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मृत्युगंध - 2

सुबह अदिति ने पीताम्बर के घर फोन किया - उधर से हलो के साथ सामूहिक रूदन का स्वर सुनाई दियाअदिति विचलित हो गई तो क्या यहां भी कुछ अघट घटा है? इन दिनों अशुभ ही सुनने को क्यो मिल रहा हैशायद इसी को कहा जाता है खराब समय चल रहा हैअदिति ने अपनी विचलन को साधते हुए उधर से आ रहे स्वर को पकडा -

आनंद की मदर बोल रही हैंमैं पीताम्बर का चाचा पीताम्बर कल शाम बाइक पर आपके घर के लिए निकला थारास्ते में एक्सीडेन्ट हो गयावह अब नहीं हैसमय पर मेडिकल एड मिल जाती तो शायदअभी पोस्टमार्टम रिर्पोट नहीं मिली हैबॉडी वहीं जिला अस्पताल में हैअदिति ने कितना सुना, कितना नहीं उसे ज्ञात नहींकुल मिलाकर आशय समझ में आया कि पीताम्बर अब इस दुनिया मे नहीं है और मोबाइक वाला सवार पीताम्बर था पीताम्बर - आनंद का सबसे अच्छा दोस्त, पीताम्बर अपने सयुंक्त परिवार का सबसे बडा बेटाउसकी लापरवाही से इस तरह चल बसाहे, भगवान यह कैसी सुबह है? यह क्या हो रहा है? अदिति को लगा वह पागल हो जाएगी, मूच्र्छित हो जाएगीमनुष्य सोचता है बस यहीं वह क्षण है जब वह चेतना खो देगा और वह पाता है क्षण गुजर गया और चेतना बनी हुई हैकहां मिलती है यह मजबूती ? दृढता ? सब कुछ सुनकर अदिति की चेतना लुप्त नहीं हुई बल्कि चीख निकल गईअवस्थी जी अभी कचहरी नहीं गए थेलॉन की धूप में बैठकर किसी मुवक्किल की फाइल देख रहे थेअदिति की डरावनी चीख सुनकर भीतर की ओर झपटे, कहीं आनंद को तो कुछ मनुष्य अपने आप से नहीं छूट पाता किसी क्षणअवस्थी जी बरामदा फ़िर छोटा गलियारा पार कर अदिति के पास आए -

'' क्या हुआ? '' अदिति के चेहरे पर राख पुती हुई थी -
''
वह। वह। मोबाइक वाला लडक़ा। पीताम्बर था। हमसे मिलने आ रहा था। नो मोर।''
''
तुम होश मे तो हो? '' उन्होने अदिति का चेहरा थपथपाया।
हूं
''
अब चुप रहो। चुप। कल शाम क्या हुआ हम नहीं जानते।'' अवस्थी जी ने लगभग फुसफुसाते हुए कहा।
''
क्यों हो गया यह सब? ''
''
चुप। कोई बाहर बैठा है मेरे पास।''
''
हम कुछ कर सकते थे।''
''
चुप।''

अदिति की आंखे वेग से भर आईटप-टप आंसू चूने लगे वह खूब जोर से रो लेना चाहती है रोना इस समय उसकी जरूरत है वरना भीतर का भारीपन प्राण ले लेगाअवस्थी जी, पत्नी को हिचकते-सिसकते हुए देखते रहेवे स्वयं भी पछाड सा खा रहे थेउन्हे भी पीताम्बर की मौत का जबर्दस्त आघात लगाअदिति की चीख सुनकर मुवक्किल बरामदे में आ गयाउसने वहीं से पुकारा

