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मृत्युगंध - 2 सुबह अदिति ने पीताम्बर के घर फोन किया - उधर से हलो के साथ सामूहिक रूदन का स्वर सुनाई दिया।अदिति विचलित हो गई तो क्या यहां भी कुछ अघट घटा है? इन दिनों अशुभ ही सुनने को क्यो मिल रहा है। शायद इसी को कहा जाता है खराब समय चल रहा है। अदिति ने अपनी विचलन को साधते हुए उधर से आ रहे स्वर को पकडा - आनंद की मदर बोल रही हैं। मैं पीताम्बर का चाचा। पीताम्बर कल शाम बाइक पर आपके घर के लिए निकला था। रास्ते में एक्सीडेन्ट हो गया। वह अब नहीं है। समय पर मेडिकल एड मिल जाती तो शायद। अभी पोस्टमार्टम रिर्पोट नहीं मिली है। बॉडी वहीं जिला अस्पताल में है। अदिति ने कितना सुना, कितना नहीं उसे ज्ञात नहीं। कुल मिलाकर आशय समझ में आया कि पीताम्बर अब इस दुनिया मे नहीं है और मोबाइक वाला सवार पीताम्बर था। पीताम्बर - आनंद का सबसे अच्छा दोस्त, पीताम्बर अपने सयुंक्त परिवार का सबसे बडा बेटा। उसकी लापरवाही से इस तरह चल बसा। हे, भगवान यह कैसी सुबह है? यह क्या हो रहा है? अदिति को लगा वह पागल हो जाएगी, मूच्र्छित हो जाएगी। मनुष्य सोचता है बस यहीं वह क्षण है जब वह चेतना खो देगा और वह पाता है क्षण गुजर गया और चेतना बनी हुई है। कहां मिलती है यह मजबूती ? दृढता ? सब कुछ सुनकर अदिति की चेतना लुप्त नहीं हुई बल्कि चीख निकल गई। अवस्थी जी अभी कचहरी नहीं गए थे। लॉन की धूप में बैठकर किसी मुवक्किल की फाइल देख रहे थे। अदिति की डरावनी चीख सुनकर भीतर की ओर झपटे, कहीं आनंद को तो कुछ। मनुष्य अपने आप से नहीं छूट पाता किसी क्षण। अवस्थी जी बरामदा फ़िर छोटा गलियारा पार कर अदिति के पास आए - ''
क्या हुआ?
'' अदिति के चेहरे
पर राख पुती हुई थी - अदिति की आंखे वेग से भर आई। टप-टप आंसू चूने लगे वह खूब जोर से रो लेना चाहती है। रोना इस समय उसकी जरूरत है वरना भीतर का भारीपन प्राण ले लेगा। अवस्थी जी, पत्नी को हिचकते-सिसकते हुए देखते रहे। वे स्वयं भी पछाड सा खा रहे थे। उन्हे भी पीताम्बर की मौत का जबर्दस्त आघात लगा। अदिति की चीख सुनकर मुवक्किल बरामदे में आ गया।उसने वहीं से पुकारा। ''
क्या हुआ साहब?
बच्चा तो ठीक है?
'' उसे मालूम है
आनंद बाहर पढता है। अवस्थी जी ने माथे पर लाल चंदन का गोल टीका लगाए हुए गर्दन तक लम्बे-झल्ले केशों वाले मुवक्किल को बडी आस्था से देखा - यह ठीक कह रहा है। जन्म और मरण के समय को नहीं टाला जा सकता। मनुष्य कारण बनता है, कर्ता ईश्वर है। पीताम्बर की मृत्यु के लिए वहीं क्षण निर्धारित था। मुवक्किल फिर जल्दी ही चला गया। अवस्थी जी उसे विदा कर अंदर आए। अदिति बिछावन पर ढेर पडी थी। उसे महसूस हो रहा था उसके भीतर मृत्युगंध तेजी से भरती जा रही है और सांस लेना दूभर हो रहा है। अब शायद यह मृत्युगंध उसकी आत्मा को जीवन भर विषाक्त करती रहेगी। वह अदिति के समीप बैठ गए। आंखों के ऊपर से उसकी बांह हटाई, देखा आंसुओं का सैलाब आया हुआ है। अब ये गडबड क़रेगी। अपराधी कई बार अपनी हडबडाहट घबराहट और बेवकूफी के कारण