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दूसरा ताजमहल-4
कानपुर के मरीज क़ी मौत ने कई तरह के सवाल नरेन्द्र के लिये उठा दिये थे, जिनका जवाब उनसे मांगा जा रहा था, यह सब कुछ उनसे जलने वाले करा रहे थे, यह सबको पता था मगर बात तो उठ ही गई थी। नरेन्द्र इन दिनों बहुत परेशान था। उसको किसी अपने की जरूरत थी जो उसका हाल सुन उससे सच्ची हमदर्दी जता सकता। बच्चे दूर थे। नयना बुरी तरह से खफा थी। वह सुकून की तलाश में अकसर दोस्तों के पास चला जाता और जब घर लौटता नयना फोन में डूबी होती। वह परेशान सा शराब की बोतल खोलता और अकेले ही पीना शुरु कर देता, फिर धुत्त सा सोफे पर सो जाता था। सैलुलर जेब में पडा बजता रहता। यह कैफियत भी ज्यादा दिन नहीं चली। उसको किसी कॉनफ्रेन्स का बुलावा आ मिला, जिसने उपद्रव को जहां शांत किया, वहीं पर उसकी खोई प्रतिष्ठा भी उसे वापस मिल गई। चूंकि कॉनफ्रेन्स को लेकर रोज ख़बरें पत्रों में होतीं और भारत से प्रतिनिधित्व करने वाले केवल डॉक्टर नरेन्द्र कुमार थे, सो माहौल बदलते देर नहीं लगी। नयना हमेशा के लिये घर छोडने का प्लान बना चुकी थी। उसको नरेन्द्र से कोई मतलब न था, पिछले दो हफ्तों से उनके बीच कोई बात नहीं हुई थी। अपना ऑफिस वह फिलहाल अपने असिस्टेन्ट के हवाले कर चुकी थी, जिससे कहा सिर्फ इतना था कि वह महीने भर के लिये किसी बडे प्राेजेक्ट के सिलसिले में बम्बई जा रही है। यही बात नौकरों को कहते हुए उसने नरेन्द्र को सुनाई थी। बैंक जाकर लॉकर से उसने वह सारे जेवर छांट कर निकाले थे जो उसको मायके से मिले थे और स्वयं खरीदे थे। चेकबुक उसने पर्स में डाली और महीने भर का राशन पानी का इंतजाम किया। आये हुये बिल जमा करवाये। वह सब काम किया, जो उसकी आज तक की डयूटी में शामिल था। जब यह सब कर चुकी तो उसने अपनी सीट बुक कराई और अटैची में कपडे सजाने लगी। नरेन्द्र जा चुका था। हफ्ते भर बाद उसको लौटना था। उसकी भी जरूरी चीजें उसने पूरी कीं और एक दो लोगों से जरूरी मुलाकात के लिये चल पडी। रात को रविभूषण का फोन आया तो उसने बताया कि वह कल सुबह की फ्लाईट से आ रही है। फ्लाईट न और एयरलाईन्स का नाम रविभूषण ने नोट कर लिया। रविभूषण ने फोन काट कर शायद किसी को इत्तिला दी, फिर मिलाया और लम्बी बातों का सिलसिला चल पडा। दो बजे के लगभग बात खत्म हुई। फोन रख कर नयना बिस्तर पर पैर फैला कर लेट गयी। यादों का काफिला घर के कोनों से निकल कर उसकी आँखों के सामने से गुजरने लगा। शादी के आरंभ के दिन, बच्चों की पैदाइश, सास ससुर का बुढापा, बीमारी, फिर मौत, मायके का घर, भाई बहनों की मौत और अपने काम में जुडे लोगों की अच्छाईयां और बुराईयां। एकाएक खयाल कौंधा क्या बच्चे इस रिश्ते को स्वीकार कर पाएंगे? शायद वे मुझसे घृणा करने लगें। अपने डैडी से उन्हें ज्यादा हमदर्दी हो और वे नरेन्द्र की उस मित्रता को एकदम भूल जायें जो बडे ज़ाेर शोर से अपनी जूनियर डॉक्टर से हुई थी। तब घर में तनाव ही तनाव था। उस लडक़ी का विवाह मां बाप ने अगर न करा दिया होता तो आज वह मुसीबत इस घर को बांट देती। तब तो बच्चे छोटे थे, ग्यारह और तेरह साल के। वह भी काम नहीं करती थी। तब भविष्य किसी अंधकारमय गुफा की तरह डराता था। सहेलियों के हिम्मत दिलाने पर उसने पुरानी डिग्री का सर्टिफिकेट किसी फाईल से निकाला था और किसी की सिफारिश पर छोटे मोटे बिजनेस मैन का ऑफिस डेकोरेट किया था। उसके बाद काम मिलता ही गया और घर में उसकी हैसियत हर दिन मजबूत होती चली गई। नरेन्द्र को अपने सम्बन्ध टूटने का दु:ख था। वह लडक़ी कई बार नरेन्द्र से मिलने भी आई। दो साल बाद वे दोनों पति पत्नी सऊदी चले गये और नरेन्द्र दिल को बहलाने के लिये काम में