'' क्या हुआ साहब? बच्चा तो ठीक है? '' उसे मालूम है आनंद बाहर पढता है।
अवस्थी जी बरामदे की ओर पलटे -  आनंद ठीक है। उसका दोस्त है पीताम्बर। आजकल यहां आया हुआ है। कल एक्सीडेन्ट में चल बसा। अवस्थी जी का स्वर प्रतिक्षण डूबता जा रहा है।
''
शिव-शिव। देखिए तो मौत उसे कहां से कहां खींच लाई। वरना यहां नहीं आता। जन्म और मृत्यु के समय को कोई टाल नहीं सकता साहब। जिस स्थान पर होना है होता है ज़न्मने और मरने को कोई नहीं रोक सकता। ''

अवस्थी जी ने माथे पर लाल चंदन का गोल टीका लगाए हुए गर्दन तक लम्बे-झल्ले केशों वाले मुवक्किल को बडी स्था से देखा - यह ठीक कह रहा हैजन्म और मरण के समय को नहीं टाला जा सकतामनुष्य कारण बनता है, कर्ता ईश्वर हैपीताम्बर की मृत्यु के लिए वहीं क्षण निर्धारित थामुवक्किल फिर जल्दी ही चला गयाअवस्थी जी उसे विदा कर अंदर आएअदिति बिछावन पर ढेर पडी थी उसे महसूस हो रहा था उसके भीतर मृत्युगंध तेजी से भरती जा रही है और सांस लेना दूभर हो रहा हैअब शायद यह मृत्युगंध उसकी आत्मा को जीवन भर विषाक्त करती रहेगीवह अदिति के समीप बैठ गए आंखों के ऊपर से उसकी बांह हटाई, देखा आंसुओं का सैलाब आया हुआ हैअब ये गडबड क़रेगीअपराधी कई बार अपनी हडबडाहट घबराहट और बेवकूफी के कारण पकडा जाता हैवे उसे समझाने लगे -

'' अदिति बात सुनो। खुद को संभालो। पीताम्बर को लेकर मै भी बहुत दुखी हूं। सच मानो तो बहुत पछता रहा हूं। हमें उसकी मदद करनी चाहिए थी। मैं पता नहीं इतना असंवेदनशील कैसे हो गया था? पर अब तो कुछ बदला नहीं जा सकता। भूल जाओ कल क्या हुआ था। खबर सुन कर आनंद आएगा और तुम्हारी दशा बहुत बुरी है। तुम्हारी दशा भेद खोल देगी और हम आनंद की नजरों मे गिर जाएंगे। आनंद हमारा एक ही बेटा है। सम्भालो अपने आप को। समझ लो यही होना था। आनंद से दुर्घटना का जिक्र तक नहीं करना है। सुन रही हो न। ''

अदिति सुन रही थी पर बोलने की स्थिति में नहीं थीवह अनवरत रोती रही अवस्थी वहां से उठ गएरो लेना ही अदिति का उपचार होगाबहुत रो लेने के बाद अदिति कुछ सोचने की स्थिति में आईउसे सबसे पहले आनंद का ख्याल आया-आनंदहां वह आएगापीताम्बर उसका प्रिय मित्र थावह खुद को संभालेगी आनंद की नजरों में नहीं गिर सकती फिर तो जीना दूभर हो जाएगा

पीताम्बर के घर का दृश्य बडा करुण था शव यात्रा की तैयारी चल रही थीबडे-बडे टांकों से सिली पीताम्बर की देहमरने के बाद भी दुर्गति हुई आंगन के कोने में चोर की तरह सिकुड कर बैठी असामान्य रूप से खामोश, बावरी सी दिख रही पीताम्बर की मां, न रो रही थी, न बोल रही थी निसहायता-निरूपायता की पराकाष्ठाहवा में फुसफुसाहटें टंगी हुई थी - पोस्टमार्टम रिर्पोट में मृत्यु का कारण अधिक रक्त स्त्राव और गलन बताया गया है

''मृत्यु ग्यारह के आसपास हुई है। एक्सीडेन्ट करने वाले अस्पताल पहुंचा देते तो बच जाता।''
''
लोग कितने क्रूर और खुदगर्ज होते जा रहे हैं। ''
''
शिव-शिव।''
''
हे नारायण।''

