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o  नेक परवीन-2

एक दिन यह बाजार में अपनी नई डिसकवरी के साथ शॉपिंग करते हुए मिल गये, बौखला गये अचानक, '' तुम यहाँ कैसे? बच्चा कहाँ है? '' मैं ने आइसक्रीम का बडा कोन सूंतते हुए हंस कर कहा, '' पडोसन के यहां दे आयी हूँ आज इसका क्रेच देखने निकली थी सोचा काफी दिनों से आइसक्रीम नहीं खायी है, खा लूं''
'' तुम्हारा गला खराब हो जायेगा
डॉक्टर राहत आजकल बाहर गये हुए हैं'' इनको मेरे गले की फिक्र लाहक होने लगी'' मेरी नजरें उसकी नाजुक़ गरदन का तवाफ ( परिक्रमा) कर रही थीं जिसमें एक चमकीली नयी सुनहरी चेन जगमगा रही थीइन्होंने घबडा कर कैशमेमो नीचे गिरा दिया

'' मुझे दफ्तर में देर हो रही है एक मीटिंग है आज
'' यह उस बला के साथ आगे बढ ग़येकैशमेमो चार हजार का था
मैं धारोंधार रोई, बेहोश हुई, फिर खूब लडी, हजारों गालियां दे डालीं, खूब उल्टा सीधा कहा, गरेबान फाड ड़ाला, वह खामोश सुनता रहा
आखिरकार मैं भी खामोश हो गयी, औरतों ने बताया कि औरत को मर्द की ज्यादतियों पर खामोश रहना चाहियेयही नेक औरत का चलन है अपने शौहर की बुराई करने वाली औरत समाज में रुसवा होती है, शौहर की नजरों में गिरती हैऔर आकबत में भी कोई जन्नत के महल का दरवाज़ा नहीं खुलता

मैं ने हार कर खामोशी की स्याह अबा ओढ ली
वह बहुत खुश था यों वह बहुत बेचैन भी रहताअजीब किस्म की बेचैनी और वहशत से पागल हुआ जाताजब तक वह नया पत्थर पिघलाने में मसरूफ रहता यह बेचैनी रहती, जब पिघल जाता तो अजीब सा सुरूर उस पर तारी हो जातावह सीटिंयां बजाता और अजब अन्दाज से मुस्कुराताउसकी अय्यार आंखें जगमगातीं अब मुझे भी पता चल गया था, जब कोई नयी कली उसकी जिन्दगी में आती वह अचानक बेहद मेहरबान हो जाता मुझ परबडे वालिहाना(स्नेहिल) ढंग से कहता,

'' तुम तो बडी नेक हो'' ( जी तो चाहता उसका मुंह नोंच लूं)
'' अगर जिन्दगी रही तो अगले साल सोने का गुलूबन्द बनवा दूंगा
'' ( अल्लाह करे, कमीना मर जाये)
रूठता देख कहता, '' चलो तुमको आइसक्रीम खिला दूं
'' ( बद्जात)
'' क्यों न आज होटल में डिनर कर लें
'' वह घिघियाता

दिल में तो आता हजार गालियां
दूँ। अपनी चूडियां तोड ड़ालूं और रंडापा ओढ लूं लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं कर पाती मैं हर हाल में मुझे उसके साथ ही रहना था, एक छत के नीचे, हजारों जोडों की तरह बेबस, बेहिसजिन्दगी की तमाम नरमी अचानक खुश्क हो गयीअब तमाम रिश्ते अपने मायने खोते जा रहे थेमैं अजब किस्म के नाकाबिले बयान कैफियत के ट्रान्स में थीतमाम ताल्लुकात बेकैफ़ हो चुके थे, बेमजा, नमक खत्म हो चुका थाजुबान पर एक फीका सा जायका नमक कहाँ खो गया? पता ही नहीं चला बस अचानक चुपचाप जिन्दगी से गायब हो गया( कैसे? नामालूम!) भयानक अकेलापन था, एकदम घुप अंधेरा, साथी था लेकिन नहीं था कुछ याद नहीं

दिन रात बाजारों में घूमती, बेतहाशा शॉपिंग कर डालती
कई साडियां, ब्लाउज, सूट नाईटी बिला वजह ही खरीद डालेएक माह में कई बार फेशियल करवा डालाशहर - शहर घूमी  लहासिल ढेर सारे गमले खरीद लाईखोदते खोदते अपनी कब्र तक पहुंच जाती, नन्हा सा गढ्ढा गारनुमा नजर आने लगता, फिर कब्र में तब्दील हो जातामैं सफेद कफन पहन कर अन्दर चली जाती, बीज बोकर बाहर आ जाती

शॉपिंग करते करते, होटलिंग करते करते मैं थक जाती
वो जिस शहर में जाता घर को सजाने का सामान ले आताघर सामान से भर गया था मेरा दिल मर गया था, उसका दिल जवान थाज्यों ज्यों वह बूढा हो रहा था उसके कहकहे दिन ब दिन जवान हो रहे थे

कई बार खुदकुशी की कोशिश की मगर नाकाम रही
हर बार मियां ने ही मुझे बचाया खैर यह बात तो हम दोनों के बीच ही रही, '' अल्लाह की दी हुई जिन्दगी जाया नहीं करते, खुश रहा करो, हंसा करो, अपने को मसरूफ रखो, नमाज पढो, कलमपाक की तिलावत किया करो इससे जी बहकलता है, अल्लाह मेहरबान होता है, बच्चे में जी लगाओ अच्छी मां बनो, सुबह उठ कर टहला करो, अपने को फिटफाट रखो यार'' उसके जूते से लेकर बाल तक चमकते, वह फैशनेबल कपडे पहनता