रमता चला गया। आज वे सारी बातें नयना को आक्रोश से नहीं भर रही थीं, बल्कि उसको संतोष भरा विश्वास दे रही थीं कि उसने अपना गृहस्थाश्रम बखूबी निभाया। बेटे विवाह शायद वहीं करें और बस भी जायेंगे। उनमें भौतिक दौड क़ी गर्मी और रिश्तों का ठण्डापन उसने बराबर महसूस किया। मगर वह कर भी क्या सकती है, जब इंसान बदल रहा हो, सम्वेदनाएं मूर्खता समझी जाने लगें तब? अपने बालों को रंग करते हुए एकाएक नयना के हाथ रुक गये। शंका का गर्म थपेडा फूलों भरे बाग में दाखिल होकर उससे पूछने लगा कि अगर यह सब कुछ छलावा साबित हुआ और रवि भी नरेन्द्र की तरह निकला तो वह क्या करेगी? क्या तब वह अकेलापन सह पाएगी? इस उम्र में सम्मोहन का क्या कोई तर्क है? क्या यह वास्तविकता है जिसके आधार पर वह सब कुछ छोड क़र जा रही है? कहीं यह आवेग उसको यथार्थ के विरोध में तो नहीं खडा कर रहा है? प्रेम कहींनहीं नहींरविभूषण एक जिम्मेदार इन्सान हैं, उनकी उम्र भी अब गैरजरूरी हरकत करने की नहीं है, फिर बम्बई में जवान औरतों की कमी थी, जो वह मेरी तरफ आकर्षित हुए, यह आकर्षण वास्तव में पुराने जीवन की निराशा से उपजा भाव है या फिर यूं कहा जाये कि एक फसल कट जाने के बाद दूसरे पौधे लगाने का समय है। जीवन तो निरन्तरता का नाम है, तो फिर भावनाएं भी तो खिल सकती हैं बार बार! अपने नये सूट, सेंट, क्रीम अटैची में सलीके से रख कर जब उसने जिप लगाई तो एक बार फिर आशंका ने उसका दिल दहलाया कि नयना यह ज्वार कहीं भाटा बनकर तुमको बर्बाद न कर दे। यूं पुराना छोड क़र नये की तरफ जाना वह भी इस जल्दबाजी में कहां की अक्लमन्दी है? नयना ने मुड आईना देखा, अपनी आशंका को मुंहतोड ज़वाब दिया कि उम्र के इस मोड पर उसके पास साल ही कितने बचे हैं, सो वह सोचने में गंवा दे। और बुढापे को गले लगा ले। उम्र का यह दौर ढलती जवानी का जरूर है मगर यह भी सच है कि हम अभी जवान हैं। इस जज्बे को संभालना ही चुनौती है और आज का सच यही है कि रविभूषण मेरे अहसास में उपजी एक सुगन्ध है, जिसकी चाह मेरी आत्मा को है। पौ फट चुकी थी। उसने चाय बनाई, नहाई और रवि की पसन्द के रंग वाले कपडे पहने। सारी रात आंखों में कटी थी। आखिर गृहस्थाश्रम का अंतिम अध्याय आज खत्म होने वाला था। मगर नये सूरज ने उसको थकान की जगह उमंग दी! नयना को पता था कि नई जिन्दगी की शुरुआत दिल के आईने में शुरु हो चुकी है। मगर उसकी कोई रूपरेखा व्यवहारिक रूप से सामने नहीं थी। उसको पता था कि रविभूषण विवाहित है, उसके तीन बच्चे हैं। माता पिता का देहांत हो चुका है। इकलौती बहन ससुराल में खुश है। उस पर ऐसी कोई बडी ज़िम्मेदारी नहीं बची है जो उसके जीवन में बाधा बन कर आए। बडी बेटी का विवाह हो चुका है। बेटा कैम्ब्रिज में अपनी विदेशी पत्नी के संग है, केवल छोटी बेटी इंटर कर रही है। अब बचा सवाल समाज का, उसका मुकाबला हर कदम पर हर तरह से नयना ने किया है, कभी प्रताडना मिली तो कभी सराहना और अब वह हर अंजाम के लिये तैयार है! हवाई जहाज क़ब उडा, कब उतरा नयना न जान पाई। चौंकी तब जब सारे मुसाफिर अपना सामान निकालने लगे। नयना मंद मंद मुस्कुराती उठी। जेवरों से भरा पर्स कंधे पर टांगा और अटैची किसी की मदद से उतरवाई, फिर उतरते मुसाफिरों के पीछे चलने लगी! घर से भागने का यह अंदाज पुराना होने के बावजूद कितना नया था। जब तर्जुबा आपके बालों में सफेदी बन कर उभर रहा हो और आपके पैर किसी पुराने बरगद की तरह धरती में एक विशेष स्थान पर गहरे धंस चुके हों, तब सब कुछ नकार कर एक नई जिन्दगी की बुनियाद डालना कितना अनोखा अनुभव है! जहाज क़ी सीढी उतरते हुए नयना को महसूस हुआ कि वह पिंजडे में कैद मैना थी जो आज बरसों बाद पंख फैला कर सूरज की गर्मी को डेनों में भर हवा के डोले पर सवार फल फूलों से भरे बागानों की तरफ उडान भरने वाली है, जहां हरी पत्तियों वाली मोटी शाखों वाले दरख्त पर पडे झूले में बैठ उसे केवल प्रेमगीत गाना होगा और राग उठाना होगा, जिसका आलाप जाने कब से उसने सीने में दबा रखा था। सामान लेकर जब वह बाहर