फुसफुसाहटें सुनकर बजबजाती अदिति के फेफडे फ़ाडने लगी, अर्थात पीताम्बर को बचाया जा सकता थाकोशिश की जा सकती थी संतोष रहता गलती हुई पर उसे बचा भी लियाहे भगवान ये क्या हो गया? क्या मैं डर कर निष्क्रिय बैठी रही? मैने उसकी मदद करने का हठ क्यों नही कियाऔर अवस्थी जी कुछ सुनने को तैयार नहीं थेयहीं आनंद के साथ हो और कोई मदद न करे तोतोअदिति इसके आगे नहीं सोच पाईउसने अपनी तप्त झनझना रही कनपटियां थाम लींवह जकडन सी महसूस कर रही थी शिथिलता उसके अवयवों में छाती जा रही थीअदिति के भीतर रुलाई भंवर की तरह उमडने-घुमडमे लगीरात साढे नौ के लगभग आनंद का फोन फिर आया - अदिति को आनंद के फोन की बहुत प्रतीक्षा रहती है और हल्लो आनंद जो अपने विशेष अंदाज में बोलता है सुनते ही अदिति स्फूर्त हो उठती हैआज वह आनंद का स्वर सुनकर शिथिल पड ग़ईआनंद से क्या कहे?

'' मां मैने कल फोन लगाया था। तुम नहीं मिली बहुत घूमती हो न। अच्छा बताओ पीताम्बर मिलने आया? पापा को टाई पसंद आई। लेटेस्ट है। कहना अपनी आदिम युग की टाई को अब रेस्ट दें। क्या बना कर भेजोंगी? खूब सारी चीजें। कुछ पैसे भी।''

अदिति को नही सूझ पडा क्या कहें? हाँ-हूं कहती रही यही होता है आनंद बहुत सी बातें एक साथ कहने लगता है और उसे हुंकारी भरने का भी मौका नहीं देता पर आज तो सचमुच अदिति के पास कहने को कुछ नहीं था

'' क्या बात है मां? बोल नहीं रही हो? '' कुछ प्रॉब्लम है। आनंद पूछ रहा था।
''
आनंद। पीताम्बर रोड एक्सीडेन्ट में कल रात। ''
''
क्या हुआ उसे? '' अदिति समझ रही थी आनंद इसी तरह चीखेगा।
''
वह नहीं रहा। ''
''
मां, प्लीज। ''
''
वह नहीं रहा। ''
''
मां मैं क्या करूं? '' आनंद का चहकता स्वर चीख में बदला, फिर मंद पड ग़या।
''
होनी को कोई भी नहीं टाल सकता बेटे। मैं और तुम्हारे पिता पीताम्बर के घर गए थे।''
''
ओह मां। ये तुमने अच्छा किया। तुम कल भी उसके घर चली जाना। मेरी खातिर। पापा को समय न होगा पर तुम तो कार चला लेती हो न। पीताम्बर की मां को मेंटल सर्पोट मिलेगा। मै कल ही क्षिपा एक्सप्रेस से चल पडूंग़ा।''
''
रिजर्वेशन? ''
''
तुम क्या सोचती हो ऐसे समय में मुझे रिजर्वेशन का इंतजार करना चाहिए? ''

