकर खुशखबर दी
कि सुमेधा का प्री पी जी में अडतालीसवां रैंक है और उसे गायनोकॉलोजी
ब्रान्च मिल जाएगी। ''हाँ
प्रमोद ने फोन पर यह भी कहा कि बस पन्द्रह दिनों में क्लासेज भी शुरू हो
रही हैं। अब बस जाने की तैयारी करो।''
अन्तिम वाक्य से सुमेधा
की खुशी में बिछोह की पीडा घुल गई।
कुछ घण्टों पहले
का वह प्रकरण,
खुशखबर, संभावित बिछोह की
कल्पना सारी बातें घुलमिल कर सुमेधा को रुला गईं। ''
अरे! तुम तो रो पडी
सुमी! मैं एक वीकेन्ड पर आउंगा,
दूसरे पर तुम आ
जाना।''
पुखराज ने उसके बाल सहला कर कहा।
दो महीने भी
कहाँ
पूरे हुए थे,
उनके नूतन दाम्पत्य के,
व्यस्तता इतनी रही कि हनीमून या मधुमास के नाम पर इस विराट हवेली के इस
शयन कक्ष के जालीदार गोखडे या जहाजनुमा इस नक्काशीदार सजीले पलंग पर कुछ
तृप्तिदायक पलों को दोनों ने स्मृति की पोटली में
बाँध
लिया था।
सुमेधा के जाने के बस
कुछ दिन पहले का एक दिन बडा महनूस सा दिन था वह।
सुबह उठते ही
संदेश मिला था कि सागरमहाराज सा जो चातुर्मास में भी आरंभ से ही निराहार
व्रत कर रहे थे अचानक अचेत हो गए हैं। ''मैं
चलूं पुखराज?''
डॉक्टर की भूमिका में भी
उसका मन घबरा रहा था,
आखिर ऐसा क्यों हुआ? इस
बेमौके निराहार, निर्जल लम्बे व्रत की वजह?
वहाँ
काफी भीड एकत्रित हो गई
थी, पुखराज
ने सबको हटाया।
लगभग अचेत सागर
जी महाराजसा को ओआरएस पिलाया।
अर्धचेतनता में
भी विरोध कर रहे थे।
नियम विरूध्द
उन्हें साफ बिछौने पर लिटाने से पहले सुमेधा ने बडे महाराजसा की ओर देखा
उन्होंने मूक स्वीकृति दे दी।
एक इंजेक्शन लगा
कर पुखराज ने ड्रिप लगा दी।
ब्लडशुगर और
ब्लडप्रेशर खतरे की हद तक नीचे गिर चुका था।
एक युवक से कुछ
अन्य इंजेक्शन मंगा कर ड्रिप में लगा दिये तब स्थिति सुधरने की उम्मीद
जगी।
अर्धचेतनता से उबर कर जब
उन्होंने आँखे
खोलीं तब सुमेधा
सामने ही एप्रन पहने खडी थी।
बडे महाराजसा और
बाउजी फर्श पर चिंतातुर बैठे थे।
पुखराज फिर बी पी
ले रहे थे।
गहरी सांस ले उन्होंने
फिर आँखे
मूंद लीं।
स्थानक के चबूतरों,
छज्जों, आलों पर बैठे
कबूतरों ने भी राहत भरी गुटरगूं शुरू कर दी,
थमी सी उमस भरी हवा घुटन से उबर तेज
साँस
की तरह चलने लगी।
बाहर प्रतीक्षा
कर रहे लोग भी महाराजसा के कहने पर अपने घरों को लौट गए।
बस दो लडक़े
भागदौड क़रने को बाहर बैठे थे।
सुमेधा को लगा सब
सामान्य हो रहा है।
तभी क्षीण स्वर में सागर
जी महाराजसा ने पुकारा,
सुऽऽम कुछ अस्पष्ट शब्द बिखरे और सुमेधा का हृदय बुरी
तरह धडक़ गया।
उनकी खुली
आँखे
शून्य में तैर रही थीं।
पुखराज और वह उन
पर झुक गए,
उनकी तकलीफ समझने की कोशिश में।
एक क्षीण स्वर
उभरा और सब कुछ ध्वस्त कर गया, ''
लो सुऽऽममेधा अब तो
जीत लिय ना मैं ऽऽ उबर आया न,
काऽऽमनाओं से।
''
सुमेधा अवाक और पुखराज
तो न जाने किन-किन आवेगों-प्रतिआवेगों से गुजर रहे होंगे।
वह उसकी ओर देखने
का साहस नहीं कर सकी,
अर्धचेतन मुनि फिर अर्धचेतना में खो गया।
ड्रिप बदलते पुखराज के
हाथ काँप
रहे थे।
बहुत छिपा कर भी
अपनी आवाज क़ा कम्पन्न छुपा न सके, ''तुम
घर जाओ।''
सुमेधा की रुलाई फूट पडी,
रास्ते भर रोकते
रोकते भी
आँसू बाँध
तोड बहते रहे।
रास्ते में कुछ
लोगों ने समझा कुछ अनिष्ट हो गया।
हवेली
पहुँचते
ही मम्मी ने भी यही पूछा,
सब ठीक तो है ना।
हाँ ।
का संक्षिप्त उत्तर दे
वह अपने कमरे में चली गई।
पुखराज कब लौटे,
सागर जी मुनि जी कैसे हैं अब?
यह सब सुमेधा जान न सकी।
अगले ही दिन
पुखराज बिना कुछ कहे उसे उदयपुर छोड ग़ए।
कार में उसने कुछ
कहने की चेष्टा की भी तो,
यह कह कर चुप करा दिया कि , ''तुम्हें
आगाह किया था मैं ने, अब जो नुकसान हुआ है,
उसे मैं झेलूंगा।''
चार माह हुए सुमेधा को
मिलने नहीं गया पुखराज,
कह दिया एम एस की पढाई बहुत कठिन है।
उसे डिस्टर्ब
नहीं करना चाहता।
सुमेधा नहीं समझ
सकी नुकसान किसका हुआ?
पुखराज का या उस युवा मुनि का या उसका स्वयं का?
अब यह कैसा और किसका
वैराग्य था? | पहला
पन्ना
|
दूसरा पन्ना |
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