पकडा जाता है। वे उसे समझाने लगे - '' अदिति बात सुनो। खुद को संभालो। पीताम्बर को लेकर मै भी बहुत दुखी हूं। सच मानो तो बहुत पछता रहा हूं। हमें उसकी मदद करनी चाहिए थी। मैं पता नहीं इतना असंवेदनशील कैसे हो गया था? पर अब तो कुछ बदला नहीं जा सकता। भूल जाओ कल क्या हुआ था। खबर सुन कर आनंद आएगा और तुम्हारी दशा बहुत बुरी है। तुम्हारी दशा भेद खोल देगी और हम आनंद की नजरों मे गिर जाएंगे। आनंद हमारा एक ही बेटा है। सम्भालो अपने आप को। समझ लो यही होना था। आनंद से दुर्घटना का जिक्र तक नहीं करना है। सुन रही हो न। '' अदिति सुन रही थी पर बोलने की स्थिति में नहीं थी। वह अनवरत रोती रही। अवस्थी वहां से उठ गए। रो लेना ही अदिति का उपचार होगा। बहुत रो लेने के बाद अदिति कुछ सोचने की स्थिति में आई। उसे सबसे पहले आनंद का ख्याल आया-आनंद। हां वह आएगा। पीताम्बर उसका प्रिय मित्र था। वह खुद को संभालेगी। आनंद की नजरों में नहीं गिर सकती। फिर तो जीना दूभर हो जाएगा। पीताम्बर के घर का दृश्य बडा करुण था शव यात्रा की तैयारी चल रही थी। बडे-बडे टांकों से सिली पीताम्बर की देह। मरने के बाद भी दुर्गति हुई। आंगन के कोने में चोर की तरह सिकुड कर बैठी असामान्य रूप से खामोश, बावरी सी दिख रही पीताम्बर की मां, न रो रही थी, न बोल रही थी। निसहायता-निरूपायता की पराकाष्ठा। हवा में फुसफुसाहटें टंगी हुई थी - पोस्टमार्टम रिर्पोट में मृत्यु का कारण अधिक रक्त स्त्राव और गलन बताया गया है। ''मृत्यु
ग्यारह के आसपास हुई है। एक्सीडेन्ट करने वाले अस्पताल पहुंचा देते तो बच
जाता।'' फुसफुसाहटें सुनकर बजबजाती अदिति के फेफडे फ़ाडने लगी, अर्थात पीताम्बर को बचाया जा सकता था। कोशिश की जा सकती थी। संतोष रहता गलती हुई पर उसे बचा भी लिया। हे भगवान ये क्या हो गया? क्या मैं डर कर निष्क्रिय बैठी रही? मैने उसकी मदद करने का हठ क्यों नही किया। और अवस्थी जी कुछ सुनने को तैयार नहीं थे। यहीं आनंद के साथ हो और कोई मदद न करे तो। तो। अदिति इसके आगे नहीं सोच पाई। उसने अपनी तप्त झनझना रही कनपटियां थाम लीं। वह जकडन सी महसूस कर रही थी। शिथिलता उसके अवयवों में छाती जा रही थी। अदिति के भीतर रुलाई भंवर की तरह उमडने-घुमडमे लगी। रात साढे नौ के लगभग आनंद का फोन फिर आया - अदिति को आनंद के फोन की बहुत प्रतीक्षा रहती है और हल्लो। आनंद जो अपने विशेष अंदाज में बोलता है सुनते ही अदिति स्फूर्त हो उठती है।आज वह आनंद का स्वर सुनकर शिथिल पड ग़ई।आनंद से क्या कहे? '' मां मैने कल फोन लगाया था। तुम नहीं मिली बहुत घूमती हो न। अच्छा बताओ पीताम्बर मिलने आया? पापा को टाई पसंद आई। लेटेस्ट है। कहना अपनी आदिम युग की टाई को अब रेस्ट दें। क्या बना कर भेजोंगी? खूब सारी चीजें। कुछ पैसे भी।'' अदिति को नही सूझ पडा क्या कहें? हाँ-हूं कहती रही। यही होता है आनंद बहुत सी बातें एक साथ कहने लगता है और उसे हुंकारी भरने का भी मौका नहीं देता पर आज तो सचमुच अदिति के पास कहने को कुछ नहीं था। ''
क्या बात है मां?
बोल नहीं रही हो?