अब अदिति को आनंद का सामना करना है खुद का सामना करने की ताब नहीं 'आनंद का सामना कैसे करेगी? अदिति को आज रात नींद नहीं आईसुबह दैनिक के अंतिम पृष्ठ पर पीताम्बर की दुर्घटना का समाचार सचित्र छपा थाघटनास्थल पर औंधा पडा पीताम्बर, मोटर साइकिल और चित्र के ऊपरी दाहिने कोने में इनसेट में उसकी छोटी सी तस्वीरअंधे मोड सडक़ की जर्जर दशा ने एक बलि और ली एक्सीडेन्ट करने वाले अब पकडे नहीं जा सकेइसे पुलिस और प्रशासन की कमी ही कहां जा रहा हैमृतक की मृत्यु का कारण अधिक रक्त स्त्राव और शीत लहर का प्रभाव बताया गयासमय पर चिकित्सा सुविधा दिलाई जाती तो शायद किसी घर का चिराग असमय न बुझतासमाचार आगे भी था पर अदिति की दृष्टि स्थिर नहीं रह पा रही हैउसके हाथों में अखबार कांप रहा हैदुर्घटना, हत्या, बलात्कार की एक न एक खबर इस अंतिम पृष्ठ पर रहती हैंअदिति उन्हें पढती है और चौकती तक नहीं थीमनुष्य इतना असंवेदनशील और साहसी हो गया है कि कुछ भी असामान्य अब उसे चौंकाता नहींअब पीताम्बर की खबर पढक़र वह समझ पा रही है इन खबरो में हाहाकार और त्रास छिपा होता हैकितनी मारक और जानलेवा होती है ऐसी खबरें

'' ये देखो। अदिति ने पीताम्बर की तस्वीर पर ऊंगली रखी। '' अवस्थी जी उस बीच के पृष्ठ का सम्पादकीय पढ रहे थे। अखबार को ये दोनो इसी तरह बांट कर एक साथ पढते थे।
ओह उन्होने चश्मा उतार कर हाथ में ले लिया -  '' सचमुच बहुत बुरा हुआ। बहुत खूबसूरत और होनहार बच्चा था।'' अवस्थी जी के मुंह से सर्द आह निकली। दु:ख उन्हें फेंट रहा था। अपराध बोध वार कर रहा है। आत्मग्लानि हो रही है। कुछ कर सकते थे। अब कुछ नहीं कर सकते।
ये क्या हो गयाअदिति अब जिंदगी भर शायद एक यहीं वाक्य दोहरातै रहेगी।

अवस्थी जी ने अदिति के चेहरे को लक्ष्य किया - आंखों के नीचे कालिमा ंखे लाल सूजी हुई चेहरा रुग्ण

'' अदिति अपने आप को संभालो तुम बीमार लग रही हो।'' आनंद आज शाम की ट्रेन से चलकर कल सुबह दस-ग्यारह बजे तक पहुंच जाएगा। वह तुम्हे इस तरह देखेगा तो क्या कहेगा? जानती हो कितना भावुक लडक़ा है। क्या हम चाहते थे ऐसा हो जाए? पीताम्बर के साथ क्या किसी के भी साथ? हमने सहायता नहीं की हमसे गलती हुई पर अब तो कुछ नहीं किया जा सकता। हम किसी का बुरा तो चाहते नहीं है। बस बुरा हो गया।

क्षिपा एक्सप्रेस दो घंटे विलंब से पहुंचीआनंद साढे बारह बजे दोपहर घर पहुंचाउसका मित्र नीलेश जो उसके साथ आया था उसे घर तक पहुंचाने आयानीलेश का घर इसी शहर में है स्कूलिंग यहीं से की है पीताम्बर-नीलेश-आनंद नेआनंद किसी असाध्य रोग का रोगी प्रतीत होता थादो दिन से शेव नहीं की थी, नहाया नहीं था, खाया नहीं था बहुत रोने से ज्वर चढ या था पुत्र की दशा देख अदिति का जी बैठने लगाकितना कमजोर हो गया हैकितना दुर्बल टूटा हुआ, निराश, क्षीण यद्यपि आनंद जब भी आता है तो अदिति को दुबला ही लगता हैवह परेशान हो जाती है - आनंद क़ितने दुबले हो गए होठीक से खाते नहीं क्या जानती हो मां, मेस का खाना, अब तुम खूब खिलाओ-पिलाओ तो मेरी रिकवरी होआनंद हंसताऔर आज तो आनंद ऐसा क्षीण लग रहा था कि अदिति का जी बैठने लगा

