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मूर्ख-सच
मूर्ख दिवस नजदीक
आते देख,
मूर्खों के बीच
होने लगी हलचल,
महामूर्ख कौन कहलाये,
इसकी होने लगी तैयारी
हर पल |

पुराने मूर्खाधिष अपनी
कुर्सी बचाने की जुगत
लगाने लगे,
और नये लोग मूर्ख मडंली
में आने कि
तैयारी करने लगे |

सरकार भी खतरा भांप कर,
सार्वजनिक अवकाश
करने के बारे में,
गम्भीरता से विचार
करने लगी,
और दुकानों में,
मूर्ख बनने के १०१ तरीकें
वाली किताब जोर-शोर से
बिकने लगी |

मूर्ख बनने के
आनन्द को सोंच-सोंच,
लोगों के दिल उछलने लगे,
और मूर्ख-दिवस में
कितना समय बचा,
इसकी वो गणना
करने लगे |

सच ही है,
इस मशीनी,जोड-तोड
समस्याओं और तनाव
भरी इस दुनिया में,
दिमाग के दिल पे
हावी होने वाले
वातावरण में,
मूर्ख बनना और
मूर्ख कहलाने से
बढकर खुशी क्या
हो सकती है ?

जो दिल को ये
सकून तो देती है-
कि उसकी सभी
संवेदनायें अभी
मरी नहीं हैं,
उसमें जीवन अभी भी,
कुछ शेष है |

-अमित कुमार सिंह

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