निकली तो उसकी बेचैन आंखें रविभूषण को तलाश करने में लग गईं।
आस पास की भीड
छंटी तो वर्दी पहने ड्राईवर उसकी तरफ बढा और अदब से पूछा,
'' नयना मेम साहब! '' नयना को हाथों में पकडा गुलाबी फूलों का गुच्छा कांटों से भरा गुलदस्ता लगा। आंखों में दिल के टूटने से पानी तैर गया। नया गुलाबी सूट, उसी रंग की लिपस्टिक, सफेद मोतियों और गुलाबी नगों के जेवर, सारा साज श्रृंगार अर्थहीन हो उठी। दिल्ली से बम्बई तक का रास्ता इसी पहली नजर के इंतजार में बार बार पर्स से आईना निकाल कर देखने में गुज़ारा था। तडप के सुलगते अम्गार दहकने के बाद एकाएक राख होने लगे। वह अपने आप को समझाने लगी कि इतना आवेश ठीक नहीं। रविभूषण एक व्यस्त आदमी है। उसके पास समय की कमी हो सकती है आखिर जिन्दगी की शुरुआत में यह कैसे नकारात्मक भाव उभर रहे हैं। यदि उनको नयना का खयाल न होता तो वह कार क्यों भेजते? शिकवे शिकायत तो कम से कम बाद के लिये रखे, मगर सारी समझदारी के तर्क मन की इच्छा के आगे निहत्थे हो उठे। जब वह हठ से बार बार यह प्रश्न करता कि आज तो एक विशेष दिन था! माना कि वह अपने कार्यक्रम में महत्वपूर्ण व्यक्ति है, तो आधा घंटा देर से मीटिंग शुरु करने की व्यवस्था नहीं कर सकते थे? '' मुझे नयना तुमसे सब कुछ चाहिये। बस तुम पूरे विश्वास से इस जमीन पर खडी रहो, मैं तुम्हारे पास हूँ।'' कई महीनों से अनुराग भरा आग्रह उन्हीं की तरफ से रहा था और परसों रात को सारा कार्यक्रम तय हुआ था। आज सुबह पहुंचने का फैसला हम दोनों ने लिया था। फिर? उसने सर झटका। पर्स से आईना निकाल कर चेहरा देखा। ताजग़ी रूखेपन में बदल रही थी। उसने अपने को संभाला और जबरदस्ती मुस्कान चेहरे पर लाई, ताकि रवि उदासी उसकी उदासी न ताड ज़ायें। ''
मेम साहब किधर जाना है?
'' हवाई अड्डे की
सडक़ से निकल ड्राईवर ने मोड से पहले पूछा। कार सडक़ पर तेजी से फिसलने लगी। चेहरे पर तना खुशी का शामियाना धीरे धीरे उतरने लगा। वहां चिन्ता प्रश्न बन कर उभर आई। कहीं रवि की धर्म पत्नी तो कोई फसाद नहीं खडा कर दिया? मैं इस शहर में कहाँ ठहरने जाऊं। दो बार आई तो ठहरने का इंतजाम बुलाने वालों ने किया था। इस बार बुलावा रवि की तरफ से था। उसने साफ शब्दों में कहा था, '' मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ। पिछली बार तुम्हारा स्टे कम रहा, मगर इस बार ताजमहल होटल में एक सुईट बुक करवा दूंगा। उसको फूलों से सजवा दूंगा ताकि उनकी उपस्थिति में हम कई दिनों तक एक दूसरे की बांहों में बेहोश रहें। फिर देखेंगे कि जिन्दगी कैसे शुरु करेंगे। मुझे कोई जल्दी नहीं है, अब रात दिन हमारी मुट्ठी में हैं, तुम मुझ पर यकीन रखो, मैं हूँ ना तुम्हारे साथजानती हो मेरे दो दिल हैं, एक में तुम मौजूद हो और दूसरे में मेरा प्रोफेशन!'' मीठी बातों की याद से नयना के चेहरे पर मुस्कान दौड ग़ई। फिर दूसरे ही लम्हे वह कार रुकने से चौंक पडी। फ़ीके चेहरे पर खुशी की तह जमाने की नाकाम कोशिश करती हुई नयना कार से नीचे उतरी। मन में रवि का कमरा देखने की जिज्ञासा उभरी। जब तब वह अपने कमरे को घर कह कर नयना को वहां रहने की दावत देता था, उसका कहना था कि मुझे घर से ज्यादा अपने ऑफिस में सुकून मिलता है। वहां मेरी जरूरत की हर चीज मौजूद है। इसलिये नयना को अपने घर में पहला कदम रखना था। – आगे पढें |
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