'' ये क्या हाल बना रखा है आनंद? '' अदिति जैसे-तैसे पूछ सकी।
''
आण्टी ईसे तेज बुखार है । डाक्टर को दिखाइए। पीताम्बर की डेथ से यह पागल हुआ जा रहा है। इतना समझाया क़ुछ समझता नहीं, रिजर्वेशन जल्दी में नहीं मिला भीड बहुत थी। बैठने की भी ठीक से जगह नहीं मिली। यह रात भर का जगा है।'' नीलेश ने हाल कहा।

घर मे चहकते हुए प्रवेश करने वाला आनंदी आनंद लस्त-पस्त हैवह कुर्सी की पुश्त से पीठ टिका निढाल हो गया -  ये क्या हो गया मां? आनंद की दशा देख अदिति को लगा वह चीख मार कर रो देगीआनंद शिथिल, आंखे मूंदे बैठा हैउसकी पूरी देह लहक रही थीवह असहनीय पीडा और छटपटाहट से भरा हुआ था

'' बेटा तुम लेट जाओ तो आराम मिले '' अदिति कहने लगी।आनंद ने आंखे मूंदे हुए ही नकार में सिर हिला दिया।
''
एक्सीडेन्ट करने वाले पकडे नहीं गए? '' नीलेश पूछ रहा है।

इस प्रश्न के लिए अदिति प्रस्तुत नहीं थीइस प्रश्न का उत्तर उसे मालूम है पर दे नहीं सकती

'' मै उन्हे पा जाऊं तो तडपा-तडपा कर मारूं।''

आनंद ने आंखे खोलीउसकी आंखे आक्रोश और ताप से जल रही थींउन आंखो का आक्रोश और घृणा देख अदिति दहल गईनीलेश कहने लगा -

'' यही तो हो नहीं पाता। किसी की जान चली जाती है और जान लेने वाले छुट्टे घूमते रहते है। पर, तुम खुद को संभालो आनंद। इस तरह पीताम्बर तो वापस तो नहीं आ सकता। मैं चलता हूं फिर पीताम्बर के घर भी जाना है। ''
''
मुझे ले लेना। '' आनंद बोला।
''
कैसे जाओगे? तुम्हे तेज बुखार है। '' नीलेश से पहले अदिति बोल पडी।
''
मैं जाऊंगा। नीलेश प्लीज मुझे ले लेना। मैं बीमार हूं, कार चलाना नहीं जानता। वरना मैं खुद चला जाता प्लीज। ''

कार? अदिति के भीतर तक सनसनाहट भर गईआनंद किसी तरह जान जाए यही वह अभिशप्त कार है तो शायद जिंदगी भर कार को हाथ न लगाएयद्यपि इसे यह कार बहुत प्रिय हैजब भी आता कहता मुझे यह कार बहुत पसंद है और आप लोग इसकी केयर नहीं करतेआज मैं इसे धोऊंगा खुद

'' ठीक है।मै बाद मे आता हूं। '' नीलेश चला गया।
''
पर आनंद पहले तुम डाक्टर को दिखाओ ट्रीटमेंट लो। '' अदिति विह्ल हो रही है।
''
डाक्टर को दिखा लूंगा, पर मै पीताम्बर के घर तो जाऊंगा ही। तुम समझ नहीं रही हो मां। पीताम्बर मेरे लिए क्या था? उसने मुझे किस-किस तरह से संभाला था। मुझे नहीं मालूम मै उसकी मदर का सामना कैसे करूंगा। मेरे लिए यह बहुत कठिन होगा।''
''
तुम अपने आप को संभाले बेटा। ''
''
मां, मै खुद को बहुत अकेला पा रहा हूं। लोग इस तरह कठोर कैसे होते जा रहे है? इतने निर्दयी कि किसी को मरता हुआ हुआ छोड क़र भाग जाते है। गलती किसी की भी रही हो पीताम्बर की ही सही उन्हे थोडा सा ठहर कर देखना तो चाहिए था, उसे अस्पताल पहुंचाना चाहिए था। तब वह बच जाता। मैं जानता हूं वह बच जाता। उसकी विल पावर बहुत स्ट्रांग थी। वह कहता था उसे सांप से और मृत्यु से बहुत डर लगता है। यदि वो होश में रहा होगा तो और खुद को मरना महसूस कर रहा होगा मां। कष्टकारी। वह मरने से डरता था। डरता था मरने से।''