'' कुछ प्रॉब्लम है।
आनंद पूछ रहा था। अब अदिति को आनंद का सामना करना है। खुद का सामना करने की ताब नहीं 'आनंद का सामना कैसे करेगी? अदिति को आज रात नींद नहीं आई। सुबह दैनिक के अंतिम पृष्ठ पर पीताम्बर की दुर्घटना का समाचार सचित्र छपा था। घटनास्थल पर औंधा पडा पीताम्बर, मोटर साइकिल और चित्र के ऊपरी दाहिने कोने में इनसेट में उसकी छोटी सी तस्वीर। अंधे मोड सडक़ की जर्जर दशा ने एक बलि और ली एक्सीडेन्ट करने वाले अब पकडे नहीं जा सके। इसे पुलिस और प्रशासन की कमी ही कहां जा रहा है। मृतक की मृत्यु का कारण अधिक रक्त स्त्राव और शीत लहर का प्रभाव बताया गया। समय पर चिकित्सा सुविधा दिलाई जाती तो शायद किसी घर का चिराग असमय न बुझता। समाचार आगे भी था पर अदिति की दृष्टि स्थिर नहीं रह पा रही है। उसके हाथों में अखबार कांप रहा है। दुर्घटना, हत्या, बलात्कार की एक न एक खबर इस अंतिम पृष्ठ पर रहती हैं। अदिति उन्हें पढती है और चौकती तक नहीं थी। मनुष्य इतना असंवेदनशील और साहसी हो गया है कि कुछ भी असामान्य अब उसे चौंकाता नहीं। अब पीताम्बर की खबर पढक़र वह समझ पा रही है इन खबरो में हाहाकार और त्रास छिपा होता है। कितनी मारक और जानलेवा होती है ऐसी खबरें। ''
ये देखो। अदिति ने पीताम्बर
की तस्वीर पर ऊंगली रखी। ''
अवस्थी जी उस बीच के पृष्ठ का सम्पादकीय पढ रहे थे। अखबार को ये दोनो इसी
तरह बांट कर एक साथ पढते थे। अवस्थी जी ने अदिति के चेहरे को लक्ष्य किया - आंखों के नीचे कालिमा आंखे लाल सूजी हुई चेहरा रुग्ण। '' अदिति अपने आप को संभालो तुम बीमार लग रही हो।'' आनंद आज शाम की ट्रेन से चलकर कल सुबह दस-ग्यारह बजे तक पहुंच जाएगा। वह तुम्हे इस तरह देखेगा तो क्या कहेगा? जानती हो कितना भावुक लडक़ा है। क्या हम चाहते थे ऐसा हो जाए? पीताम्बर के साथ क्या किसी के भी साथ? हमने सहायता नहीं की हमसे गलती हुई पर अब तो कुछ नहीं किया जा सकता। हम किसी का बुरा तो चाहते नहीं है। बस बुरा हो गया। क्षिपा एक्सप्रेस दो घंटे विलंब से पहुंची।आनंद साढे बारह बजे दोपहर घर पहुंचा। उसका मित्र नीलेश जो उसके साथ आया था उसे घर तक पहुंचाने आया। नीलेश का घर इसी शहर में है। स्कूलिंग यहीं से की है पीताम्बर-नीलेश-आनंद ने। आनंद किसी असाध्य रोग का रोगी प्रतीत होता था। दो दिन से शेव नहीं की थी, नहाया नहीं था, खाया नहीं था। बहुत रोने से ज्वर चढ आया था। पुत्र की दशा देख अदिति का जी बैठने लगा। कितना कमजोर हो गया है। कितना दुर्बल टूटा हुआ, निराश, क्षीण यद्यपि आनंद जब भी आता है तो अदिति को दुबला ही लगता है। वह परेशान हो जाती है - आनंद क़ितने दुबले हो गए हो। ठीक से खाते नहीं क्या? जानती हो मां, मेस का खाना, अब तुम खूब खिलाओ-पिलाओ तो मेरी रिकवरी हो। आनंद हंसता। और आज तो आनंद ऐसा क्षीण लग रहा था कि अदिति का जी बैठने लगा। ''
ये क्या हाल बना रखा है
आनंद? ''
अदिति जैसे-तैसे पूछ सकी। घर मे चहकते हुए प्रवेश करने वाला आनंदी आनंद लस्त-पस्त है। वह कुर्सी की पुश्त से पीठ टिका निढाल हो गया - ये क्या हो गया मां? आनंद की दशा देख अदिति को लगा वह चीख मार कर रो देगी। आनंद शिथिल, आंखे मूंदे बैठा है।उसकी पूरी देह लहक रही थी। वह असहनीय पीडा और छटपटाहट से भरा हुआ था। ''
