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याद

जिस दिन कुछ होता नहीं
तेरी याद भी पास आती नहीं
भाग जाती दिखा कर दूर से झलकियाँ
उसे पकड़ने को भागती मैं पीछे–पीछे
कैसी नटखट कि कभी
दिन भर झूलती रहती गले से
कभी ऐसी गायब कि‚
ज्यों बदली भरी रातों का चांद
पकड़ के मरोड़ देती उंगली मेरी
कभी सर पे थपकी दे भाग जाती
कभी आती खामोशियों के पीछे छिपकर
कभी रोशनी को धता बता कर
आज नहीं आई है‚ तो सोचती हूँ
नाराज़ है क्यों‚ क्या खता हुई मुझसे
मेरी दोस्त थी साथ चलती थी
कहाँ मैं तन्हा रोज़ जलती थी
कोई तो ऐतबार उसका तोड़ा होगा
कि मेले छूट गई उंगली उसकी
मैं दीवानावार उसको ढूँढती हूँ।

– जया जादवानी

ग़ज़ल  

तुम्हारे हाथों में मेरी कोई लकीर है तो बोलो
यूं तो आरज़ूओं का कोई घर नहीं होता

ये खानाबदोश ज़िन्दगी ले आई मुझे यहाँ
कि तेरे बिना पूरा कोई सफर नहीं होता

बुझे हुए चिराग़ों का आज क्या‚ कल क्या
कि हर रोज़ चलने वाले का कोई मंज़र नहीं होता

मैं सोच सकती हूँ‚ तुम्हें कि सोचने का क्या
हाथ जब तक न पकड़े‚ कोई रहबर नहीं होता

मिसालें मोहब्बत की‚ आयतें आशिकी की
इन बातों से तेरा तसव्वुर नहीं होता

ये मुसलसल बारिश सी तेरी याद
दिल होता है दरिया समन्दर नहीं होता।

– जया जादवानी

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