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महिमा मण्डित
इस पांच सात हजार की आबादी वाले नितान्त अविकसित गाँव में वैसे तो प्रगति के नाम पर विद्युत के अतिरिक्त नल, पक्की सडक़, चिकित्सालय का अभाव है पर गाँव चर्चित है, प्रतापी है। इस गाँव का भूगोल धार्मिक है, मिट्टी विभूति है, निवासी पुण्यात्मा हैं, विचारधारा धार्मिक है। निष्कर्ष यह अवतारों, चमत्कारों का गाँव है। पहले-पहल ये गाँव तब चर्चित हुआ था जब वर्षों पहले एक ब्राह्मण परिवार की बहू सती हुई थी। गाँव श्रध्दालुओं का कुंभ हो गया था और चढोत्री से सती का चौरा और ब्राह्मण परिवार का पक्का मकान बन गया था जो कि आज भी गाँव के दो चार अच्छे मकानों में गिना जाता है। फिर गाँव तब चर्चित हुआ था जब राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद संघर्ष में यहाँ के समूह भर पुरुषों ने शिरकत की थी। उनमें से कुछ साबुत लौटे थे, कुछ घायल और कुछ स्वर्गारूढ हुए थे। मंदिर निर्माण के लिये राम नाम की र्इंट लेकर कपाल में भगवा पट्टी बाँधे रामनामी ओढे हुए जय श्रीराम का जयघोष करते ट्रक भर लोग अयोध्या पहूँचे थे। इसी गाँव की आदिवासी स्त्री पर जब देवी आती है तो वह घर के बाहर चबूतरे पर बैठ कर झूमने लगती है। पुराने दमा के रोगी की भाँति तेज तेज हफरने लगती है। शत्रुओं का नाश-निरबंस मनाती है और सास ननद को खूब गालियाँ देती है। उस स्त्री को देखने सारा गाँव काम-काज छोडक़र दौड पडता है। इस गांव के लोग धर्म-कर्म में बहुत आस्था रखते हैं। यहाँ के अधिकतर बूढे चारों धाम की यात्रा कराने वाली बस में बैठकर चारों धाम के दर्शन करके लोक-परलोक सुधार चुके हैं। यह
गाँव
एक बार फिर चर्चा में है।
इस शस्यश्यामला,
पतित-पावनी भूमि में साक्षात दुर्गा मैया अवतरित हुई
हैं। देवी ने अवतार का समय नवरात्रि को चुना है। गांव की एकमात्र पाठशाला के गुरुजी तीरथ प्रसाद पयासी की द्वितीय कन्या सोलह वर्षीया वीणा को देवी ने अपना वास बनाया है। भक्ति भाव में डूबे लोग चकित हैं कि देवी इस गांव में सोलह वर्षों से रह रही हैं और वे जान तक नहीं पाये हैं। वीणा को ऐसी मंद बुध्दि लडक़ी समझते रहे जिसका न पढने में मन लगता है न घर-गृहस्थी के काम में। गुरुजी तीरथ प्रसाद पयासी हाथ जोड विनय भाव से सबको समझाने में लगे हैं - '' अवतार इसी तरह चुपचाप पडे रहते हैं और उपयुक्त समय आने पर अपनी पहचान प्रकट करते हैं। रामचन्द्र जी को आठ लोग ही जान पाये थे कि वे परम ब्रह्म का अवतार हैं बाकि तो उन्हें प्रतापी राजा ही समझते रहे। मैं ही कहाँ समझ पाया एक अलौकिक कन्या मुझ गरीब, दालिद्रय के घर जन्मी है। वीणा आरम्भ से ही कुछ भिन्न चेष्टाएं किया करती थी ये आप लोग जानते ही हैं। कभी बिना बात के हँसती थी, कभी रोने लगती थी, कभी