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लाल साहब आखरी पन्ना इस प्रेमप्रसंग का रहस्योद्धाटन हुआ तो पूरे घर की चूलें हिल गईं। जो स्नेहिल बाबूजी स्नेह ही लुटाते रहे, बडे औदार्य से उसकी उचित अनुचित मांगे पूरी करते रहे, उसके लिये चन्द्रखिलौना लाने का दम भरते रहे आज उमड घुमड रहे थे- सम्पदा तुम बैरा तो नहीं गई? पढने के नाम पर यही लीला चल रही थी?अरे वो दो टके का मास्टर उसकी तनख्वाह तुम्हारे कपडों, पेट्रोल, होटल - क्लब के लिये भी पूरी न पडेग़ी। यही है हमारे प्यार दुलार का परिणाम? आज से टयूशन बंद। कान खोल कर सुन लो कि तुम्हारा विवाह आई ए एस लडक़े से तय हो चुका है।'' लाल साहब को लगा कि एकाएक जोर की मूर्च्छा आएगी। उन्होंने तो सोचा था कि नित्य की भांति एक कडक़ कलफदार आवाज में वे बाबूजी को निर्णय सुना देंगे कि बाबूजी सुन लीजिये मैं उपमन्यु सर से विवाह करुंगी। और बाबूजी उसके शीश पर हाथ फिरा कर कहेंगे कि करो न भई। तुम्हारे काम में टांग अडाएं ऐसा दम खम मुझमें कहाँ? बाबूजी के कपाल पर चढ आए लाल नेत्र देख कर लाल साहब की कलफदार आवाज क़ण्ठ में घुट कर रह गई। वे समझ रहे थे कि ये बात किसी वस्तु की मांग करने, ट्रिप में जाने या सहेलियों की बर्थडे पार्टी में जाने की उद्धोषणा करने जैसी सरल नहीं। बहुत साहस कर लाल साहब मेमने से मिनमिनाए- '
बाबूजीमैं सर को पसंद।'' नीरजा थरथरा गई, उसे मालूम था कि एक दिन यह होना ही था। घर में बहुत बडा बवन्डर उठेगा। कितनी बार चाहा श्रीनाथ को सब कुछ बता दे पर साहस न हुआ। लाल साहब कहीं मुकर जाते तो उन पर लांछन लगाने का आरोप लगा उसका जीना दुरूह हो जाता। ''
अब बुत की तरह क्या खडी हो?
बताओ यह खिचडी क़ब से
पक रही है? ''
क्रोध में मुठ्ठियां भींचता
रमानाथ नीरजा के ऐन सामने खडा हो गया। लडक़ों के नाम पर भृकुटी वक्र करने
वाली सम्पदा किसी से प्रेम कर सकती है ये सर्वथा अप्रत्याशित था सो साफ
साफ दोष उपमन्यु का ही माना गया। किसी अनिष्ट की आशंका में छटपटाती सम्पदा बाबूजी के पैरों में लोट गई- बाबूजी फिर मैं भी जिन्दा नहीं रह सकूंगी। आप मेरा हठ जानते हैं।रही सर की बात उन्हें दोष न दीजिये उन्होने तो शायद अब भी मुझसे विवाह की बात न सोची होगी क्योंकि वे मानते हैं कि मेरी जैसी रहीस लडक़ी उनके साथ सामन्जस्य नहीं बिठा पायेगी।मैं ने ही बाबूजी उनमें कुछ देखा कि लगा मैं ही व्यर्थ अहंकार में डूबी हूँ, व्यर्थ ही घर में आतंक फैलाए हुए हूँ कहते हुए वह बिलकुल ही कातर हो आयी- '' बाबूजी...आपने अब तक मेरी हर इच्छा मानी है बस एक ये इच्छा पूरी कर दीजिये फिर कभी कुछ नहीं मांगूंगी...कभी नहीं।'' क्रोध में पैर पटकते बाबूजी, तेज तेज पैर पटकते हुए छत पर चले गये। घर में ऐसी मुर्दनी छा गई जैसे अभी अभी कोई अर्थी उठी हो। अम्मां स्वभाव वश एक लय से रोने लगीं। रोती सिसकती सम्पदा अपने कमरे में चली गई। रसोई से स्वादिष्ट खाने की सुवास आ रही थी, सबको भूख लगी थी पर किसी ने खाना नहीं खाया, छत पर टहलते, छटपटाते बाबूजी पता नहीं फिर कितनी देर से नीचे उतरे और सोए। लाल साहब का अन्न जल त्याग
आंदोलन चल पडा।
बाबूजी का कडा
आदेश था कि कोई उसे मनाने न जाए।
भूख जब सही न
जाएगी तो दिमाग की सारी खुराफात निकल जाएगी।
पर लाल साहब अपना
विश्वविख्यात हठ आसानी से कैसे छोद देते?
उन्हें ज्वर चढ
आया।
ताप बढता गया और
सन्निपात में लालसाहब अंड बंड बडबडाने लगे।
अम्मां ने बाबूजी
को आडे हाथों लिया- ''लडक़ी
मर जाएगी तो उसकी लहास का बियाह करके खुश हो जाना। अरे कौनसा दोष है उस
बेचारे उपमन्यु में। तुम्हें यही सब करना था तो ऐसा सिर न चढाते लडक़ी को।'' तीसरे दिन भी ज्वर न उतरा। अथीर बाबूजी कभी चिकित्सक से निवेदन करते तो कभी घर के लोगों पर कुपित होते। सोचने लगे कि बच्चे ठीक ही कहते हैं सम्पदा को इतना हठी उन्होंने ही बनाया है। उसका हठ सहज ही टूटने वाला नहीं है। शाम को घर पहुंचे तो सम्पदा के सिरहाने बैठी आँसू पौंछती अम्मां से बोले- भई बहुत हुआ। अब तुम उठो और नीरजा से उपमन्यु के घर का पता लिखवा लाओ। उसके पिता को पत्र डालना है।सारा प्रबंध करना है विवाह क्या ऐसे ही हो जाता है!'' भौंचक्क अम्मां कुछ क्षण को पति की पीठ निहारती खडी रहीं फिर चल पडीं। सम्पदा ने उनका हाथ पकड लिया और कहा, '' अम्मां आज मेरे लिये नीरजा भाभी से थोडा सा उपमा बनवाओ न। उपमा खाने का बडा मन है।'' नीरजा उपमा बना कर लाई तो
भागवंती और कुमकुम भी नत्थी हो चली आईं।
लाल साहब ने एक
चम्मच उपमा मुंह में डाला और भागवंती से बोले
- बडी भाभी हमने
तो सोचा था बडे मौके पर थोडा बहुत बुखार आया है।
बाबूजी पर प्रभाव
पड ज़ाएगा और मामला फिट हो जाएगा पर
यहाँ
तो ऐसा बुखार आया कि
इतना अंड बंड बडबडाने का नाटक करना पडा सो अलग। न जाने किस उत्साह में
भागवंती के मुंह से लाल साहब निकल गया।
कुमकुम और नीरजा
ने दाँतों
तले जीभ दाबी कि अब लाल
साहब बम की तरह फट पडेंग़े पर लाल साहब उपमा खाते हुए मुस्कुरा रहे थे-
लाल साहब...आहा
हा....
इस नामकरण पर तो आप
लोगों को पुरस्कार मिलना चाहिये।
सर ने बताया था
कि आप लोग मुझे लाल साहब कहती हैं। कह कर लाल साहब साहब तीनों भाभियों को ऐसे गर्व से देखने लगे जैसे किला फतह कर आए हों। – पीछे |
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