मैं ने इस शख्स को इस शिद्दत से चाहा कि शायद ही किसी औरत ने किसी मर्द को चाहा होगा
मैं उसको इस कदर चाहती थी कि वह बोर हो गयाहजार बार कह चुका, '' मुझे शिद्दत से न चाहा करो, मैं उकता जाता हूँ।'' जब वह सो जाता तो मैं रात रात भर शमा लेकर उसका चेहरा ताकती रहतीसच, मुझे वह दुनिया का सबसे हसीन इन्सान लगता ( हालांकि वह हसीन नहीं था) एक अजब किस्म की दीवानगी मुझ पर सवार थीवह भी चाहता था लेकिन एक हद में रह कर शायद एक पर ही सबकुछ खर्च नहीं कर देना चाहता थामैं ने नेक परवीन बनने की बेहद कोशिश की, कामयाब भी रही, लेकिन वह हाथ से निकल गया

मैं बेहद चाहने के साथ साथ उससे शदीद नफरत भी करने लगी थी
एक साथ दोनों जज्बे मुझ पर बुरी कदर हावी थेमोहब्बत के मारे मैं उसके गलीज मोजे तक सूंघती और पसीने में भीगी बनियाइन अपने तकिये पर रखती जब वह न होता, अकसर रातों को वह न होताउसकी कार बाहर खडी रहती ताकि मोहल्ले वालों ( बल्कि वालियों) को मालूम न होदुनिया का इतना डर था उसको पार्टियों में मुझको सजा धजा कर ले जाताकपडे बनवा देता, मेकअप का सामान ला देताइस मामले में उसकी मालूमात बडी वसीह ( बहुत ज्यादा) थीअजीब किस्म का जलील कमीना शख्स था मैं रोती तो सबसे पहले उठकर घर के दरवाजे, ख़िडक़ियां बन्द करने लगताहाथ पैर जोडने लगता
'' खुदा के लिये मता रोओ, लोग तुम्हारा रोना सुनेंगे तो मेरे बारे में क्या राय कायम करेंगे? ''

अपने बारे में वह हर लम्हा अच्छी राय कायम करवाना चाहता था
मोहल्ले, समाज, दुनिया और खुदा से डरता लेकिन करता वही जो वह चाहता, मारे नफरत के मैं उसके पसन्दीदा आफ्टरशेव लोशन और सेन्ट एक साथ मिला कर कॉकटेल बनाती और फ्लश में डाल देतीउसकी पसन्दीदा शराब की बॉटलों को तोड ड़ालती, वह कुछ न कहता खामोश रहता

लेकिन रात में सोते सोते उसके माथे की रग इतनी तेजी से फडक़ने लगती कि मैं चौंक जाती, वह बेकरार रहता
उसके मुंह से अकसर कोई न कोई नाम खुद ब खुद निकल जाताबाज वक्त यों ही वह जिक़्र कर देता परिवशों( सुन्दरियों)का फिर  सॉरी  कह कर एक अजब बेचारगी से आंखों में मासूमियत भर लेता कि पल भर में नफरत काफूर हो जाती और मैं फिर अच्छी बीवी बनने की कोशिश करने लगती

मैं मां नहीं बन सकी
बच्चा जरूर पैदा कर लिया, लेकिन मेरे अन्दर मां बनने का जज्बा ही न पैदा हो सकानफरतों की वजह से वह मर गया बाज औरतें बगैर औलाद पैदा किये ही मां बन जाती हैं, ममता का जज्बा इतना हावी होता हैमैं मां होकर भी मां नहीं थी बच्चा मैं जरूर पाल रही थी, लेकिन मेरे अन्दर अन्दर उसके लिये कोई नरम गोशा नहीं थाऐसे बच्चे शायद ज्यादा ही समझदार होते हैंनन्हा सा बच्चा मुझे देख कर हंसता तो लगता मजाक उडा रहा हैवह रोता ही नहीं था या तो खेलता या तो चुपचाप क्रेच चला जाताशायद वह मेरा राज ज़ानता था कि मैं मां होकर भी

मेरे अन्दर की नाजुक़ कोंपल खिलने से पहले ही मुरझा गई थी
लगता यह भी नर बच्चा है, बडा होकर यह भी वैसा ही होगा जैसा कि इसका बाप हैफिर भी उसके बाप को में शिद्दत से चाहती और बेपनाह नफरत भी करतीयह दोनों जज्बे एक दूसरे पर ओवरलैप होते रहते

औरतें बतातीं कि शौहर भी तरह तरह के होते हैं
बस ब्रीड नेम अलग अलग होते हैं - बुलडॉग, अलसेशियन, जर्मन शैफर्ड, ग्रेहाण्ड, पॉमैरियन, फॉक्सटैरियर, डॉबरमैन, लैब्राडोर, देसी इनको सख्ती से बांध कर रखो नहीं तो इधर उधर मुंह मारने लगते हैं

लेकिन जब वह मेरे पास होता तब भी मेरे पास कहां होता था? उसकी आवाज क़हीं और होती, जिस्म कहीं होता, जहन कहीं और टहल रहा होता
आंखें समुद्र पर होतीं, तो जबान नमकीन, चटपटे, मीठे तुर्श जायके तलाश कर रही होती एक न एक औरत हमेशा उस पर हावी रहतीलाशऊरी( अवचेतन मन) तौर पर उसकी गुत्थियां उलझी रहतीं, उसके जहन में हमेशा कोई और होता वह जुडा रह कर भी मुझसे जुदा थासाथ होता तब भी लगता कि बीच में कई लोग हैं वह कभी अकेला होता ही न

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