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तुम और मैं
तुम और मैं
शहर की सड़क सूनी थी, आसमान से ओस झर रही थी, सब ओर अंधेरा था
जब मैं सोकर उठा
एक कप चाय मेरा इंतजार कर रही थी।
उस वक़्त घड़ीसाज़ घडी़ बनाता था आइना-साज़ आइना
मैं तुम्हारे लिए क्या बनाता
मेरे चित्र अधुरे रह गये थे
मेरी भाषा नहीं लिखी गई थी
मेरी बैचेनी चली गई थी
मेरा सपना टूट गया था
मेरी सिगरेट बिखर गयी थी
हाय, मैं अभागा क्या करता

आख़िरत मैंने लिखा
तुम्हारा होना, मेरे लिए क्या है।
 

पुकार

मैं जब भी कोई दूसरी भाषा सीखता हूँ
सबसे पहले मैं खोजता हूँ उस भाषा में
तुम्हारे नाम से मिलता-जुलता शब्द।
इसलिए नहीं कि मुझे कौतूहल है
इसलिए भी नहीं कि मुझे विद्वत्ता बढ़ानी है अपनी
बल्कि इसलिए कि
मैं सभी भाषाओं में तुम्हें पुकार सकूँ
मुझे यक़ीन है
किसी ना किसी भाषा में तुम सुन ही लोगी
मेरी पुकार।

-गिरीश शास्त्री

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