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त्रिशंकु
त्रिशंकु की भांति,
लटकी अधर में,
धरातल को तलाशती,
पश्चिम और पूर्व की,
संस्कृतियों के
मध्य,
क्रीड़ा-कंदुक सी,
रस्साकशी के खेल को
सजीव करती,
भारतीय नारी,
अनिश्चयों की दहलीज़
पर,
खड़ी दिग्भ्रमित सी,
अपनी अस्मिता को
खोजने का कर रही ,
है प्रयास आज.
-मंजु महिमा भटनागर |
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