बेटा तुम लेट जाओ तो आराम
मिले ''
अदिति कहने लगी।आनंद ने आंखे मूंदे हुए ही नकार में सिर हिला दिया। इस प्रश्न के लिए अदिति प्रस्तुत नहीं थी। इस प्रश्न का उत्तर उसे मालूम है पर दे नहीं सकती। '' मै उन्हे पा जाऊं तो तडपा-तडपा कर मारूं।'' आनंद ने आंखे खोली। उसकी आंखे आक्रोश और ताप से जल रही थीं। उन आंखो का आक्रोश और घृणा देख अदिति दहल गई। नीलेश कहने लगा - ''
यही तो हो नहीं पाता। किसी
की जान चली जाती है और जान लेने वाले छुट्टे घूमते रहते है। पर,
तुम खुद को संभालो
आनंद। इस तरह पीताम्बर तो वापस तो नहीं आ सकता। मैं चलता हूं फिर
पीताम्बर के घर भी जाना है। '' कार? अदिति के भीतर तक सनसनाहट भर गई। आनंद किसी तरह जान जाए यही वह अभिशप्त कार है तो शायद जिंदगी भर कार को हाथ न लगाए। यद्यपि इसे यह कार बहुत प्रिय है। जब भी आता कहता मुझे यह कार बहुत पसंद है और आप लोग इसकी केयर नहीं करते।आज मैं इसे धोऊंगा खुद। ''
ठीक है।मै बाद मे आता हूं। ''
नीलेश चला गया। आनंद छटपटाया जा रहा था और उसका छटपटाना अदिति की छटपटाहट को शीर्ष पर ले जा रहा था। पीताम्बर के घर से लौटने के बाद आनंद अत्यधिक व्याकुल दिख रहा था। उसकी आंखे बता रही थी वह वहां रोया होगा। अवस्थी जी आनंद की दशा देखकर ग्लानि से भरे हुए है। वे अनायास आर्त्ममंथन करने लगे। काश मैने पीताम्बर की सहायता की होती। वह बच जाता। एक जान बचाने को जो सुख मिलता है वह मेरे लिए संजीवनी शक्ति बन जाता। मै खुद से इस तरह आंख न चुरा रहा होता। हर क्षण पकडे ज़ाने का भय, भेद खुलने का आतंक। अपराध बोध अब जिंदगी भर चैन से जीने नहीं देगा। यदि लोगो को किसी तरह मेरे आचरण का पता चल गया तो लोग मुझे कितनी नफरत और हिकारत से देखेगे। और आनंद की क्या प्रतिक्रिया होगी? वह शायद जीवन भर मुझसे बात न करें। अवस्थी जी को मस्तिष्क की शिराओं में अत्यधिक दबाव अनुभव हो रहा था। उन्हे लग रहा है कि किसी क्षण उनके मस्तिष्क की कोई शिरा फटेगी और उन्हे हेमरेज हो जाएगा। गलती को छिपाना गलती करने से अधिक दु:खदायी हो जाता है अवस्थी जी शिद्दत से महसूस कर रहे है। अदिति की भी वहीं दशा है जो अवस्थी जी की है। डाक्टर ने कहा है शॉक लगने के कारण आनंद को ज्वर आ गया है। ठीक हो जाएगा तथापि वह आनंद के लिए अत्यधिक चिंतित है। वह चाहती है आनंद, पीताम्बर के अलावा कुछ और बात करे और आनंद को पीताम्बर की छोटी सी छोटी महत्वहीन बातें भी शिद्दत से याद आ रही हैं। पीताम्बर बहुत सेंटीमेंटल
लडक़ा था मां।
मै शायद तुम्हे पहले भी
बता चुका हूं।
एक बार हम तीन
लडक़े मोबाइक से कहीं जा रहे थे।
सदानंद चला रहा
था।
गली के मोड पर एक पैदल
चले आ रहे आदमी से मोबाइक टकरा गई।
टक्कर हल्की सी
थी क्योंकि आदमी गिरने के तुरंत बाद उठ गया था।
पीताम्बर मोबाइक
से उतर कर उस आदमी के पास खडा हो गया और मै व सदानंद डर के मारे मोबाइक
भगा ले गए।
उस आदमी ने पीताम्बर को
पकड लिया और उसके सारे पैसे छीन लिए।
छात्रावास आ कर
पीताम्बर बोला मेरे एक सौ बीस रुपये भले ही चले गए पर मेरे दिल पर कोई
