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गणतंत्र दिवस
गणतंत्र दिवस फिर आया है- हमको स्मरण कराने को । अंगेज्री शासन के अधीन भारत के वीर जवानों को ।
हम रहे दासता में सदियों
अपना सबकुछ हम खो बैठे । गांधी नेहरू सुभाष आये,
सोते से जगा दिया हमको
।
हम फिर इतिहास बना करके
धीरे-धीरे आजाद हुए । दो भाई यद्यपि अलग हुए,
फिर भी हमने सब दिया भुला
। भाईचारा सह अस्तित्व और
आपस की खुशहाली चाही । हर बार मिला धोखा हमको,
कोई भी बात बन न सकी
।
अब भी हम इच्छुक हैं
लेकिन, हम उसको
छोड नहीं सकते । हम दोस्त सदा रह सकते हैं,
पर रिश्ते तोड नहीं सकते
। हर बार रहे चुप हम लेकिन
ऌस बार तो तय कर बैठे हैं
। कश्मीर हमारा मस्तक है,
कल था है आज रहेगा कल
। –
सुरेश चन्द्र
'विमल'
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