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चालीस बरस पहले चारसौ रुपये कमाने वाले, एक दफ्तर के बाबू के घर चौथी कन्या ने लिया जन्म। कोई और नहीं वो मैं थी, तीन भाई तीन बहनों के बाद की सातवीं सन्तान, फिर भी मेरे पिता के चेहरे पर थी मुस्कान। मित्रों ने अदा से ताना मारा, पुत्र होता तो मिठाई पर हक था हमारा, कन्याओं के बोझ से तो पहले ही लदा था बेचारा, हाय री किस्मत एक गठ्ठर और दे मारा। पिता ने गर्व से हँस कर मित्रों के मुँह पर तमाचा मारा, मुझे गोद में ले चुमकारा। मेरी बेटी को कहते हो बोझ कितनी घृणित है तुम्हारी सोच, क्यूँ करते हो कन्या के माथे को कल्ांकित, मत उठाओ मेरी तरफ अपनी निगाहें शंकित। इसके जन्म पर बाटुँगा मिठाई, अभिमान से कहूँगा मेरे घर, मेरी बेटी है आई। मित्रों को ललकारा, ये तो है मेरे घर का उजियारा, लो आखिरी महीने के आखिरी सप्ताह में, अपनी कमाई का आखिरी नोट, मैंैंने इस पर वारा। रसगुल्ले खाओ मेरी बेटी के जन्म की खुशियाँ मनाओ, दोस्त हो तो आओ इसको दो आर्शीवाद, और हमेशा रखना मेरी एक बात याद, मैं बरबाद नहीं बेटी के जन्म से हुआ हूँ आबाद, आबाद आबाद । मुझे अपने जन्म पर पिता से मिला था, गर्व का ये अनमोल तोहफा, जिसने जीवन भर के लिए मेरे सिर को कर दिया ऊँचा। आज जब मैं किसी कन्या भ्रूण की हत्या की सुनती हूँ बात, तो उस अजन्मी कन्या के पिता के प्रति आक्रोश से भर उठता है मेरा गात, कैसी लिजलिजी है इनकी सोच। घृणा से आने लगती है उबकाई, मौत का उपहार दे इन्होने अपनी ही कन्या भुलाई। क्या इन पिताओं ने अपनी माँ का दूध नहीं पिया, जो अपनी बेटी का घोंट दिया गला। अपने पिता के लिए गर्व से मेरा सिर एक बार फिर, जाता है तन खुशी से नाच उठता है मेरा मन काश इन पिताओं में समा जाता, मेरे पिता की आत्मा का एक अंश, तो कौन चुभा सकता था इन्हे मौत का दंश। उन अजन्मी बेटियों का भी सीना करने लगता धक – धक, सिर ऊँचा उठा जीने का उन्हे भी मिल जाता हक। -डॉ .
रीता हजेला “आराधना” |
तपस्या एक लड़की ने भगवान से माँगा वरदान, मुझे भी दे दो पंख मैं नापना चाहती हूँ आसमान। भगवान ने कहा ठीक है मगर तू सिर्फ सपने में उड़ सकेगी, हकीकत के लिए तुझे करनी पड़ेगी अभी और तपस्या। लड़की ने भगवान से कहा मुझे शक्ति दे दो ताकि मैं चढ़ सकूँ पहाड़ , क्योंकि मैं चोटी पर बैठ करना चाहती हूँ अपना नव निर्माण, भगवान ने कहा ठीक है मगर तू कर सकेगी र्सिफ दूसरों का निर्माण अपने लिए तुझे करनी होगी अभी और तपस्या। लड़की ने भगवान से कहा मुझे दे दो कुछ शोख रंगीनियां ताकि मैं भी जीवन में भर लूं रंग, भगवान ने कहा ठीक है मगर अभी तू दूसरों के जीवन में ही रंग भर सकेगी , अपने लिए तुझे करनी होगी अभी और तपस्या। लड़की ने भगवान से कहा मुझे दे दो फूलों सी मुस्कान, ताकि मैं भी हँस कर बिताऊँ जिन्दगी की घड़ियाँ, भगवान ने कहा ठीक है मगर तुझे वो बिखेरनी होगी अपने चारों ओर के लोगों को देनी होगी अपने लिए तुझे करनी होगी अभी और तपस्या लड़की ने भगवान से कहा मुझे दे दो सुन्दर सलोने वस्त्र ताकि मैं भी लगूं खुबसूरत, भगवान ने कहा ठीक है मगर सूरज उगने के बाद और सूरज ढलने तक ही ये आएंगे तेरे काम रात के लिए तुझे करनी होगी अभी अभी और तपस्या। तब लड़की ने भगवान से कहा कम से कम मुझे दे दो एक स्वस्थ तन, ताकि मैं कर तो सकूँ तपस्या। भगवान ने कहा ठीक है मगर यह होगी सिर्फ भा्रन्ति अपनी अस्वस्थता को तू कभी नहीं जानेगी सच में पाने के लिए स्वस्थ तन, तुझे करनी होगी अभी और तपस्या। तब से लड़की कर रही है तपस्या उड़ने के लिए अपने निर्माण के लिए जीवन की रंगीनियों के लिए मुस्कुराने के लिए हँसने के लिए अपने को ढकने के लिए स्वस्थ रहने के लिए भगवान से हर रोज पूछती कब पूरी होगी मेरी तपस्या।
-डॉ .रीता हजेला “आराधना”
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