आनंद छटपटाया जा रहा था और उसका छटपटाना अदिति की छटपटाहट को शीर्ष पर ले जा रहा थापीताम्बर के घर से लौटने के बाद आनंद अत्यधिक व्याकुल दिख रहा थाउसकी आंखे बता रही थी वह वहां रोया होगाअवस्थी जी नंद की दशा देखकर ग्लानि से भरे हुए हैवे अनायास आर्त्ममंथन करने लगेकाश मैने पीताम्बर की सहायता की होतीवह बच जाताएक जान बचाने को जो सुख मिलता है वह मेरे लिए संजीवनी शक्ति बन जातामै खुद से इस तरह आंख न चुरा रहा होताहर क्षण पकडे ज़ाने का भय, भेद खुलने का आतंकअपराध बोध अब जिंदगी भर चैन से जीने नहीं देगायदि लोगो को किसी तरह मेरे आचरण का पता चल गया तो लोग मुझे कितनी नफरत और हिकारत से देखेगेऔर आनंद की क्या प्रतिक्रिया होगी? वह शायद जीवन भर मुझसे बात न करेंअवस्थी जी को मस्तिष्क की शिराओं में अत्यधिक दबाव अनुभव हो रहा थाउन्हे लग रहा है कि किसी क्षण उनके मस्तिष्क की कोई शिरा फटेगी और उन्हे हेमरेज हो जाएगागलती को छिपाना गलती करने से अधिक दु:खदायी हो जाता है अवस्थी जी शिद्दत से महसूस कर रहे है अदिति की भी वहीं दशा है जो अवस्थी जी की हैडाक्टर ने कहा है शॉक लगने के कारण आनंद को ज्वर आ गया हैठीक हो जाएगा तथापि वह आनंद के लिए अत्यधिक चिंतित हैवह चाहती है आनंद, पीताम्बर के अलावा कुछ और बात करे और आनंद को पीताम्बर की छोटी सी छोटी महत्वहीन बातें भी शिद्दत से याद आ रही हैं

