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क्या यही है वैराग्य?      | तीसरा पन्ना | पहला पन्ना | दूसरा पन्ना |

जितना कुछ देख सुन कर उसने इस परिवार में सीखा था, उतना करने का प्रयास कियाधोक लगाए, चरण धुलवाए और उन्हें मर्दाना बैठक में फर्श पौंछ कर बैठाया

'' विराजें।''
वे बैठ गए अपना झोला-डण्डा पास ही रख कर। अब सुमेधा भागी पुखराज को फोन करने, और संयोग से वो क्लिनिक में ही मिल गए।
''
पुखराज खाना तो तैयार नहीं है।''
''
पगली इसीलिये हम जैनियों में सूर्यास्त से पहले खाना बन जाता है।''
''
आज हम दोनों ही थे तो मैं ने सोचा चम्पालाल भी नहीं है। अच्छा तुम आ तो जाओ , उनके पास बैठने को।''
''
देखता हूँ बस मैं साईट के लिये निकल रहा था, एक इन्जीनियर भी आ रहा है। फ्रिज में आटा होगा, कुछ ताजा बना लो और जिमा दो, उनके साथ में भी रखना होता है। याद रखना।''

पहली बार उसे लगा कहाँ फंस गई है वहजब वह लौट कर जल लेकर नीचे बैठक में आई तो स्वयं महाराजसा ने उसकी समस्या हल कर दी यह कह कर कि बस दूध और फलाहार लेंगेवह जल्दी से गाढे दूध में केसर और मेवे मिलाकर ले आई, साथ में तीन-चार किस्म के फल और खोए की मिठाईदूध और फलाहार ग्रहण कर उन्होंने पूछा -

'' आपका नाम ? ''
''
सुमेधा।''
''
हाँ आप तो डॉक्टर हैं , गुण अनुरूप ही नाम है।''
''
आप जैन नहीं हैं।''
''
अब तो जैन ही हूँ।''
''
हाँ। सत्य तो यही है अब।''
''
पर आप बहुत अलग हैं, आम स्त्रियों से।''
एक लम्बा पॉज ख़िंचा ही रहा
सुमेधा उनकी असहज दृष्टि को उपेक्षित कर उनके जाने की प्रतीक्षा में बोली,

''महाराजसा, कुछ फलाहार साथ के लिये रख दूँ?''
''
नहीं, आज तो अब कुछ नहीं जीमूंगा, कल तक बासी हो जाएगा। रहने दें।''

फिर पॉज असहज सा

''.....आपको उस दिन पहली बार हवेली में देखा आप साधारण कहाँ हैं।एम ए में अध्ययन के समय मैं ने ब्राउनिंग और कीट्स को पढा और प्रेम को व्यर्थ की दैहिक अनुभूति समझता रहा आज वही सब मुझे विचलित करता है सुमेधा जी मैं तब से अस्थिर.. मेरा मन अस्थिर था।''
''
मुझे आज्ञा दें, महाराजसा सुमेधा का चेहरा तमतमा रहा था, पर इस एक टीन एज से दिखने वाले युवा भिक्षु को क्या कहे? वह जाने लगी। अब तक वो अपने असमंजस से उबर आये और सधे स्वरों में बोले,
''
मेरी बात पूरी सुन कर जाईएगा।''
''
ये मानवीय कमजोरियँ एक दीक्षित मुनि को शोभा देती हैं क्या?''
''
जानता हूँ, मगर सारा दोष मेरा नहीं ध्यान लगाता हूँ तो आभूषणों की खनक गूंजती है।''
''
किसी ने विवश तो नहीं किया था इस उम्र में दीक्षा लेने को। एन्ड इट्स नेवर टू लेट। एक पलायन और  बस बन जाइए गृहस्थ। धीमे स्वरों में सुमेधा बहुत कडाई से बोल रही थी, उसके स्वरों में गाढा व्यंग्य सारी विसंगतियाँ देख-सुन कर उतर आया था।'' पर वह सम्मोहित भिक्षु बोले चला जा रहा था।
''
बस यही कहने आया हूँ।लेट मी कनफेस।सुमेधा जी।''
''
क्या आपके धर्म में लौट जाने का मार्ग नहीं है?''

ऐसे प्रश्न निश्चय ही आहत करने वाले थे और सीधे जाकर मर्म को चोट पहुँचाने वालेऔर चोट पहुँची भी

''सुमेधा जी मैं अपनी कमजोरी का प्रायश्चित करके, आपसे मार्ग पूछने नहीं आया था, हारा अब भी नहीं हूँ। मैं स्वयं अनजान था इन अजानी कामनाओं से देखना एक दिन उबर आउंगा। उनका चेहरा जल रहा था, आखों में नमी थी और होंठ फिर दृढता से भिंच गए थे।''
''
चलता हूँ।''

सुमेधा का मन बुरी तरह भर आया था स्वयं को अपराधी महसूस कर रही थी इस युवा मुनि के सहज असमंजस पर चिंता हो आई, उमर ही क्या होगी इसकी, कैसे निभाएगा इतना भीषण वैराग्य?