बोझ नहीं है और तुम दोनो बेचैन दिख रहे हो।
मै और सदानंद
सचमुच परेशान थे।
वह इतना सहिष्णु
था सबकी मदद करता था और उसकी मदद किसी ने नहीं की।
मां ऐस क्यों हुआ? आनंद पूरी तरह से पीताम्बर
के ख्यालों मे डूबा हुआ है -
''
पीताम्बर को पढने का
बहुत शौक है।
वह देर रात तह पढता था,
एक बार मैं सुबह उठा तो देखा वह उदास है।
कहने लगा कल एक
छोटी सी स्टोरी पढी उसी ने उदास कर दिया।
तुम वह स्टोरी
सुनोगी मां,
मुझे अच्छा लगेगा।
'' '' एक अस्पताल में दो रोगी एडमिट थे। दोनो डेथ बेड पर थे और आमने-सामने उनके बेड थे। पहले का बेड खिडक़ी के पास था और वह बेड पर बैठ कर बाहर का दृश्य देख सकता था। दूसरे का बेड खिडक़ी की विपरीत दिशा में था। उसे अस्थियों की गंभीर बीमारी थी और वह उठ-बैठ नहीं सकता था। वह बेड पर लेटा रहता था। पहला खिडक़ी से बाहर दिखने वाले दृश्य का वर्णन कर दूसरे को सुनाता - बाहर का मौसम सुहाना है। क्यारियों में बहुत से फूल खिले है। आज पीले फूल अधिक दिखाई दे रहे है। घास बहुत हरी और मुलायम है। आसमान उजला है। चिडियां चहक रही है। बच्चे स्कूल जा रहे है। चारों ओर जीवन है। यह सुनकर दूसरा उत्प्रेरित होता था। वह सोचता उसका जीवन अभी खत्म नहीं हुआ है। वह एक दिन ठीक हो जाएगा और जियेगा। एक दिन दूसरे ने देखा पहला रात के किसी प्रहर मे मर गया और उसका शव बेड पर पडा है। नर्स आई और उसकी बॉडी हटवाने के प्रबन्ध मे लग गई। दूसरा बहुत दुखी था। अब उसे उन दृश्यों का वर्णन कौन करके सुनाएगा जो उसमे जीवन के प्रति विश्वास को जगाते थे। वह दुखी भाव से नर्स से बोला - '' सिस्टर मुझे खिडक़ी के पास
वाले बेड पर शिफ्ट कर दीजिए।''
नर्स ने वैसा ही किया- उसने नर्स से कर्हा '' सिस्टर ख़िडक़ी के
बाहर बगीचा हुआ करता था। फूलों से लदी
क्यारियां हुआ करती थी। '' आनंद सहसा चुप हो गया।अदिति को लगा आज इस क्षण सब कुछ थम गया है। सब कुछ गति विहीन हो गया है। आनंद, अदिति को ये कहानी पहले कभी सुनाता तब वह चमत्कृत होकर कहती, बहुत इमोशनल स्टोरी है।आज नहीं कह सकी। अब सब कुछ बदल गया है। इस दुर्घटना ने सब कुछ बदल दिया है - भाव, संबंध, शब्द, अर्थ, मन:स्थिति। अदिति को आनंद भी बदला हुआ नजर आ रहा है। आनंद का प्रयोजन भी। आनंद ने ये कहानी किस संदर्भ में सुनाई? मुझे तो लक्ष्य नहीं कर रहा है? इसे कुछ भान तो नहीं हो गया? अदिति को लगा उसके भीतर जो थरथराहट भरी हुई है वह कभी नहीं थमेगी। उसके भीतर का चोर पंजे खोल रहा है। उसे एकाएक आनंद से डर लगने लगा है। अदिति को आश्चर्यजनक रूप से चुप और मलिन देखकर आनंद को अपनी गलती का अहसास हुआ, '' सॉरी मां,
यह स्टोरी सुनाने का शायद यह सही टाइम नहीं था।तुम पहले ही परेशान हो
मैने और दुखी कर दिया।'' आनंद की आंखे जल रही है। उसने आंखे मूंद लीं जैसे इस दुनिया को देखना नही चाहता। आनंद का मन बहलाने के लिए अदिति कुछ अच्छी बातें करना चाहती है सोचना चाहती है पर उसे कोई अच्छी बात सूझ नहीं रही है। उसके भीतर तक पैठ चुकी मृत्युगंध उसे कुछ भी सोचने नहीं दे रही है। अब शायद वह कभी भी कोई अच्छी बात नहीं सोच पाए। | पीछे | |
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