पीताम्बर बहुत सेंटीमेंटल लडक़ा था मां मै शायद तुम्हे पहले भी बता चुका हूंएक बार हम तीन लडक़े मोबाइक से कहीं जा रहे थेसदानंद चला रहा था गली के मोड पर एक पैदल चले आ रहे आदमी से मोबाइक टकरा गईटक्कर हल्की सी थी क्योंकि आदमी गिरने के तुरंत बाद उठ गया थापीताम्बर मोबाइक से उतर कर उस आदमी के पास खडा हो गया और मै व सदानंद डर के मारे मोबाइक भगा ले गए उस आदमी ने पीताम्बर को पकड लिया और उसके सारे पैसे छीन लिएछात्रावास आ कर पीताम्बर बोला मेरे एक सौ बीस रुपये भले ही चले गए पर मेरे दिल पर कोई बोझ नहीं है और तुम दोनो बेचैन दिख रहे होमै और सदानंद सचमुच परेशान थेवह इतना सहिष्णु था सबकी मदद करता था और उसकी मदद किसी ने नहीं कीमां ऐस क्यों हुआ?
'' क्या कहूं बेटा
किसी जन्म के कर्मो की सजा आदमी किस जन्म में भोगता है कौन जाने'' अदिति को आनंद की बातें आतंकित कर रही हैवह बहुत क्षीण स्वर में बोली
'' पिछले जन्मों का पता नहीं पर इस जन्म में पीताम्बर ने कोई पाप कर्म नहीं किया
'' आनंद अदिति को एकटक देख रहा थाअदिति ने चेहरा दूसरी ओर घुमा लियालगा आनंद की शांत और शिथिल दृष्टि उससे सवाल कर रही हैइंसान अपने भीतर के इंसान से बच सकता हैवह दृष्टि फेरे हुए ही बोली - '' इतना मत सोचो आनंद, तुम पहले ही बीमार हो''
''मेरे सोचने पर मेरा वश नहीं है मां
पीताम्बर के घर का हाहाकार मुझसे देखा नहीं गयावे लोग सह कैसे रहे है ताज्जुब है और फिर क्या मै ही परेशान हूं? तुमने अपना चेहरा देखा है कि तुम कितना परेशान हो? पापा कितने परेशान है? पीताम्बर की चाची बता रही थींतुम बहुत संवेदनशील हो तुम वहां बहुत रो रही थींतो मां मेरा तो वह सबसे अच्छा दोस्त थाउसके साथ रहने की मेरी आदत थी अब मै उस रूम में कैसे रहूंगा? सच कहूं तो पीताम्बर के मरने से अधिक मुझे दुख इस बात का कि वह किन परिस्थितियों में मराकितनी असहायता में मरा उसे सहायता नहीं मिलीवह बच जाता''
''
आनंद तुम अपनी तबियत बिगाड लोगे पीताम्बर के इस तरह जाने का मुझे सचमुच दुख है, बल्कि कहो सदमा लगा हैसहना पडता है''
'' मेरा दिल कहता है मां, अपराधी पकडे ज़ाएंगे
न भी पकडे ज़ाएं पर वे सुखी तो नहीं रहेगेइस तरह कोई किसी को मरने के लिए छोड ज़ाए तो वह सुखी नहीं रह सकता यह मेरा दावा है''

आनंद पूरी तरह से पीताम्बर के ख्यालों मे डूबा हुआ है -  '' पीताम्बर को पढने का बहुत शौक है वह देर रात तह पढता था, एक बार मैं सुबह उठा तो देखा वह उदास हैकहने लगा कल एक छोटी सी स्टोरी पढी उसी ने उदास कर दियातुम वह स्टोरी सुनोगी मां, मुझे अच्छा लगेगा''
हूं अदिति
नंद को देख रही है

'' एक अस्पताल में दो रोगी एडमिट थे। दोनो डेथ बेड पर थे और आमने-सामने उनके बेड थे। पहले का बेड खिडक़ी के पास था और वह बेड पर बैठ कर बाहर का दृश्य देख सकता था। दूसरे का बेड खिडक़ी की विपरीत दिशा में था। उसे अस्थियों की गंभीर बीमारी थी और वह उठ-बैठ नहीं सकता था। वह बेड पर लेटा रहता था। पहला खिडक़ी से बाहर दिखने वाले दृश्य का वर्णन कर दूसरे को सुनाता - बाहर का मौसम सुहाना है। क्यारियों में बहुत से फूल खिले है। आज पीले फूल अधिक दिखाई दे रहे है। घास बहुत हरी और मुलायम है। आसमान उजला है। चिडियां चहक रही है। बच्चे स्कूल जा रहे है। चारों ओर जीवन है। यह सुनकर दूसरा उत्प्रेरित होता था। वह सोचता उसका जीवन अभी खत्म नहीं हुआ है। वह एक दिन ठीक हो जाएगा और जियेगा। एक दिन दूसरे ने देखा पहला रात के किसी प्रहर मे मर गया और उसका शव बेड पर पडा है। नर्स आई और उसकी बॉडी हटवाने के प्रबन्ध मे लग गई। दूसरा बहुत दुखी था। अब उसे उन दृश्यों का वर्णन कौन करके सुनाएगा जो उसमे जीवन के प्रति विश्वास को जगाते थे। वह दुखी भाव से नर्स से बोला -