देर रात लौट पाए पुखराजऔर आकर खुशखबर दी कि सुमेधा का प्री पी जी में अडतालीसवां रैंक है और उसे गायनोकॉलोजी ब्रान्च मिल जाएगी

''हाँ प्रमोद ने फोन पर यह भी कहा कि बस पन्द्रह दिनों में क्लासेज भी शुरू हो रही हैं। अब बस जाने की तैयारी करो।''

अन्तिम वाक्य से सुमेधा की खुशी में बिछोह की पीडा घुल गईकुछ घण्टों पहले का वह प्रकरण, खुशखबर, संभावित बिछोह की कल्पना  सारी बातें घुलमिल कर सुमेधा को रुला गईं

'' अरे! तुम तो रो पडी सुमी! मैं एक वीकेन्ड पर आउंगा, दूसरे पर तुम आ जाना।'' पुखराज ने उसके बाल सहला कर कहा।

दो महीने भी कहाँ पूरे हुए थे, उनके नूतन दाम्पत्य के, व्यस्तता इतनी रही कि हनीमून या मधुमास के नाम पर इस विराट हवेली के इस शयन कक्ष के जालीदार गोखडे या जहाजनुमा इस नक्काशीदार सजीले पलंग पर कुछ तृप्तिदायक पलों को दोनों ने स्मृति की पोटली में बाँध लिया था

सुमेधा के जाने के बस कुछ दिन पहले का एक दिन बडा महनूस सा दिन था वहसुबह उठते ही संदेश मिला था कि सागरमहाराज सा जो चातुर्मास में भी आरंभ से ही निराहार व्रत कर रहे थे अचानक अचेत हो गए हैं

''मैं चलूं पुखराज?''
''
वहाँ औरतें नहीं जातीं।''  बाउजी का कडक़ स्वर निकला।
सुमेधा फुसफुसाई  ''डॉक्टर तो जा सकते हैं।''
बाउजी, चलने दीजिए, '' हो सकता है बात सीरीयस हो तो इसकी असिस्टेन्स की जरूरत पड ज़ाए।''

डॉक्टर की भूमिका में भी उसका मन घबरा रहा था, आखिर ऐसा क्यों हुआ? इस बेमौके निराहार, निर्जल लम्बे व्रत की वजह? वहाँ काफी भीड एकत्रित हो गई थी, पुखराज ने सबको हटायालगभग अचेत सागर जी महाराजसा को ओआरएस पिलायाअर्धचेतनता में भी विरोध कर रहे थेनियम विरूध्द उन्हें साफ बिछौने पर लिटाने से पहले सुमेधा ने बडे महाराजसा की ओर देखा उन्होंने मूक स्वीकृति दे दीएक इंजेक्शन लगा कर पुखराज ने ड्रिप लगा दीब्लडशुगर और ब्लडप्रेशर खतरे की हद तक नीचे गिर चुका थाएक युवक से कुछ अन्य इंजेक्शन मंगा कर ड्रिप में लगा दिये तब स्थिति सुधरने की उम्मीद जगी अर्धचेतनता से उबर कर जब उन्होंने आँखे खोलीं तब सुमेधा सामने ही एप्रन पहने खडी थीबडे महाराजसा और बाउजी फर्श पर चिंतातुर बैठे थेपुखराज फिर बी पी ले रहे थे गहरी सांस ले उन्होंने फिर आँखे मूंद लीं

स्थानक के चबूतरों, छज्जों, आलों पर बैठे कबूतरों ने भी राहत भरी गुटरगूं शुरू कर दी, थमी सी उमस भरी हवा घुटन से उबर तेज साँस की तरह चलने लगीबाहर प्रतीक्षा कर रहे लोग भी महाराजसा के कहने पर अपने घरों को लौट गएबस दो लडक़े भागदौड क़रने को बाहर बैठे थेसुमेधा को लगा सब सामान्य हो रहा है

तभी क्षीण स्वर में सागर जी महाराजसा ने पुकारा, सुऽऽम कुछ अस्पष्ट शब्द बिखरे और सुमेधा का हृदय बुरी तरह धडक़ गयाउनकी खुली आँखे शून्य में तैर रही थींपुखराज और वह उन पर झुक गए, उनकी तकलीफ समझने की कोशिश मेंएक क्षीण स्वर उभरा और सब कुछ ध्वस्त कर गया,

'' लो सुऽऽममेधा अब तो जीत लिय ना मैं ऽऽ उबर आया न, काऽऽमनाओं से। ''

सुमेधा अवाक और पुखराज तो न जाने किन-किन आवेगों-प्रतिआवेगों से गुजर रहे होंगेवह उसकी ओर देखने का साहस नहीं कर सकी, अर्धचेतन मुनि फिर अर्धचेतना में खो गया

ड्रिप बदलते पुखराज के हाथ काँप रहे थेबहुत छिपा कर भी अपनी आवाज क़ा कम्पन्न छुपा न सके,

''तुम घर जाओ।''

सुमेधा की रुलाई फूट पडी, रास्ते भर रोकते रोकते भी आँसू बाँध तोड बहते रहेरास्ते में कुछ लोगों ने समझा कुछ अनिष्ट हो गयाहवेली पहुँचते ही मम्मी ने भी यही पूछासब ठीक तो है ना  हाँ । का संक्षिप्त उत्तर दे वह अपने कमरे में चली गईपुखराज कब लौटे, सागर जी मुनि जी कैसे हैं अब? यह सब सुमेधा जान न सकीअगले ही दिन पुखराज बिना कुछ कहे उसे उदयपुर छोड ग़एकार में उसने कुछ कहने की चेष्टा की भी तो, यह कह कर चुप करा दिया कि , ''तुम्हें आगाह किया था मैं ने, अब जो नुकसान हुआ है, उसे मैं झेलूंगा''

चार माह हुए सुमेधा को मिलने नहीं गया पुखराज, कह दिया एम एस की पढाई बहुत कठिन हैउसे डिस्टर्ब नहीं करना चाहतासुमेधा नहीं समझ सकी नुकसान किसका हुआ? पुखराज का या उस युवा मुनि का या उसका स्वयं का?

अब यह कैसा और किसका वैराग्य था?

- मनीषा कुलश्रेष्ठ

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