मौन हो जाती थी जैसे ध्यान लागये बैठी हो। वास्तव में तो वह इस नश्वर संसार में रहती हुई भी सांसारिक नहीं थी और हम लोग उसे मंद बुध्दि समझते रहे। उसकी क्षमता, शक्ति, प्रभाव को उसकी मानसिक कमजोरी मानते रहे। भगवती हमें क्षमा करेंगी।'' वीणा की माँ सिया पति का अनुमोदन करती - '' वीणा में भगवती का वास है इसीलिये इसका सांसारिक कामों में चित्त नहीं लगता था। बस वही अपने आजा की जाने कब की रखी कल्याण और अखण्ड ज्योति लिये बैठी रहती थी और जोर जोर से बांचा करती थी। जय हो तुम्हारी मां अम्बे। और हम इस अलौकिक कन्या को विवाह के बन्धन में बांधने चले थे। जगत्जननी का पाणिग्रहण संस्कार...त्रुटि क्षमा करना माँ भगवती! '' तीरथ प्रसाद अत्यंत विव्हल हो देवी के समक्ष नतमस्तक हो जाते हैं। इस समय आपका ॠषि दुर्वासा सा क्रोधी स्वभाव कहीं विलोप हो गया है। अन्यथा छात्रों के कान उमेठे बिना, मेंहदी की सांटी, जिसे आप विद्या वर्धनी कहते हैं; छात्रों की थरथराती हथेली में मारे बिना आपका अध्यापन कार्य पूरा नहीं होता। अडोस-पडोस में कोई नहीं बचा जिसे अपशब्दों से सम्मानित न किया हो। अब तो आप पूरे विनयशील बने हुए हैं। जगतजननी के जनक जो ठहरे। तीरथ प्रसाद को वीणा के विवाह की चिन्ता दीमक की तरह चाट रही थी। आर्थिक दशा कमजोर और चार पुत्रियों का ॠण! बडी पुत्री करुणा के किसी प्रकार हाथ पीले कर गंगा नहा सके हैं। ससुराल से आकर करुणा बडे क़रुण भाव से सुना जाती है उसे कम दहेज लाने के कारण ससुराल में प्रताडित किया जाता है। पुत्री का विलाप देख सिया टप-टप आंसू ढारने लगती और वे मौन साध लम्बी लम्बी सांसे भरने लगते। करुणा की यह दशा तो वीणा का क्या होगा जो कि करुणा जैसी रूपवती, कलावती, गुणवती नहीं बल्कि मंदबुध्दि है। सिया जब-तब गुहार मचा मचा कर उनकी चिंता बढाती - ''
सुनते हो कि कान में तेल
डाल कर बैठ गये हो। इस वीणा को कहीं ठिकाने लगाओ,
लडक़ी का रिन मूड में
रखोगे तो रौरव नरक में पडोगे।
'' वीणा चीख मारकर रोने लगती और छोटी अरुर्णा-वरुणा सिटपिटा जातीं। सिया का प्रलाप देर तक चलता। वीणा जब रो-गाकर शांत हो जाती तो फिर से कल्याण में छपे चित्र देखने लगती। रौरव नरक के चित्र - किसी चित्र में पापियों को मोटे रस्से से बांधकर घसीटा जा रहा है, किसी में कोडों से पीटा जा रहा है, उबलते तेल के कडाहे में डाला जा रहा है, कहीं आग में जलाया जा रहा है। कुम्भी पाक नरक के भयावह दृश्य देख वीणा कांप उठती। यदि उसका विवाह न हुआ तो क्या बाबू इसी रौरव नरक में जा पडेंग़े? वह तीरथ प्रसाद के कंधे हिला कर कहती - '' बाबू जल्दी हमारा बियाह कर दो। फिर तुम नरक में नहीं पडोगे।'' तीरथ प्रसाद को समझ में न आता अपनी इस भोली पुत्री की निर्दोष चेष्टाओं पर रोयें या हंसे? तीरथ प्रसाद की