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गज़ल
यह तेरी सौगात नहीं
इस दिल के बुलाने पर तुम नहीं आये,
कोई बात नही;
मेरे पैगाम पर हंस कर खिल्ली उड़ाई‚
कोई बात नहीं
मेरे दावतनामे को कानी आंख न देखा‚
कोई बात नहीं;
मेरी शामों को वीरान – बियावान बनाया‚
कोई बात नहीं
मेरी चौखट तुम्हारे कदमों की सरहद है‚
कोई बात नहीं;
मेरी मय्यत में शामिल न होने की ज़िद है‚
कोई बात नहीं
अपने ख़यालों तक में मेरा ज़िक्र न आने देना‚
कोई बात नहीं;
बस आंख से ढलके आंसू के लिये न कहना‚
यह तेरी सौगात नहीं ।

-महेश चन्द्र द्विवेदी

 

गीत
प्राण कैसे आऊं तुम तक?
प्राण कैसे आऊं तुम तक‚
भव के बन्धन रोकते हैं।
मेरे मन की ये उमंगे
ज्यूं गहन सागर तरंगे
बड़वानल सम सुलगतीं
आकुल मन को करतीं
प्राण झंझा सम उद्वेलित
तन के बन्धन रोकते हैं
है पवन पागल बहकाती
नाग – केशर सी महकती
बह रही तन से लिपटती
गुनगुनाती‚ फिर सकुचाती
मन पवन सम प्रवाहित
नियम संयम रोकते हैं
तन उष्मित‚ श्वास उलझती
वीरान वन – वीथी भटकती
तड़ित ध्वनि नभ प्रकम्पित‚
ब्रह्माण्ड हो स्वयं विचलित
नभ – धरा कैसे मिलन हो‚
क्षितिज के भ्रम रोकते हैं

-नीरजा द्विवेदी

 

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