'' सिस्टर मुझे खिडक़ी के पास वाले बेड पर शिफ्ट कर दीजिए।'' नर्स ने वैसा ही किया-
दूसरा अब तक कुछ स्वस्थ हो गया था और कुछ देर के लिए बैठ सकता था। उसने बेड पर बैठकर खिडक़ी से बाहर का दृश्य देखा।वहां एक काली-भद्दी दीवार थी और कुछ नहीं था।

उसने नर्स से कर्हा  '' सिस्टर ख़िडक़ी के बाहर बगीचा हुआ करता था। फूलों से लदी क्यारियां हुआ करती थी। ''
नर्स बोली ''यहां कोई बगीचा नहीं था।''
'' पर इस बेड का मरीज बगीचे का वर्णन कर मुझे सुनाता था।''
'' असंभव, वह तो अंधा था। नर्स जोर देकर बोली। वह तुम्हारी विल पावर को बनाए रखना चाहता था। तुम्हे हताशा से बचाना चाहता था।''

आनंद सहसा चुप हो गया।अदिति को लगा आज इस क्षण सब कुछ थम गया है। सब कुछ गति विहीन हो गया है। आनंद, अदिति को ये कहानी पहले कभी सुनाता तब वह चमत्कृत होकर कहती, बहुत इमोशनल स्टोरी है।आज नहीं कह सकी। अब सब कुछ बदल गया है। इस दुर्घटना ने सब कुछ बदल दिया है - भाव, संबंध, शब्द, अर्थ, मन:स्थिति। अदिति को आनंद भी बदला हुआ नजर आ रहा है। आनंद का प्रयोजन भी। आनंद ने ये कहानी किस संदर्भ में सुनाई? मुझे तो लक्ष्य नहीं कर रहा है? इसे कुछ भान तो नहीं हो गया? अदिति को लगा उसके भीतर जो थरथराहट भरी हुई है वह कभी नहीं थमेगी। उसके भीतर का चोर पंजे खोल रहा है। उसे एकाएक आनंद से डर लगने लगा है। अदिति को आश्चर्यजनक रूप से चुप और मलिन देखकर आनंद को अपनी गलती का अहसास हुआ,

'' सॉरी मां, यह स्टोरी सुनाने का शायद यह सही टाइम नहीं था।तुम पहले ही परेशान हो मैने और दुखी कर दिया।''
चौक गई अदिति -  ''नहीं। नहीं। आनंद। बेटा मैं ठीक हूं बस तुम अच्छे हो जाओ।''
'' मै ठीक हूं मां। मुझे तो वे एक्सीडेन्ट करने वाले परेशान किए हुए है। हम लोग इन कहानियों से कब सीखेगे? एक मरणासन्न आदमी दूसरे मरणासन्न आदमी की चिंता कर रहा है। खुद मौत के द्वार पर खडा था फिर भी कुछ अच्छी बातें कर दूसरे का हौसला बनाए रखना चाहता था। चाहता था दूसरा जितने दिन जिए आशा और उत्साह के साथ जिए और यहां लोग किसी को चोटिल कर उसे मरने के लिए छोड क़र भाग जाते है। लोग काठ होते जा रहे है और एक दिन सब कुछ खत्म हो जाएगा। जब संवेदनाएं मरने लगती है तो दुनिया कायम नहीं रह सकती।''

आनंद की आंखे जल रही है। उसने आंखे मूंद लीं जैसे इस दुनिया को देखना नही चाहता। आनंद का मन बहलाने के लिए अदिति कुछ अच्छी बातें करना चाहती है सोचना चाहती है पर उसे कोई अच्छी बात सूझ नहीं रही है। उसके भीतर तक पैठ चुकी मृत्युगंध उसे कुछ भी सोचने नहीं दे रही है। अब शायद वह कभी भी कोई अच्छी बात नहीं सोच पाए।

सुषमा मुनीन्द्र
 

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