चिंता बढती गई। गांव में सोलह वर्ष की लडक़ी सयानी कहलाती है जो विवाह की उम्र पार कर चुकी होती है। कई जगह गये, पर बात नहीं बनी। तभी किसी से सुझाव दिया कि - '' जरियारी गांव में चम्पा नाम की एक स्त्री में संतोषी माता का वास है। वीणा को दरसन करा लाओ। इनके आर्शीवाद से बिगडी बात बन जाती है। दूर दूर से लोग दरसन को पहुँचते हैं। नेता-मंत्री, अफसर, व्यापारी सभी जाते हैं। सुना है संतोषी माता सांसारिक-प्राकृतिक सब प्रवृत्तियों से मुक्त हैं। युवा है फिर भी रजस्वला नहीं होतीं। शुक्रवार को चले जाओ। मेला भरता है।'' संतोषी माता के दर्शन से लौटे तीरथ प्रसाद, देवी के प्रभामण्डल से चमत्कृत थे। घर से लगी बाडी में लगे झूले में बैठी आनंदीभाव से झूला झूलती, केसरिया साडी में सुशोभित मुक्त केशिनी देवी के प्रभाव, चमत्कार, सुकीर्ति, चमक-दमक, दानपेटी में सरकते कडक़ नोट, खनखनाते कलदार, सोना-चांदी, फल-मिष्ठान्न। भक्तों की अंधश्रध्दा ने उन्हें विचलित कर दिया, चित्त अशांत हो गया। कितना अच्छा होता जो उनके घर भी एक ऐसी चमत्कारी पुत्री जन्म लेती। वे सोच विचार में डूबे रहे। जेहन में भावी योजना का प्रारूप तैयार होता रहा, सिया के साथ खूब विचार विमर्श किया। यह विचार विमर्श तमाम सतर्कता के बावजूद पैतृक घर की विभाजित दीवार के उस ओर रह रहे अनुज सिध्दमणि के संवेदनशील कानों तक पहुँच गया। ''
खेत पात के बंटवारे में
तुमने मुझे ठगा अब धर्म के नाम पर गांव वालों को ठगो। तीरथ प्रसाद भाई की बातों को अनदेखा कर वीणा को दुर्गापाठ करने के लिये उत्प्रेरित करने लगे। सुनकर वीणा हाथ पैर पटकने लगती, सिर के बाल नोचने लगती और सिया उसकी चोटी पकड क़र झकझोर डालती। योजना के अन्तर्गत तीरथ प्रसाद अडोस-पडोस में सुनाने लगे - '' ये कैसी अलौकिक कन्या जन्मी है मुझ निर्धन के यहाँ। कहती है उसे देवी दुर्गा ने स्वप्न में आदेश दिया है कि वे कुछ दिन उसकी देह में निवास करेंगी। धर्म की स्थापना करेंगी। पापियों का नाश करेंगी। लोगों का धर्म से विश्वास उठ रहा है जबकि धर्म ही भवबंधन से मुक्ति दिला सकता है। दिन भर रटती है। मैं दुर्गा हूँ मेरी पूजा करो, मुझमें दुर्गा का वास है, दुर्गा की अराधना करो। दिन में चार बार स्नान करती है, देवी का पाठ करती है, अलोन (बिना नमक का) भोजन करती है। '' अवतारों और चमत्कारों की चर्चा तो क्षणों में हमारे पूरे देश में व्याप जाती है फ़िर चाहे गणेश जी की मूर्ति द्वारा दूध पीने की घटना हो या चकौडे क़े पत्तों पर नाग-नागिन बनने की या पुट्टापर्थी के साईं बाबा की तसवीर से भभूत निकलने की। इस पांच सात हजार की विरल आबादी वाले छोटे से अविकसित गांव में वीणा की चर्चा घर घर व्याप गई। मंद बुध्दि वाली वीणा श्रध्देय हो गई। तीरथ प्रसाद की माटी की भित्तियों और खपरैल की छत वाला घर महिमा मण्डित हो गया। श्रध्दा और भक्ति में ऊब-डूब होते स्त्री-पुरुष-बच्चे वीणा को देखने दौड पडे। वीणा के घर के आगे के कमरे, जिसे बैठक के रूप में प्रयोग किया जाता है; में गोबर लीपी भूमि में बैठकी बिछाए नेत्र मूंदे पद्मासन लगा ध्यान में लीन बैठी थी। दर्शनार्थियों को उपस्थित जान अथरों में बुदबुदाने लगती - ''
मैं दुर्गा हूँ,
मेरी पूजा करो,
मुझमें दुर्गा का
वास है,
दुर्गा की अराधना करो। श्लोक सुनकर लोग चकित रह गए। जिस मंद बुध्दि लडक़ी को - चाह नहीं में सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं.. के अतिरिक्त कोई पाठ याद नहीं हुआ उसे पण्डितों-आचार्यों-शास्त्रियों द्वारा कहे जाने वाले श्लोक कण्ठस्थ हैं। उच्चारण ऐसा शुध्द, जैसे जन्म से संस्कृत जानती हो। और चेहरे की गंभीरता, तेज, दीप्ति पर तो आंखे नहीं ठहरतीं। रातों रात कायाकल्प! सब भगवती की कृपा है। लोग श्रध्दानत हो गए। लोगों की श्रध्दा में वृध्दि करते हुए तीरथ प्रसाद हाथ जोड श्लोक का अर्थ कहने लगे - ''हे ब्रह्म स्वरूपा कूष्माण्डा देवी आप यहाँ आवें, पधारें। हे कूष्माण्डा देवी आपको मेरा नमस्कार है। मैं कूष्माण्डा देवी का आह्वान करता हूँ। मैं कूष्माण्डा देवी की स्थापना करता हूँ।'' ''बन्धुजन कूष्माण्डा भूरे कुम्हडे क़ो कहते हैं।यह ऊपर से कठोर अन्दर से अत्यन्त कोमल श्वेत हृदय वाला होता है। भक्तों के लिये माता का हृदय कूष्माण्डा नवनीत जैसा कोमल दया से भरा होता है।'' लोग बिल्कुल ही साष्टांग हो गये। जन्म सफल हुआ! एक बार फिर सिध्द हो गया कि यह पुण्यात्माओं का गांव है! अवतारों-चमत्कारों की धरती है। और फिर पितृपक्ष के समापन पर पुरखों को विदा कर नवरात्रि की पहली भोर में लोगों ने जो कुछ देखा वह अलौकिक था। स्त्रियाँ सूर्योदय के पहले नहा धो कर, गीले केश और नंगे पैर लिये सती-चौरा और तालाब की मेड पर बने देवी के मंदिर में जल चढाने निकलीं तो वीणा, जो अब देवी के नाम से जानी जाती है; को तीरथ प्रसाद के घर के निकट लगे विशाल पाकर के वृक्ष, जिसकी जडों के पास किसी ने छोटे आकार की शिला पर गोल पत्थर रख पत्थर को शिव और वृक्ष को पवित्र बना दिया है; के नीचे पद्मासन लगाए, नेत्र मूंदे तपस्या करते पाया। देह में भगवा वस्त्र, चेहरा प्रशान्त, ललाट में पीला चंदन, केश खुले हुए, कण्ठ में तुलसी की गुरियों की माला! स्त्रियों ने काल्पनिक क्षमता से देवी के शीश के पीछे ज्योर्तिवलय भी देख लिया। अलौकिक रूप! अप्रतिम! अद्भुत! ललाईन की बाडी से कुत्ते के पिल्ले चुराने वाली, खेतों की मेड पर सरपट दौडने वाली ये लडक़ी कैसी धीर-गंभीर हो गयी है। सब देवी की महिमा है। इस वर्ष नवरात्र सफल हो गया। – आगे |
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